Manav Charitra Ke Vyangya
Author | Giriraj Sharan |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9352664054 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.2 kg |
Edition | 1st |
Manav Charitra Ke Vyangya
अभी- अभी मेरे- सामने गिरगिट नाम का एक जंतु उभरा है । वह बालिश्त- भर का आकार लिये, बेरी के पेड़ की पतली- सी टहनी से चिपका हुआ है । मैं उसकी तरफ ध्यान से देखता हूँ । यह क्या? कभी उसके शरीर का हर हिस्सा लाल हो जाता है, कभी हरा, कभी पीला । यह हर पल रंग कैसे बदल लेता है? मैं अपने आप से यह प्रश्न बार-बार पूछता हूँ ।भीतर से आई कोई अजनबी-सी आवाज मुझे चौंका देती है । गिरगिट ठीक ऐसे ही रंग बदलता है जैसे आदमी । बस, अंतर इतना है कि गिरगिट बेचारे के रंग दिखाई दे जाते हैं, आदमी के रंग दिखाई नहीं देते । आदमी से अधिक ' टेक्नीकलर ' चीज तो दुनिया में कोई है नहीं । आदमी तो वह प्राणी है जो रंग तो बदलता है पर गिरगिट की भांति उसका प्रदर्शन नहीं करता । गिरगिट के रंगों से आदमी को कोई खतरा नहीं, पर आदमी के रंग से? ?गिरगिट के भीतर जितने रंग हैं और जितने रंग वह बदलता है, वे कम-से- कम सब गिरगिटों में एक जैसे होते हैं पर आदमी और आदमी के रंगों में तो जमीन- आसमान का अंतर है । भगवानदत्त के जो रंग-ढंग हैं वे ईश्वरप्रसाद के नहीं और ईश्वरप्रसाद के जो रंग-ढंग हैं वे परमात्माशरण के नहीं, और परमात्माशरण के जो हाव- भाव हैं वे ब्रह्मानंद के नहीं । कम-से-कम एक गिरगिट और दूसरा गिरगिट अपनी अंतरात्मा में तो एक है । गिरगिट-गि��गिट में समानता और आदमी- आदमी में असमानता ।मानव चरित्र के गिरते ग्राफ पर तीखी चोट करने वाले ये व्यंग्य आदमी के चेहरे को बेनकाब करते हैं ।
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