Mera Safar Taweel Hai
Author | Akhtar pyami |
Publishing year | 0 |

Mera Safar Taweel Hai
महात्मा बुद्ध के ज्ञान, ध्यान, निर्वाण की हालतों ने गया की फिज़ाओं को इस रंग में रंग दिया है जिसकी शोभा निराली है। ढाई हज़ार साल बाद भी इस बस्ती की ये अदा लोगों का दिल लुभाती है और जाने कहां-कहां से लोग इसकी तरफ खिंचे चले आते हैं। गया की मिट्टी से लाखों लोग उठे हैं, लेकिन उनमें से कुछ ऐसे भी हुए हैं जिनके खमीर में इस महान् इनसान के कदमों की चुटकी-भर धूल शामिल हो गई और उन्हें कुछ से कुछ कर गई। अखतर पयामी राजगीर में जन्म लेनेवाले ऐसे ही इनसान थे। उनके खमीर में इस चुटकी-भर धूल ने जो काम कर दिखाया, यह इसी का एजाज़ (करामात) है कि वो कभी तंग-नज़री (संकीर्णता) का शिकार नहीं रहे। मुहब्बत, भाईचारा और $खुलूस के जज़्बे ने हमेशा उनकी रहनुमाई की। उनके बारे में बेधडक़ यह कहा जा सकता है कि वो किसी से नफरत नहीं कर सकते थे, और अपने बदतरीन दुश्मन को भी माफ कर देने की सलाहियत रखते थे। —ज़ाहिदा हिना जिस वक्त अ$खतर पयामी की शायरी परवान चढ़ रही थी हिन्दुस्तान कई तरह की संगीन स्थितियों से गुज़र रहा था। आज़ादी की लड़ाई, फिर देश का विभाजन, साम्प्रदायिक उन्माद, ये सब मिलकर हालात को बेहद पेचीदा बना रहे थे। ज़ाहिर है, भारत के अवाम खतरनाक हालात से गुज़रने को मजबूर थे। ऐसे में कोई हकीकी फनकार भौतिक और रचनात्मक सतह पर यातनाओं से गुज़रने के लिए अभिशप्त था। लेकिन फनकार ही का काम तो अवाम को हौसला बख्शना भी है। उसे इन हालात में एक तरफ पूरी रचनात्मक ऊर्जा के साथ अवाम-दुश्मन ताकतों से टकराना था, और दूसरी तरफ इश्तेहारी नारों से परे शायरी की बुलन्द कद्रों की कसौटी पर खरा उतरते हुए बड़े अदब का सृजन भी करना था। यही वह खूबी है, जो अ$खतर पयामी की शायरी को हर दौर में प्रासंगिक बनाए रखेगी। —वहाब अशर्फी
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