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यह उपन्यास एक मासूम लड़की के बारे में है जिसका नाम भी उसकी माँ ने मासूमा ही रखा था, लेकिन ज़माने ने जिसे बाद में नाम दिया—नीलोफ़र, और जो औरत होने से पहले ही ऐसी कुछ हो गई कि जो ख़ुद उसकी भी समझ से परे था।
इस्मत चुग़ताई की सधी क़लम का यह शाहकार अपने वक़्त की उस औरत की अक़्क़ाशी करता है जिसके पास अगर ख़ूबसूरत जिस्म न हो, उसे चाहनेवाले पतिंगे न हों, तो वह कुछ नहीं रह जाती और अगर हों तो भूखे-भेड़ियों की हवस की गेंद बनकर रह जाती है। इस्मत इस उपन्यास में औरत की यह हौलनाक़ तस्वीर खींचकर जैसे हर युग की औरतों को चेता रही हैं और कहने की ज़रूरत नहीं कि इक्कीसवीं सदी की चमक-दमक से चौंधियाई हमारी असंख्य उदास, नीम अँधेरी गलियों में आज भी ऐसी मासूम रूहें परवान चढ़ रही हैं, जिनको अगर एक मज़बूत चारदीवारी नसीब न हो तो वे जाने किस राह पर लावारिस पत्थर का टुकड़ा होकर जा रहें, जहाँ कोई भी आता-जाता उनसे खेले और ठुकराकर चलता बने।
नीलोफ़र होने के बाद मासूमा जिस मर्द-समाज के हवाले होती है, उसका रवैया औरत को लेकर आज भी वही है जो उत्तर-आधुनिकता और वैश्वीकरण के हड़बोंग से पहले था। इसलिए यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना उर्दू में प्रकाशित होने के समय था। इसके अलावा इस्मत आपा की क़िस्सागोई समाज और आदमी की गहरी पहचान, ज़बान की मास्टरी और अपने पात्रों की तस्वीर-निगारी की महारत भारतीय साहित्य की कालजयी विरासत है, जो इस उपन्यास में भी अपने शबाब पर है। Ye upanyas ek masum ladki ke bare mein hai jiska naam bhi uski man ne masuma hi rakha tha, lekin zamane ne jise baad mein naam diya—nilofar, aur jo aurat hone se pahle hi aisi kuchh ho gai ki jo khud uski bhi samajh se pare tha. Ismat chugtai ki sadhi qalam ka ye shahkar apne vakt ki us aurat ki aqqashi karta hai jiske paas agar khubsurat jism na ho, use chahnevale patinge na hon, to vah kuchh nahin rah jati aur agar hon to bhukhe-bhediyon ki havas ki gend bankar rah jati hai. Ismat is upanyas mein aurat ki ye haulnaq tasvir khinchkar jaise har yug ki aurton ko cheta rahi hain aur kahne ki zarurat nahin ki ikkisvin sadi ki chamak-damak se chaundhiyai hamari asankhya udas, nim andheri galiyon mein aaj bhi aisi masum ruhen parvan chadh rahi hain, jinko agar ek mazbut chardivari nasib na ho to ve jane kis raah par lavaris patthar ka tukda hokar ja rahen, jahan koi bhi aata-jata unse khele aur thukrakar chalta bane.
Nilofar hone ke baad masuma jis mard-samaj ke havale hoti hai, uska ravaiya aurat ko lekar aaj bhi vahi hai jo uttar-adhunikta aur vaishvikran ke hadbong se pahle tha. Isaliye ye upanyas aaj bhi utna hi prasangik hai, jitna urdu mein prkashit hone ke samay tha. Iske alava ismat aapa ki qissagoi samaj aur aadmi ki gahri pahchan, zaban ki mastri aur apne patron ki tasvir-nigari ki maharat bhartiy sahitya ki kalajyi virasat hai, jo is upanyas mein bhi apne shabab par hai.

