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ग्लादेश में एक सांस्कृतिक जगह है बोरिशाल। बोरिशाल के रहनेवाले एक पात्र से शुरू हुई यह कथा पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति-संग्राम और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के अभ्युदय तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि उन परिस्थितियों की भी पड़ताल करती है, जिनमें साम्प्रदायिक आधार पर भारत का विभाजन हुआ और फिर भाषायी तथा भौगोलिक आधार पर पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश बना। 
समय तथा समाज की तमाम विसंगतियों को अपने भीतर समेटे यह एक ऐसा बहुआयामी उपन्यास है जिसमें प्रेम की अन्त:सलिला भी बहती है तथा एक देश का टूटना और बनना भी शामिल है। यह उपन्यास लेखिका के गम्भीर शोध पर आधारित है और इसमें बांग्लादेश मुक्ति-संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों तथा उर्दूभाषी नागरिकों द्वारा बांग्लाभाषियों पर किए गए अत्याचारों तथा उसके ज़बर्दस्त प्रतिरोध का बहुत प्रामाणिक चित्रण हुआ है। उपन्यास का एक बड़ा हिस्सा उस दौर के लूट, हत्या, बलात्कार, आगजनी की दारुण दास्तान बयान करता है। उस दौरान मानवीय आधार पर भारतीय सेना द्वारा पहुँचाई गई मदद और मुक्तिवाहिनी को प्रशिक्षण देने के लिए भारतीय सीमा क्षेत्र में बनाए गए प्रशिक्षण शिविरों तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार द्वारा निभाई गई भूमिका का भी ज़िक्र इसमें है।
युवा लेखिका महुआ माजी का यह पहला उपन्यास है। लेकिन उन्होंने राष्ट्र-राज्य बनाम साम्प्रदायिक राष्ट्र की बहस को बहुत ही गम्भीरता से इसमें उठाया है और मुक्तिकथा को भाषायी राष्ट्रवाद की अवधारणा की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया है। ज़मीन से जुड़ी कथा-भाषा और स्थानीय प्रकृति तथा घटनाओं के जीवन्त चित्रण की विलक्षण शैली के कारण यह उपन्यास एक गम्भीर मसले को उठाने के बावजूद बेहद रोचक और पठनीय है। Bangladesh mein ek sanskritik jagah hai borishal. Borishal ke rahnevale ek patr se shuru hui ye katha purvi pakistan ke mukti-sangram aur bangladesh ke rup mein ek ne rashtr ke abhyuday tak hi simit nahin rahti, balki un paristhitiyon ki bhi padtal karti hai, jinmen samprdayik aadhar par bharat ka vibhajan hua aur phir bhashayi tatha bhaugolik aadhar par pakistan se tutkar bangladesh bana. Samay tatha samaj ki tamam visangatiyon ko apne bhitar samete ye ek aisa bahuayami upanyas hai jismen prem ki ant:salila bhi bahti hai tatha ek desh ka tutna aur banna bhi shamil hai. Ye upanyas lekhika ke gambhir shodh par aadharit hai aur ismen bangladesh mukti-sangram ke dauran pakistani sainikon tatha urdubhashi nagarikon dvara banglabhashiyon par kiye ge atyacharon tatha uske zabardast pratirodh ka bahut pramanik chitran hua hai. Upanyas ka ek bada hissa us daur ke lut, hatya, balatkar, aagajni ki darun dastan bayan karta hai. Us dauran manviy aadhar par bhartiy sena dvara pahunchai gai madad aur muktivahini ko prshikshan dene ke liye bhartiy sima kshetr mein banaye ge prshikshan shiviron tatha antarrashtriy star par bharat sarkar dvara nibhai gai bhumika ka bhi zikr ismen hai.
Yuva lekhika mahua maji ka ye pahla upanyas hai. Lekin unhonne rashtr-rajya banam samprdayik rashtr ki bahas ko bahut hi gambhirta se ismen uthaya hai aur muktiktha ko bhashayi rashtrvad ki avdharna ki prishthbhumi mein prastut kiya hai. Zamin se judi katha-bhasha aur sthaniy prkriti tatha ghatnaon ke jivant chitran ki vilakshan shaili ke karan ye upanyas ek gambhir masle ko uthane ke bavjud behad rochak aur pathniy hai.

