KUCHH HAMARI, KUCHH TUMHARI, KUCHH ZAMANE KI (GHAZALS)
Publisher | Bodhi Prakashan |
Pages | 120 pages |
ISBN | NA |
Item Weight | 0.4 kg |
Dimensions | NA |
Edition | 1st |
KUCHH HAMARI, KUCHH TUMHARI, KUCHH ZAMANE KI (GHAZALS)
ग़ज़ल उर्दू अदब की एक ऐसी मकनातीस (चुंबकीय) विधा है, जिसकी तरफ अहसासमंद इनसान खिंचा चला आता है या यूँ कहा जाये कि जिसका जादू सर चढ़ के बोलता है। शेर के दो मिसरों में इतनी ताकत है कि बड़े से बड़े मौजू दो मिसरों में पूरी शिद्दत और मुकम्मल तरीके से बयान किये जा सकते हैं, जो दिल में उतर जाये तो कहने वाले की आह सुनने वाले का दर्द बनकर ज़ुबां से वाह की सूरत अदा हो जाती है। यही वजह है कि ग़ज़ल इतनी मकबूल हुई कि इसने ज़बानों (भाषाओं) के हिसार तोड़ दिये। अरबी-फारसी के अलावा आज ग़ज़ल भारतीय भाषाओं में अपने इलाक़ाई तहज़ीब को शामिल करते हुए लिखी जा रही है। इसके चाहने वाले दुनिया में बेशुमार हैं और दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं तो अपने चाहने वालों से ग़ज़ल कुछ तकाजे भी करती है। कहने को बहुत कुछ है और बहुत कुछ कहा भी गया है। आगे भी कहा जाता रहेगा, मगर यहाँ बात अशोक कुमार के ग़ज़ल संग्रह की करें तो लगता है कि कुछ कहने की तड़प इन्हें गज़ल की ओर ले आई है। यही वजह है कि अशोक कुमार ने अपने ग़ज़ल संग्रह का नाम 'कुछ हमारी, कुछ तुम्हारी, कुछ ज़माने की' रखा है, जिससे गुज़रते हुए अशोक कुमार से रूबरू हुआ तो रुका, देखा जब कोई कलमकार अपने वक़्त में होने वाली दिल सोज़ तब्दीलियों से दो-चार होता है तो बेचैन हो उठता है। -इरशाद अज़ीज़
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