अनुक्रम
13 | दस रुपए
28 | ख़ुशिया
36 | हतक
59 | सरकंडों के पीछे
74 | सड़क के किनारे
81 | ठंडा गोश्त
88 | ख़ालिद मियाँ
99 | सिराज
111 | मोज़ेल
136 | मम्मद भाई
152 | काली शलवार
168 | सहाय
177 | टेटवाल का कुत्ता
187 | टोबा टेक सिंह
196 | सौ कैंडल पावर का बल्ब
दस रुपए
वह गली के उस नुक्कड़ पर छोटी-छोटी लड़कियों के साथ खेल रही थी। उसकी माँ उसे चाल में ढूँढ़ रही थी- किशोरी को अपनी खोली में बिठाकर और बाहरवाले से चाय लाने के लिए कहकर वह चाल की तीनों
मंज़िलों में अपनी बेटी को तलाश कर चुकी थी, मगर जाने वह कहाँ मर गई थी। संडास के पास जाकर भी उसने आवाज़ दी थी : “ए सरिता....सरिता !” मगर वह संडास में तो थी ही नहीं और जैसा कि उसकी माँ समझ रही थी, अब सरिता को पेचिश की शिकायत भी नहीं थी कि दवा पिए बग़ैर उसको आराम
आ चुका था। वह बाहर गली के उस नुक्कड़ पर, जहाँ कचरे का ढेर पड़ा रहता है, छोटी-छोटी लड़कियों के साथ खेल रही थी और हर क़िस्म के फ़िक्रो- तरद्दुद' से आज़ाद थी । उसकी माँ बहुत मुतफ़क्किर' थी - वह किशोरी को अन्दर खोली में बिठा आई थी। किशोरी ने कहा था : " तीन सेठ बाहर बड़े बाज़ार में मोटर लिये खड़े हैं।” सरिता कहाँ ग़ायब हो गई है....मोटरवाले सेठ हर रोज़ तो आते नहीं...यह तो किशोरी की मेहरबानी है कि महीने में एक-दो बार मोटी आसामी ले आता है... वरना ऐसे मुहल्ले में, जहाँ पान की पीकों और जली हुई बीड़ियों की मिली-जुली बू से किशोरी ख़ुद घबराता हो, वहाँ भला सेठ लोग कैसे आ
सकते हैं...किशोरी होशियार है, इसीलिए वह किसी आदमी को मकान पर नहीं लाता, बल्कि सरिता को कपड़े-वपड़े पहनाकर बाहर ले जाता है...वह उन लोगों से कह दिया करता है कि साहब, आजकल ज़माना बड़ा नाजुक है; पुलिस के सिपाही हर वक़्त घात में लगे रहते हैं, अब तक दो सौ धन्धा
सरकंडों के पीछे
कौन-सा शहर था, इसके मुताल्लिक़, जहाँ तक मैं समझता हूँ, आपको मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं; बस इतना कह देना ही काफ़ी है वह जगह, जो इस कहानी से मुताल्लिक़ है, सरहद के मुज़ाफ़ात' में थी, बॉर्डर के क़रीब; और जहाँ वह औरत रहती थी, वह घर झोंपड़ानुमा था, सरकंडों के पीछे।
घनी बाड़-सी थी, जिसके पीछे उस औरत का मकान था, कच्ची मिट्टी का बना हुआ; यह बाड़ से कुछ फ़ासले पर था, इसलिए सरकंडों के पीछे छुप- सा गया था कि बाहर कच्ची सड़क पर से गुज़रनेवाला कोई भी इसे देख नहीं सकता था।
"सरकंडे बिलकुल सूखे हुए थे, मगर वह कुछ इस तरह ज़मीन में गड़े हुए थे कि एक दबीज़' परदा बन गए थे, मालूम नहीं वह सरकंडे उस औरत ने खुद वहाँ पैवस्त किए थे या पहले ही से वहाँ मौजूद थे। बहरहाल, कहना यह है कि वह आहनी क़िस्म के परदापोश थे। मकान कह लीजिए या मिट्टी का झोंपड़ा, छोटी-छोटी तीन कोठड़ियाँ थीं, मगर साफ़-सुथरी; सामान मुख़्तसर था, मगर अच्छा, पिछली कोठड़ी में एक बहुत बड़ा निवाड़ी पलंग था; पलंग के क़रीब ही कच्ची दीवार में एक ताक़चा था, जिसमें सरसों के तेल का दीया रात-भर जलता रहता था;ताक़चा भी साफ़-सुथरा रहता था और वह दीया भी, जिसमें हर रोज़ नया तेलनई बत्ती डाली जाती थी ।वह अब मैं आपको उस औरत का नाम बताता हूँ, जो उस मुख़्तसर-से मकान में, जो सरकंडों के पीछे छुपा रहता था, अपनी जवान बेटी के साथ रिहाइशपज़ीर थी।
काली शलवार
देहली आने से पहले वह अम्बाला छावनी में थी, जहाँ कई गोरे उसके गाहक थे। उन गोरों से मिलने-जुलने के बायस वह अंग्रेज़ी के दस-पन्द्रह जुमले सीख गई थी । उनको वह आम गुफ़्तगू में इस्तेमाल नहीं करती थी लेकिन जब वह देहली में आई और उसका कारोबार न चला तो एक दिन उसने अपनी पड़ोसन तमंचाजान से कहा : "दिस लैफ़, वैरी बैड... " यानी यह ज़िन्दगी बहुत बुरी है जबकि खाने ही को कुछ नहीं मिलता। अम्बाला छावनी में उसका धन्धा बहुत अच्छी तरह चलता था। छावनी के गोरे शराब पीकर उसके पास आते थे और वह तीन-चार घंटों ही में आठ- दस गोरों को निबटाकर बीस-तीस रुपए पैदा कर लिया करती थी । ये गोरे उसके हमवतनों के मुक़ाबले में बहुत अच्छे थे। इसमें कोई शक नहीं कि वह ऐसी ज़बान बोलते थे, जिसका मतलब सुलताना की समझ में नहीं आता था मगर उनकी ज़बान से यह लाइल्मी उसके हक़ में बहुत अच्छी साबित होती थी। अगर वे उससे कुछ रिआयत चाहते तो वह सिर हिलाकर कह दिया करती थी : ‘“साहब, हमारी समझ में तुम्हारी बात नहीं आता।'' और अगर वे उससे ज़रूरत से ज़्यादा छेड़छाड़ करते तो वह उनको अपनी ज़बान में गालियाँ देना शुरू कर देती थी। वह हैरत में उसके मुँह की तरफ़ देखते तो वह उनसे कहती : ‘“साहब, तुम एकदम उल्लू का पट्ठा है, हरामजादा है...समझा!" यह कहते वक़्त वह अपने लहज़े में सख़्ती पैदा न करती बल्कि बड़े प्यार के साथ उनसे बातें करती - गोरे हँस देते और हँसते वक़्त वह सुलतान बिलकुल उल्लू के पट्ठे दिखाई देते । को मगर यहाँ दिल्ली में वह जब से आई थी, एक गोरा भी उसके यहाँ नहीं आया था। तीन महीने उसको हिन्दुस्तान के इस शहर में रहते हो गए थे,जहाँ