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1

जी हाँ! यह चर्च गेट है जी हाँ ! यहाँ चर्च तो आस पास कोई नहीं, हाँ, गेट
बहुत से हैं। अगर आप लोकल ट्रेन से उतरकर नाक की सीध में चलते चले
जाएँ तो वज़न करने की मशीन के पास से गुज़रकर बर्फ़ के पियाऊ को पार
करेंगे। दाएँ हाथ को बाहर निकलने की चकरियाँ नज़र आएँगी। ये फंदे उन
बेटिकट सफ़र करने वालों के लिए हैं जो एकदम बच्चों और औरतों के रेले के
साथ सटक लेते हैं। इन चकरियों में से ज़रा क़ायदे से निकलिएगा वरना घुटने
की चपनी पर वह मज़ेदार चोट लगेगी कि कई दिन तक लंगड़ाना पड़ेगा यहाँ
आपको दोनों कोनों पर दो उकताए हुए टिकट चेकर खड़े बातें करते नज़र
आएँगे। आप चाहें तो कोई पुराना टिकट उन्हें थमा दें या वज़न का टिकट ही
पकड़ाकर झप से निकल आएँ, ये बिल्कुल बेतवज्जुह आपके आर-पार एक-दूसरे
से बातें करते नज़र आएँगे ज़रा देख के भाई! ऐन सीढ़ियों के नीचे पान की
पीक घुली हुई कीचड़ बह रही है आप चाहे कितनी खोज लगाएँ, ये पता नहीं
चला सकते कि इस कीचड़ का निकास कहाँ से होता है? आसमान से टपकती
है या ज़मीन से सोता फूटता है? कोई ओर-छोर नज़र नहीं आता। दाएँ हाथ पर
दीवार की तरफ़ मुँह किए आपको नुची हुई मुर्गी की सूरत की एक श्रीमती जी
नज़र आएँगी। जब तक सूरज या सड़क के खम्बे की रौशनी रहती है, ये बड़ी
एह्तियात' से टटोलकर अपने छिदरे खिचड़ी बालों में से जुएँ और लीखें सूँतकर
पहले तो ग़ौर से उन्हें परखती हैं, उस वक़्त उनके झुर्रियोंदार चेहरे पर
फ़तूहमन्दी' के आसार छा जाते हैं, जैसे गोताखोर अपनी जान की बाज़ी
लगाकर पानी की तह से मोती निकालकर लाया हो, फिर वह उस नाहंजार' जूँ
को बाएँ हाथ के अँगूठे के नाख़ून पर लिटाकर दाएँ हाथ के नाखुन से क़त्ल कर

