अनुक्रम
1. आग की विभीषिका -9
2. 'अ' से अजगर आशछे तेड़े –14
3. इतने जोर से मत सोचो, सुनाई पड़ रहा है -18
4. ठीक से चलाओ भाई! आस्ते आस्ते चलाओ -22
5. हट जा केष्टो, नारियल गिरा रहा हूँ -28
6. कॉत्ता घर पर हैं क्या? -32
7. कंजूस खिटखिटिया तीनकौड़ी खड़ा -33
8. भीतर उतरते वसन्त का साक्षात्कार -36
9. गैंडे की खाल लेकर जन्मा है तू -37
10. वो देखो खुड़शोशुर -40
11. उतर आई शरत् ऋतु ग्राम-बांग्ला में -43
12. वे कंकाल - देह लोग -45
13. एइ बांगालिर दुर्गा पूजा -49
14. बतासा – लूट -51
15. आहा! वे खजूर के रस -52
16. बृष्टि पॉड़े टापुर-टुपुर -54
17. शामदाशी दरवाज़ा खोलो -58
18. दूर हो जा पोड़ामुखी -59
19. खुले बाल जलपाई आँचल -61
20. सारेगा रेगामा गामापा -66
21. हाथ में बीड़ी, मुँह में पान, लड़कर लेंगे पाकिस्तान -70
22. मैसुती बंगाल -80
23. नारा-ए-तकबीर! अल्लाहो अकबर! -82
24. राखे केष्टो मारे के -95
25. हे मैन! क्या करता? -108
26. लौट के बुद्ध घर को आए -116
27. बोरिशाइल्ला पोला -124
28. बहुधन्धी पहलवान -135
29. अयूबशाही मार्शल लॉ -139
30. मेघे- मेघे, ताराय-ताराय -143
31. बेसिक डेमोक्रेसी -153
32. क्या पैसा ही सबकुछ हैं? -155
33. प्रॉमिनेंट फ़िगर -159
34. सियासती हथकंडे -163
35. एक भ्रामक शुरुआत -169
36. अज्ञातवास के वे दिन -174
37. तांडव -187
38. अनजानी, अनदेखी राहों पर -199
39. प्रियजनों की खोज में -208
40. जन्म : गणप्रजातन्त्री बांग्लादेश का -216
41. मानवता! मानवता! आज हम तुम्हारे द्वार के भिखारी हैं -219
42. प्रशिक्षण शिविर की ओर -225
43. कर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे -245
44. नरक दर्शन -286
45. रण, रणनीति और प्रेम के सोते -291
46. हाइड आउट और भुगतती खोपड़ी -305
47. तैरते शिविर में हिचकोले खाता जीवन -319
48. मुक्तांचल की दहलीज पर -331
49. ध्वस्त इस्लाम रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान -338
50. यातना झेलते बुजुर्ग -342
51. ढाका में किलबिलाते-बिच्छू -350
52. युद्ध के चूड़ान्त क्षणों में -362
53. चिरआकांक्षित स्वाधीनता -375
54. युद्धोपरान्त -378
55. मिलना, जुदा होना -381
56. कृतघ्नता और प्रतिशोध -390
57. बिस्तर पर आनन्दोत्सव -393
58. आग! फिर आग! -395
आग की विभीषिका
आग की विभीषिका से पहली बार मेरा सामना स्वाधीनता से तीन-चार वर्ष पहले की एक
मनहूस रात को हुआ था । बांग्लादेश के बोरिशाल शहर की एक रात थी वह । बोरिशाल !