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अनुक्रम

1. आग की विभीषिका -9

2. '' से अजगर आशछे तेड़े –14

3. इतने जोर से मत सोचो, सुनाई पड़ रहा है -18

4. ठीक से चलाओ भाई! आस्ते आस्ते चलाओ -22

5. हट जा केष्टो, नारियल गिरा रहा हूँ -28

6. कॉत्ता घर पर हैं क्या? -32

7. कंजूस खिटखिटिया तीनकौड़ी खड़ा -33

8. भीतर उतरते वसन्त का साक्षात्कार -36

9. गैंडे की खाल लेकर जन्मा है तू -37

10. वो देखो खुड़शोशुर -40

11. उतर आई शरत् ऋतु ग्राम-बांग्ला में -43

12. वे कंकाल - देह लोग -45

13. एइ बांगालिर दुर्गा पूजा -49

14. बतासालूट -51

15. आहा! वे खजूर के रस -52

16. बृष्टि पॉड़े टापुर-टुपुर -54

17. शामदाशी दरवाज़ा खोलो -58

18. दूर हो जा पोड़ामुखी -59

19. खुले बाल जलपाई आँचल -61

20. सारेगा रेगामा गामापा -66

21. हाथ में बीड़ी, मुँह में पान, लड़कर लेंगे पाकिस्तान -70

22. मैसुती बंगाल -80

23. नारा--तकबीर! अल्लाहो अकबर! -82

24. राखे केष्टो मारे के -95

25. हे मैन! क्या करता? -108

26. लौट के बुद्ध घर को आए -116

27. बोरिशाइल्ला पोला -124

28. बहुधन्धी पहलवान -135

29. अयूबशाही मार्शल लॉ -139

30. मेघे- मेघे, ताराय-ताराय -143

31. बेसिक डेमोक्रेसी -153

32. क्या पैसा ही सबकुछ हैं? -155

33. प्रॉमिनेंट फ़िगर -159

34. सियासती हथकंडे -163

35. एक भ्रामक शुरुआत -169

36. अज्ञातवास के वे दिन -174

37. तांडव -187

38. अनजानी, अनदेखी राहों पर -199

39. प्रियजनों की खोज में -208

40. जन्म : गणप्रजातन्त्री बांग्लादेश का -216

41. मानवता! मानवता! आज हम तुम्हारे द्वार के भिखारी हैं -219

42. प्रशिक्षण शिविर की ओर -225

43. कर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे -245

44. नरक दर्शन -286

45. रण, रणनीति और प्रेम के सोते -291

46. हाइड आउट और भुगतती खोपड़ी -305

47. तैरते शिविर में हिचकोले खाता जीवन -319

48. मुक्तांचल की दहलीज पर -331

49. ध्वस्त इस्लाम रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान -338

50. यातना झेलते बुजुर्ग -342

51. ढाका में किलबिलाते-बिच्छू -350

52. युद्ध के चूड़ान्त क्षणों में -362

53. चिरआकांक्षित स्वाधीनता -375

54. युद्धोपरान्त -378

55. मिलना, जुदा होना -381

56. कृतघ्नता और प्रतिशोध -390

57. बिस्तर पर आनन्दोत्सव -393

58. आग! फिर आग! -395

 

 

आग की विभीषिका

आग की विभीषिका से पहली बार मेरा सामना स्वाधीनता से तीन-चार वर्ष पहले की एक
मनहूस रात को हुआ था बांग्लादेश के बोरिशाल शहर की एक रात थी वह बोरिशाल !
तत्कालीन अविभाजित भारत का एक खूबसूरत अंश ! पुराणों में वर्णित अठारह द्वीपों में से
एक द्वीप - चन्द्रद्वीप, जहाँ शंखध्वनि तथा अजान के स्वर एक-दूसरे में एकाकार होकर
दिशाओं में व्याप्त हो जाया करते थे साथ-साथ रामायण और कुरान का पाठ किया जाता
था। उस समय मैं आज का अनुभवी बुजुर्ग केष्टो घोष नहीं, बल्कि साँवला, दुबला-पतला,
तेल चिपचिपे बालों वाला, हाफ पैंट पहनकर ख़ाली बदन, नंगे पाँवों घूमनेवाला महज
बारह-तेरह साल का एक आम शरारती बालक था
बोरिशाल शहर के पास से ही होकर कीर्तनखोला नदी बहती थी  नदी की तरंगों के
ताल में ताल मिलाकर अक्सर नाव खेते माँझियों के खुले कंठ से निकले भाटियाली गीत गूँजा
करते थे और जब अपने प्राण - प्रिय बन्धु के लिए व्याकुल कोई माँझी गा उठता था,
मोइशाल-मोइशाल कौरो बोन्धु रे   
अरे शुक्ला नदी के तट पर
मुरझा गया है चेहरा
चैत महीने के झमेले में
रोते हैं प्राण/प्राण रोते हैं।
मोइशाल बन्धु रे बन्धु रेऽऽऽऽऽ )
 
