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मुंशी प्रेमचंद सिर्फ 'कलम का मजदूर' या 'कलम के सिपाही' ही नहीं थे, वे 'कलम के जादूगर' भी थे। वे अपने समय और समाज के जागरूक प्रहरी थे। उनकी कलम ने अपने समाज की लगभग हर तरह की समस्या पर उंगली रखी और ऐसा यथार्थ चित्रण किया कि आज भी वह उस समय के भारतीय ग्रामीण एवं बाहरी जीवन का प्रामाणिक दस्तावेज है। दुनिया भर की भाषाओं में उनके उपन्यासों, कहानियों के अनुवाद हुए हैं। उन्होंने 18 उपन्यास और लगभग तीन सौ कहानियाँ और सैकड़ों लेख लिखे। वे कलम से ही जीते थे। उन्होंने हंस पत्रिका की स्थापना की। वे प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक रहे। गोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि और कफन, पूस की रात, सद्गति, पंच परमेश्वर, हीरा मोती, ठाकुर का कुआं आदि अनेक कथाकृतियां विश्व साहित्य में उच्च कोटि का स्थान रखती हैं। आज के समय में प्रेमचंद की कथाओं को पढ़ना एक-बार फिर अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को खोजना है। प्रेमचंद साम्राज्यवादी-सामंतवादी जीवन स्थितियों और मूल्यों के विपक्ष में सेकूलर प्रगतिशीलता की मशाल जलाने वाले रचनाकार थे। उनकी रचनाएं आज भी हमें अतीत को बता, वर्तमान को सुलझा भविष्य का संकेत देती है।
आज प्रेमचंद की कलम वक्त की जरूरत है। उनकी सरल, सुबोध, चुटीली,
व्यंग्यात्मक, मार्मिक भाषा सीधे दिल में उतर जाती है।
आप इन्हें खरीदें, पढ़ें, दूसरों को भी पढ़ाएं।
About Author

प्रेमचंद: कलम का जादूगर, समाज का दर्पण (जन्म: 31 जुलाई 1880 - देहांत 8 अक्टूबर 1936) मुंशी प्रेमचंद, हिंदी साहित्य के एक ऐसे रत्न थे जिनकी चमक आज भी उतनी ही तीव्र है जितनी पहले थी। वे सिर्फ एक लेखक ही नहीं थे, बल्कि एक समाज सुधारक, एक दृष्टा और एक कलम का जादूगर भी थे। समाज का आइना प्रेमचंद की रचनाएं भारतीय समाज का एक सच्चा आईना हैं। उन्होंने अपनी कलम से समाज के कोने-कोने तक पहुंचकर उस समय की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों को बड़ी बारीकी से उजागर किया। उनकी कहानियां और उपन्यास ग्रामीण जीवन, जातिवाद, महिलाओं की स्थिति, सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर गहराई से विचार करते हैं। साहित्यिक योगदान प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को अनेक अमर रचनाएं दीं। 'गोदान', 'कर्मभूमि', 'रंगभूमि', 'कफन', 'पूस की रात', 'सद्गति', 'पंच परमेश्वर', 'हीरा मोती', 'ठाकुर का कुआं' जैसी उनकी रचनाएं विश्व साहित्य में भी अत्यंत लोकप्रिय हैं। उनकी भाषा सरल और प्रभावशाली थी, जो आम लोगों तक आसानी से पहुंच पाती थी। समाज सुधारक प्रेमचंद सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम

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