Meghalay Ki Lokkathayen
Item Weight | 200 Grams |
ISBN | 978-9355210517 |
Author | Madhavendra/Smt. Shruti |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan |
Book Type | Paperback |
Publishing year | 2021 |
Edition | 1st |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Meghalay Ki Lokkathayen
'लोक-साहित्य' कथा-साहित्य की प्राचीनतम अवस्था है। जीवन की अनुभूतियाँ सांगीतिकता से उपराम होती हुई मौखिक अवस्था ग्रहण करती हैं। कहने-सुनने की परंपरा जब विकसित हुई तो वह संवाद के भाषाई कौशल के रूप में ही रही होगी। लोक की कथा को जंगल, पत्थर, पहाड़, झरने, नदियाँ, वृक्ष, लता-गुल्म, पशु-पक्षी रचते हैं। राजा-रानी ने तो बहुत बाद में पदार्पण किया। 'पंचतंत्र' में पूरी प्रकृति कथा में ढलती है और मानवीय चेहरा जीवन के विविध रूपों को धारण करता है। इसकी शुरुआत भले ही बहुत मामूली ढंग से हुई हो, परंतु हर युग, काल, परिवेश इस लोक-कला में कुछ-न-कुछ निरंतर जोड़ता, घटाता, परिवर्तित, परिवर्धित करता चलता है। परिणामस्वरूप कथा अपने परिवेश के अनुसार रूप धारण करती हुई निरंतर अपने समय की अभिव्यक्ति पूरी प्रामाणिकता एवं संवेदनशीलता के साथ करती चलती है। जैसे नदी की धार महीन बालुका कणों के तटबंधों में बँधकर अपनी गति का निर्धारण करती है, ठीक उसी तरह लोक में बँधकर ही मानव की सांस्कृतिक चिंता अपना विकास करती है। मेघालय की खासियों की समृद्ध मौखिक साहित्यिक परंपरा यहाँ के पारंपरिक काव्य रूप 'कि फवार', उनकी लोककथाओं, पौराणिक आख्यानों, दंत-कथाओं, नीति-कथाओं, लोकोक्तियों आदि के माध्यम से प्रकट हुई है। इस संकलन की लोककथाएँ मेघालय की समृद्ध लोक-संस्कृति, लोककला, लोकजीवन की झलक प्रस्तुत करती हैं।
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