
LINES / लकीरें
कथाकार-फिल्मकार समीना मिश्रा की एक और शानदार किताब है - लकीरें।
लकीरें... वे एक तरह का निशान होती हैं | जहाँ सिर्फ जगह ही जगह हो, वहाँ कितना भी चलने से 'यहाँ' और 'वहाँ' नहीं बनता | लेकिन एक महीन-सी लकीर उकेर देने से यहाँ और वहाँ बन उठते हैं | और निशान सिर्फ जगह का नहीं होकर हमारे भीतर बनने, बढ़ने लगता है | और कभी-कभी बस वही उठकर दिखता है | हर जगह, हर बात पर |
यह कविता ऐसी ही एक लकीर से जूझती एक आवाज़ से बनी है | लकीर जो इस बात से थोड़ी और खिंच जाती है कि वो एक लड़की है, जिसके घर का पता एक परेशां वतन है, जो अब एक अलग वतन में घर-परिवार-स्कूल की परेशानियों को जानती है, समझती है | लेकिन उम्मीद का सिरा थामे रहना चाहती है | कृपा के बनाए चित्र उस लकीर के हर रंग, हर पते और हर यहाँ और वहाँ को बेहद संवेदनशील लहज़े से थामे चलते हैं।
ISBN - 978-819706-38-7-9
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