Manavadhikar Aur Samkaleen Kavita
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-9355182265 |
Author | Prabhakaran Hebbar Illath |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 216 |
Book Type | Hardbound |
Publishing year | 2022 |
Edition | 1st |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Manavadhikar Aur Samkaleen Kavita
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मानवाधिकार और समकालीन कविता - कविता मानवाधिकार का अनुसन्धान करती है। समकालीन कविता के कथ्यपक्ष में समय की भयावहता तथा मानवाधिकारहीनता की यथार्थ व सम्भावित स्थितियों का खाका है, साथ ही वह अपनी भाषा की बारीकी के माध्यम से मानवाधिकार सम्बन्धी चेतना को प्रसारित करती है। उस भाषा के स्वच्छ कलेवर में प्रभुता का निरास है, व्यवस्था की सीमाओं पर प्रहार है। खैर, अधिकारों का नवीन सांस्कृतिक आख्यान समकालीन कविता पेश करती है। कविता का यह तेवर ज़रूर नवीन विमर्शों को जन्म देता है। यह विमर्श प्रमोद के. नायर की भाषा में 'मानवाधिकार की नैतिक परियोजना को विस्तृत एवं सशक्त बनाता है और अधिकार से वंचित जनता के बुनियादी अधिकारों के बारे में विचार करने के लिए विवश करता है।' जीवन के चारों तरफ़ व्याप्त अधिकारहीनता को, उसके पीछे कार्यरत शक्तियों को आज की कविता बेनकाव करती है। आजकल हम महसूस करते हैं कि पूँजीवादी संस्कृति के नशे से उत्पन्न नैतिक गिरावट से मानव अपनी इन्द्रियों के सामने प्रतिभासित सच्चाई को पहचान नहीं पा रहा है। पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा प्रदान की गयी सुविधाओं से आज का इन्सान गुदगुदी का अनुभव करता है, छिछले आनन्द का अनुभव करता है। इस नशे से अपने समाज की यथार्थताओं से मनुष्य कट जाता है ।
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