(मोइशाल मोइशाल करो बन्धु रे
ओरे शुक्ला नोदिर कूले
मुख खानि शुकाइया गैछे
चोइत माइशा झामेले
प्राण कान्दे, प्राण कान्दे मोइशाल बोन्धु रे   
बोन्धु रे ऽऽऽऽ
तो उसकी वह दर्द-भरी लम्बी तान आकाश-पाताल को झकझोरती हुई सीधे रसिकों के
हृदय में समा जाती थी
कीर्तनखोला नदी से निकलकर एक नहर सड़कों, दुकानों, बाग-बगीचों को पार करते
हुए बोरिशाल शहर के बीच में बसे हमारे घर के बिलकुल पास से होकर गुज़रती थी, देवदार
कॉरोगेटेड टीन से बनी दीवारों और छत वाले उस घर के बिलकुल पास से, जहाँ मेरा बचपन
बीता था
उस मनहूस रात को, उस रात के बाद की असंख्य रातों को, विगत वर्षों के हरेक पल
को आज भी मैं हाथ बढ़ाकर छू सकता हूँ, महसूस कर सकता हूँ मुझे अच्छी तरह से याद.
है कि मैं, बालक केष्टो उस रात आमकाठ के पीढ़े पर बैठकर काँसे के एक बड़े-से जामबाटी
में हापुस-हुपुस' करके पके आम और केले से सानकर दूध मूड़ी खा रहा था मेरी बहन खुकी
जोर-जोर से रोए जा रही थी और माँ आदतानुसार बकबक किए जा रही थीं, ताड़ाताड़ीखा
और हाथ-मुँह धोकर बाहर खुली हवा में खुकी को थोड़ी देर घुमा ला ये छैच्कान्दुनी छेमड़
रात घर में दीया नहीं जलाया, चूल्हा नहीं सुलगाया, शंख नहीं बजाया
मैं धीरे-धीरे चलता हुआ प्रोबाल के घर गया। जॉया-बिजॉया दीदी अपने-अपने चेहरे
को हथेलियों पर टिकाकर चुपचाप बरामदे की सीढ़ी पर बैठी थीं काका-काकीमाँ बरामदे
की कुर्सियों पर अन्य कई क्रांतिकारियों के साथ बैठे थे प्रोबाल शायद अपने कमरे में था।
सभी चुप थे। ऐसा लगता था जैसे सबको साँप सूँघ गया हो वहाँ की हवा में साँस लेना
मुश्किल लग रहा था। मैं कुछ देर रुककर चुपचाप घर लौट आया
 

मैसुती बंगाल

भौगोलिक रूप से पाकिस्तान दो भागों में बँटा हुआ एक अद्भुत राष्ट्र था। पश्चिमी पाकिस्तान
और पूर्वी पाकिस्तान के बीच करीब दो हज़ार मील की दूरी थी। बीच का हिस्सा हिन्दुस्तान
का था। आशानुरूप कायदे आज़म जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने और प्रधानमन्त्री
बनाया गया लियाकत अली खान को पूर्वी पाकिस्तान यानी पूर्वी बंगाल में भी मुस्लिम लीग
का ही शासन लागू हुआ। ढाका के नवाव नाज़िमुद्दीन को पूर्वी पाकिस्तान का मुख्यमन्त्री
बनाया गया। पूर्वी पाकिस्तान के शासन की बागडोर पश्चिमी पाकिस्तान के हाथों में थी पूर्वी
पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तानी 'मैसुती बंगाल' कहते थे और हम कहते थे, 'शोनार बांग्ला '
कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी तो कहा है, आमार शोनार बांग्ला आमि तोमाय भालोवाशी
पाकिस्तान बनने के बाद से अधिकतर मुसलमान दबी जुबान में कहने लगे थे, अव
हिन्दुओं का यहाँ पाकिस्तान में क्या काम है ? हिन्दू लोग हिन्दुस्तान जाएँ। वहाँ उनकी इतनी
बड़ी धरती पड़ी है। हमारा यह छोटा-सा पाक देश ! इसमें हम इन मालाउन लोगों को क्यों
रखें ? क्यों सहें उनका वर्चस्व ? क्यों दें उन्हें हमारे हिस्से का सुख ?


 

 

 

 

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