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मनुष्य की भावनाएँ मुख्यतः नौ रस से बनी होती हैं। इन रसों &nbs;में एक रस&nbs;"करुण रस" है। इसे दया और भिक्षा का स्रोत माना जाता है।&nbs;मूलतः यह करुणा का द्योतक है। "करुणा" यानि द्रवित करने की कला। कोई कला तभी कारगर होती है जब &nbs;वह "रस" से सराबोर हो। करुण रस&nbs;की सत्यता तभी प्रामाणिक होगी जब दृश्य मन को छूने वाले हों। &nbs;भाव आत्मचिंतन के लिए झकझोर दें। &nbs;आत्मा पीड़ित महसूस करे। &nbs;मन को आत्मा की पीड़ा का आभास &nbs;हो और हृदय परिवर्तन हो जाये। एक भिखारी को देखकर हम द्रवित होते हैं। करुणा उपजती है। &nbs;कुछ &nbs;दान करके आगे बढ़ जाते हैं। फिर दुनिया में &nbs;तरह तरह के चित्र विचित्र देख कर भिखारी को भूल जाते हैं। "करुण रस" &nbs;मिट जाता है। किन्तु भिखारी के बाद लगातार कुछ ऐसा हो कि कोई अपंग मिले झुकी पीठ लिए बूढ़ा रिक्शा चालक मिले सधवा की जलती चिता दिखाई दे धर्षित स्त्री अचेतन पड़ी दिखे नन्हेनन्हे मज़दूर नज़र आएं बेटे को मुखाग्नि देता बाप दिखे पितामह से ग्रसित बालिका दिखे ईश्वर के बंटवारे की होड़ लगी हो कृषि प्रधान देश के किसानो की आत्मह्त्याकथा सुनाई दे नपुंसक शासक के लुटेरे पहरेदारों का साम्राज्य दिखे&nbs;तो क्या आँखों में पानी नहीं आएगा? और ऐसे ही दृश्य पलप्रतिपल दिखते रहें तो क्या आँसू की धारा अविरल नहीं होगी? सम्राट अशोक को ऐसे ही दृश्य ने द्रवित किया था। क्रूर और हिंसक सम्राट ऐसे एक दृश्य से इतना द्रवित हुआ कि उसने &nbs;सब कुछ छोड़ कर अहिंसा सत्य और तप का रास्ता अपना लिया। "करुण &nbs;वेश" में &nbs;बड़ी शक्ति है। &nbs;यह करुणवेश करुणा उपजाती है। &nbs;हृदय परिवर्तन करती है। &nbs;स्वयं का बोझ हलका करती है। "महाप्रलाप" अनगिनत अनैतिक दृश्यों का छोटा चित्र है। नैतिक मूल्यों पर चलने वाले नागरिकों का "करुण वेश" और "सामूहिक प्रलाप” नृशंस और हिंसक व्यक्तियों का हृदय परिवर्तन कर सकेगा यह मेरी धारणा है।//वरिष्ठ लेखक प्राणेन्द्र नाथ मिश्र एयर इंडिया (Air Indiaपहले इंडियन एयरलाइन्स) के साथ 35 वर्षों तक विमानों के रखरखाव के क्षेत्र से जुड़े होने के बाद 2012 में मुख्य प्रबंधक (इंजीनियरिंग) पूर्वी क्षेत्र के पद से अवकाश प्राप्त कर चुके हैं. जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ लेकिन अभी पश्चिम बंगाल में रहते हैं. प्राणेन्द्र जी ने एम एन आई टी इलाहाबाद उत्तर प्रदेश से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.ई. (BE) करने के बाद एम. बी. ए. (MBA) किया है. /प्राणेन्द्र जी विभिन्न पत्रपत्रिकाओं तथा अखबारों के लिए कविताएँ लिखते रहे हैं. तीन काव्य पुस्तकें अपने आस पास तुम से तथा मृत्युदर्शन लिख चुके हैं. दुर्गा के रूप काव्य संग्रह समाप्ति की ओर है. कुछ कहानियाँ एवं गज़लें (साकी ओ साकी..) जल्दी ही प्रकाशित होने वाली है. प्राणेन्द्र जी के द्वारा अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवादित कुछ लेख तथा उपन्यास “नए देवता” प्रकाशित हो चुके हैं और अनुवादित पुस्तक “अनुपस्थित पिता” प्रकाशन की ओर है./
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