Laldyad - Kaljayi Kavi Aur Unka Kavya
Author | Madhav Hada |
Language | Hindi |
Publisher | Rajpal and Sons |
Pages | 128 |
ISBN | 978-9393267825 |
Item Weight | 0.001 kg |
Laldyad - Kaljayi Kavi Aur Unka Kavya
गागर में सागर की तरह इस पुस्तक में हिन्दी के कालजयी कवियों की विपुल काव्य-रचना में से श्रेष्ठतम और प्रतिनिधि काव्य का संकलन विस्तृत विवेचन के साथ प्रस्तुत है।
ललेश्वरी, लल्ला, ललयोगेश्वरी - इन सब नामों से जानी जाती हैं कश्मीर की महिला भक्त-कवयित्री - ललद्यद। 1317 से 1320 ई. के बीच कभी जन्मी ललद्यद कश्मीर की अपनी अलग प्रकार की सांस्कृतिक परिस्थितियों और बोध की पैदाइश हैं। उनका छोटी उम्र में ही विवाह हो गया था लेकिन उससे भी उनकी ईश्वर के प्रति आस्था में कोई कमी नहीं हुई। उन पर शैव दर्शन का बहुत गहरा प्रभाव था और जिससे प्रेरित होकर वे अपनी कविता करती थीं, जिसको ‘वाख’ कहते हैं। उनके वाखों में ईश्वर के प्रति भक्ति भाव के अतिरिक्त उनकी अपनी निजी ज़िन्दगी के दुख-दर्द झलकते हैं। दक्षिण की भक्त-कवियित्री अक्क महादेवी की तरह ललद्यद भी निर्वस्त्र ही रहती थीं। इस संकलन में ललद्यद के 178 चुने हुए वाखों का भाव-रूपांतर प्रस्तुत है।
इस पुस्तक का चयन व संपादन माधव हाड़ा ने किया है, जिनकी ख्याति भक्तिकाल के मर्मज्ञ के रूप में है। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष माधव हाड़ा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फ़ैलो रहे हैं। संप्रति वे साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की साधारण सभा और हिन्दी परामर्श मंडल के सदस्य हैं।
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