MAHANIRVAT MEIN KOLAHAL (NOVEL)
Language | Hindi |
Publisher | Bodhi Prakashan |
Pages | - |
ISBN | NA |
Item Weight | 0.4 kg |
Dimensions | NA |
Edition | 1st |
MAHANIRVAT MEIN KOLAHAL (NOVEL)
भीतर की प्यास जब बढऩे लगती है तो जि़न्दगी की र$फ्तार अनुलोम अनुपात में बढ़ती चली जाती है। इसका प्रतिलोम भी उतना ही सच है कि जब जि़न्दगी की गति बहुत तीव्र हो जाती है तो प्यास आनुपातिक रूप से बढऩे लगती है। हमारे सामने कुआँ हो, तालाब हो या शांत-शीतल दरिया ही क्यों ना हो, सब अपनी प्यास के आगे छोटे मालूम पड़ते हैं। हम धीरे-धीरे बाकी चीजें भूलकर सिर्फ अपनी प्यास पर केंद्रित होने लगते हैं। और प्यास ऐसी कि अब उसे समंदर चाहिए, अथाह समंदर। कितना विचित्र लगता है सुनने-देखने में कि किसी की प्यास एक लोटा पानी ही बुझा देता है और कोई अपनी प्यास लेकर दरिया के किनारे-किनारे दौड़ते हुए समुद्र तट तक चला जाता है मगर वहाँ पहुँचकर भी प्यासा रह जाता है!
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