2
क्या धूम धाम थी। तीन बेटों पर बेटी हुई थी  नाजुक-सी  पेट में थी तब ही
अन्दाज़ा हो गया था, क्योंकि पेट बेटों की दफ़ा छाती तक चढ़ आता था। मासूमा
नाज़ुक चिड़िया-सी पेट में मालूम भी तो होती थी ज़रा सा दूध पीकर पेट
भर जाता था। हुआ भी अलग़ारों दूध था जो माँ के दूध ज़्यादा उतरे तो कहते
हैं कि बच्चा बड़ा खुशनसीब होता है। रुपए की इफ़रात' रहती है नुजूमी' ने
पेशानी देखकर कहा था : बड़ी तालिवर' बच्ची है। बड़ी बरकत लाएगी। दरवाज़े
पर हाथी झूमेगा - हाथी ! अहमद भाई तो बिल्कुल खच्चर थे !
तेरहवें बरस से फूल पहने, तभी से पैग़ाम बरसने लगे। बड़े-बड़े नवाबों के
पैग़ाम। ऊँह, ये नवाब बड़े निकम्मे होते हैं। किसी आई.सी.एस. से करेंगे इसका
ब्याह मुबारक तो साबित हुई निगोड़ी : उसी महीने तरक़्क़ी हुई साल भर की
थी तो ख़िताब मिल गया। फ़ौज की कमान मिल गई। हुजूर सरकार की इनायात '
की बारिश होने लगी
नौ दिन पहले नौबत रखवाऊँगी। बिल्कुल पुरानी शान से शादी होगी। नौ
दिन माँझे बिठाई जाएगी। दिल्ली का उबटन मशहूर है। मेहँदी घर की झाड़ी से
निकलेगी। दादा अब्बा ने पोती के सुहाग के लिए क़लम लगाई थी। अब तो सारे
बरामदे के नीचे फैल गई थी। ईद-बक़रईद को लड़कियाँ- बालियाँ मेहँदी सूँतने
लगतीं तो जी डरता था कि मुर्दियाँ कहीं जड़ हिला दें। बड़ों के हाथ की लगाई
हुई मेहँदी है, शादी तक रह जाए तो जानो
मगर पुलिस ऐक्शन के ज़माने में जब तन-बदन की सुध  रही तो सारे ही
पेड़ सूख गए। कोठी तीन महीने ढंडार पड़ी रही। जड़ों में दीमक लग गई। जब
पुराना सामान निकालने गईं तो जहाँ मेहँदी लहराया करती थी उधर गुस्लख़ाने'

5
वह रो रही है। हौले-हौले ख़ामोशी से रो रही है। उसका चेहरा अँधेरे में खोया
हुआ है। सिर झुका हुआ है और कोई नहीं जान सकता कि वह रो रही है, डर
रही है। क्योंकि उसके रुख़्सारों' पर बहने वाले आँसुओं में सितारों की जोत नहीं,
जो इतने काले, इतने दबीज़ अँधेरे में चमक सकें। कोई रहा है उसके पीछे
दबे पाँव। कोई ग़ैर-मरई' हयूला' बिजबिजाता हुआ उफ़ूनत' का ढीला-ढीला
स्याह अंबार अनदेखा, अनजाना बस एक ही जस्त' में उसे दबोच लेगा वह
जा रही है, जा रही है। एक सुनसान सड़क पर अकेली रोती जा रही है। दरिन्दे
के लम्बे-लम्बे धारदार दाँत खन में लुथड़े हुए हैं। ये उन लोगों का खून है जो
इस राह पर नीलोफ़र की तरह तने-तन्हा गुज़रे हैं।
उसकी चीनी की गुड़िया टूट गई है। वह हिचकियों से रो रही है। चुपचाप
अँधेरे में तन्हा रो रही है। फ़िज़ा में गले सड़े गोश्त और दाग़दार चमड़े की बोझल
बू है, जैसे गर्म तपते हुए लोहे को ताजा-ताज़ा ख़ून में बुझा दिया हो काँच के
ज़रे उसके नाख़ून से उतरते हुए दिल तक रेंग रहे हैं। दिमाग़ में बारीक-बारीक
कैंचियाँ चल रही हैं, जैसे कोई अफ्शा कतर रहा हो, और अफ़्शाँ का हर ज़र्रा
नश्तर बन कर माँग में घुस रहा है। कोई दम में उसकी हस्ती किर्ची-किर्ची हो
जाएगी। दरिन्दा चला रहा है। उसके पँजों के चटखने की आवाज़ दूर
में छिपे बादलों की तरह कड़क रही है। उसके पैर मन-मन भर के हो गए। टूटी
हुई गुड़िया हथेलियों में चुभने लगी आख़िरी सीढ़ी से आगे नामालूम ख़ला
की बदली तरह उठे और उसे दबोचने लगे। अपने जी का जोर लगा कर वह चीख़ी,
मगर फ़िज़ा ख़ामोश रही
उसने देखा कि वह एक ज़र्री क़ब्र में बन्द है  आबनूस" का कफ़न उसे

 


 


 

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nice book and story I like this...

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