तत्कालीन अविभाजित भारत का एक खूबसूरत अंश ! पुराणों में वर्णित अठारह द्वीपों में से
एक द्वीप - चन्द्रद्वीप, जहाँ शंखध्वनि तथा अजान के स्वर एक-दूसरे में एकाकार होकर
दिशाओं में व्याप्त हो जाया करते थे । साथ-साथ रामायण और कुरान का पाठ किया जाता
था। उस समय मैं आज का अनुभवी बुजुर्ग केष्टो घोष नहीं, बल्कि साँवला, दुबला-पतला,
तेल चिपचिपे बालों वाला, हाफ पैंट पहनकर ख़ाली बदन, नंगे पाँवों घूमनेवाला महज
बारह-तेरह साल का एक आम शरारती बालक था ।
बोरिशाल शहर के पास से ही होकर कीर्तनखोला नदी बहती थी । नदी की तरंगों के
ताल में ताल मिलाकर अक्सर नाव खेते माँझियों के खुले कंठ से निकले भाटियाली गीत गूँजा
करते थे और जब अपने प्राण - प्रिय बन्धु के लिए व्याकुल कोई माँझी गा उठता था,
“मोइशाल-मोइशाल कौरो बोन्धु रे
अरे शुक्ला नदी के तट पर
मुरझा गया है चेहरा
चैत महीने के झमेले में
रोते हैं प्राण/प्राण रोते हैं।
मोइशाल बन्धु रे ओ बन्धु रेऽऽऽऽऽ )
(मोइशाल मोइशाल करो बन्धु रे
ओरे शुक्ला नोदिर कूले
मुख खानि शुकाइया गैछे
चोइत माइशा झामेले
प्राण कान्दे, प्राण कान्दे मोइशाल बोन्धु रे
ओ बोन्धु रे ऽ ऽऽऽऽ”
तो उसकी वह दर्द-भरी लम्बी तान आकाश-पाताल को झकझोरती हुई सीधे रसिकों के
हृदय में समा जाती थी ।
कीर्तनखोला नदी से निकलकर एक नहर सड़कों, दुकानों, बाग-बगीचों को पार करते
हुए बोरिशाल शहर के बीच में बसे हमारे घर के बिलकुल पास से होकर गुज़रती थी, देवदार
कॉरोगेटेड टीन से बनी दीवारों और छत वाले उस घर के बिलकुल पास से, जहाँ मेरा बचपन
बीता था ।
उस मनहूस रात को, उस रात के बाद की असंख्य रातों को, विगत वर्षों के हरेक पल
को आज भी मैं हाथ बढ़ाकर छू सकता हूँ, महसूस कर सकता हूँ । मुझे अच्छी तरह से याद.
है कि मैं, बालक केष्टो उस रात आमकाठ के पीढ़े पर बैठकर काँसे के एक बड़े-से जामबाटी
में ‘हापुस-हुपुस' करके पके आम और केले से सानकर दूध मूड़ी खा रहा था । मेरी बहन खुकी
जोर-जोर से रोए जा रही थी और माँ आदतानुसार बकबक किए जा रही थीं, “ताड़ाताड़ीखा
और हाथ-मुँह धोकर बाहर खुली हवा में खुकी को थोड़ी देर घुमा ला । ये छैच्कान्दुनी छेमड़
रात घर में दीया नहीं जलाया, चूल्हा नहीं सुलगाया, शंख नहीं बजाया ।
मैं धीरे-धीरे चलता हुआ प्रोबाल के घर गया। जॉया-बिजॉया दीदी अपने-अपने चेहरे
को हथेलियों पर टिकाकर चुपचाप बरामदे की सीढ़ी पर बैठी थीं । काका-काकीमाँ बरामदे
की कुर्सियों पर अन्य कई क्रांतिकारियों के साथ बैठे थे । प्रोबाल शायद अपने कमरे में था।
सभी चुप थे। ऐसा लगता था जैसे सबको साँप सूँघ गया हो । वहाँ की हवा में साँस लेना
मुश्किल लग रहा था। मैं कुछ देर रुककर चुपचाप घर लौट आया ।
मैसुती बंगाल
भौगोलिक रूप से पाकिस्तान दो भागों में बँटा हुआ एक अद्भुत राष्ट्र था। पश्चिमी पाकिस्तान
और पूर्वी पाकिस्तान के बीच करीब दो हज़ार मील की दूरी थी। बीच का हिस्सा हिन्दुस्तान
का था। आशानुरूप कायदे आज़म जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने और प्रधानमन्त्री
बनाया गया लियाकत अली खान को । पूर्वी पाकिस्तान यानी पूर्वी बंगाल में भी मुस्लिम लीग
का ही शासन लागू हुआ। ढाका के नवाव नाज़िमुद्दीन को पूर्वी पाकिस्तान का मुख्यमन्त्री
बनाया गया। पूर्वी पाकिस्तान के शासन की बागडोर पश्चिमी पाकिस्तान के हाथों में थी । पूर्वी
पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तानी 'मैसुती बंगाल' कहते थे और हम कहते थे, 'शोनार बांग्ला ।'
कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी तो कहा है, “आमार शोनार बांग्ला आमि तोमाय भालोवाशी ।”
पाकिस्तान बनने के बाद से अधिकतर मुसलमान दबी जुबान में कहने लगे थे, “अव
हिन्दुओं का यहाँ पाकिस्तान में क्या काम है ? हिन्दू लोग हिन्दुस्तान जाएँ। वहाँ उनकी इतनी
बड़ी धरती पड़ी है। हमारा यह छोटा-सा पाक देश ! इसमें हम इन मालाउन लोगों को क्यों
रखें ? क्यों सहें उनका वर्चस्व ? क्यों दें उन्हें हमारे हिस्से का सुख ?”