Mahamanav Mrityunjay
Author | R.K. Sinha |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9350488461 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.216 kg |
Edition | 1st |
Mahamanav Mrityunjay
वन की यात्रा वास्तव में कठिन है। एक व्यक्ति अपने कॅरियर के शिखर पर पहुँचने तक कई मील के पत्थर पार कर चुका होता है। रवीन्द्र किशोर सिन्हा के लिए जीवन 'कर्म ही पूजा है'। नियति को आकार देने के लिए भगवान् सभी के लिए गुरु को भेजते हैं, लेकिन कुछ ही ऐसे भाग्यशाली होते हैं, जिन्हें सही रास्ता दिखाने के लिए गुरु का मार्गदर्शन मिलता है। यह पुस्तक 'महामानव मृत्युञ्जय—मेरे गुरु' गुरुदेव मृत्युञ्जय और उनके शिष्य रवीन्द्र किशोर सिन्हा के बीच के अद्वितीय संबंध तथा लेखक के पत्रकार से एक अरबपति बनने की यात्रा को बयान करती है। यह बताती है कि कैसे एक साधारण राजनीतिक कार्यकर्ता राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित हुआ।गुरुदेव एक उत्कृष्ट मानव थे, जिनके साथ कई चमत्कार जुड़े हुए थे। गुरुजी नहीं चाहते थे कि श्री सिन्हा उनकी यौगिक उपलब्धियाँ एवं तांत्रिक क्रियाओं की चर्चा, जो वे अपने जीवनकाल में करते रहे, इस पुस्तक में करें। इस दुनिया को छोड़ने के बाद ही गुरुदेव ने लेखक को अपने बारे में लिखने की अनुमति दी थी। अपने गुरुदेव के निर्देशों का पालन करते हुए लेखक ने सचित्र जीवन-प्रगति की व्याख्या की है कि कैसे पृथ्वी पर कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है और यहाँ तक कि मौत का भी सामना करना पड़ता है। गुरुदेव के ���नुसार लेखक अपने जीवनकाल में जो भी कार्य कर रहे हैं, वह नियति ने पहले से ही तय कर रखा था। जीवन के रहस्यों को खोलती हुई, सरल शब्दों में लिखी गई, समर्पण और नियति की घटनाएँ इस पुस्तक को बहुत ही रुचिपूर्ण बनाती हैं।________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रममृत्यु से साक्षात्कार — Pgs. 9अपनी बात — Pgs. 171. चमत्कारिक मुलाकात — Pgs. 232. पत्रकारिता में प्रवेश — Pgs. 353. ढोंगी बाबाओं का भंडाफोड़ — Pgs. 424. पहली नजर में प्यार — Pgs. 655. चमत्कारी बाबा से भेंट — Pgs. 696. चमत्कार को नमस्कार — Pgs. 757. एक साथ दो शहरों में उपस्थिति — Pgs. 888. 26 वर्ष आगे की भविष्यवाणी — Pgs. 959. पटना प्रवास और भक्तों का उद्धार — Pgs. 11010. सिद्ध-स्रोत की यात्रा — Pgs. 12111. आपातकाल और नया व्यवसाय — Pgs. 13112. चुरू में नवरात्र का अनुष्ठान — Pgs. 14313. पटना में सुहृद संगम — Pgs. 15014. आनंदमयी माँ की समाधि — Pgs. 15715. खोया बैग वापस मिला — Pgs. 16416. अभी इंतजार करो — Pgs. 16917. राजरप्पा यात्रा एवं दीक्षा — Pgs. 17518. गुरुजी की अस्वस्थता — Pgs. 18519. अनपेक्षित कामाख्या यात्रा — Pgs. 19120. बाबाजी का दर्शन — Pgs. 21521. महाप्रयाण — Pgs. 23122. भविष्यवाणी सच हुई — Pgs. 236गुरुभाइयों के संस्मरण1. जन्म के पूर्व ही बिटिया की जन्मपत्री बना दी—डॉ. सुभाष त्यागी, मुजफ्फरनगर — Pgs. 2432. चमत्कारिक रूप से दर्शन—अमृतलाल वर्मा, लुधियाना — Pgs. 2513. यशोदा के कृष्ण जैसे रानी माँ के कुमार मृत्युञ्जय—इंदु भाई, दिल्ली — Pgs. 2594. और सूरज थम गया—अनुराधा चौधरी, गाजियाबाद — Pgs. 2635. साक्षात् शिव स्वरूप में दर्शन—डॉ. सुरेंद्र मोहन शर्मा, नकोदर (पंजाब) — Pgs. 2696. बेईमानों का हृदय परिवर्तन—हंसराज वर्मा, फरीदाबाद (हरियाणा) — Pgs. 2717. त्रिपुरसुंदरी रूप में दर्शन—गुलशन रानी, लुधियाना — Pgs. 2758. गुरु मंत्र अभी नहीं—रमेश टाँगड़ी — Pgs. 2799. गुरुदेव के जीवन का आखिरी दिन—स्वामी आत्मानंदजी (हरिद्वार) — Pgs. 28110. गुरुजी की शिक्षा जैसी मैंने समझी—पवन सर्राफ, मुंबई — Pgs. 28711. गुरुजी ने कराया भगवान् शंकर का दर्शन—स्वामी रामानंद सरस्वती — Pgs. 28912. शराब को गुलाबजल में बदला—अश्विनीजी (भूतपूर्व एम.पी.) — Pgs. 29213. पग-पग पर मार्गदर्शन—स्वामी आत्मबोधानंद — Pgs. 29514. पशुवत् जीवन से दिव्य जीवन की ओर—म.म. स्वामी — Pgs. 29715. परम पूज्य श्री गुरुदेव के श्रीचरणों में सादर समर्पित—साधनानंद — Pgs. 30216. मैं हूँ न तुम्हारे पास—सुनील कुमार, सीनियर एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट — Pgs. 30717. प्रारंभ से ही विलक्षण एवं चमत्कारी थे स्वामी मृत्युञ्जय — श्रीमती अदिति देसाई — Pgs. 31118. मृत्युञ्जय : एक विलक्षण सखा—मनोज चतुर्वेदी, एटा (उ.प्र.) — Pgs. 31619. अपनी अमानत सँभाल लो डॉक्टर—डॉ. बीणा पंडित — Pgs. 32020. और खाली झोली अपने आप भरती गई—सुभाष राय, लखनऊ — Pgs. 32321. अद्भुत दर्शन कराया गुरुजी ने—रतन लाल शर्मा, हरिद्वार — Pgs. 32822. स्वयं खड़े होकर मेरे सुहाग की रक्षा की — श्रीमती कृष्णा शर्मा, गाजियाबाद — Pgs. 330
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