KOI KONI BETHO THALO
Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-9387252844 |
Author | NEERAJ DAIYA |
Language | Rajasthani |
Publisher | Surya Prakashan Mandir |
Pages | 80 |
Book Type | Paperback |
Dimensions | 16*X14*X4* |
Publishing year | 2020 |
Edition | FIRST |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

KOI KONI BETHO THALO
आधुनिक राजस्थानी साहित्यकारां री नवी पीढी रै हरावळ में डॉ. नीरज दइया अेक सरब मांनीतौ अर बाजिंदौ नांव। बरस 1989 मांय नीरज री पैली पोथी रै रूप में लघुकथा संग्रै छप्यौ हौ। उण संग्रै सूं लेयर अबार तांईं साहित्य री न्यारी-न्यारी विधावां मांय वां री लगैटगै चाळीस नैड़ी पोथ्यां छप चुकी है। म्हैं नीरज नै उणरै टाबरपणै सूं जांणूं जद सूं वौ कलम सांभी ही। नीरज रा जीसा राजस्थानी अर हिंदी रा चावा अर ठावा साहित्यकार सांवर दइया फगत म्हारा गाढा मीत ई नीं हा, म्हारै सारू वै सगा भाई सूं ई बता हा। घणी ई कमती उमर लिखायनै लाया हा, पण आपरी इण ओछी उमर में ई वै राजस्थानी में गद्य-पद्य साहित्य रौ सांवठौ सिरजण कर निरौ ई जस कमायौ अर हरावळ रै साहित्यकारां रै बिचाळै आपरी ठावी ठौड़ बणाय अनै मांन-सनमांन ई पायौ। राजस्थानी कहाणी-संग्रै ‘अेक दुनिया म्हारी’ माथै बरस 1985 में वांनै साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रौ पुरस्कार ई मिळियौ। गुमेज री बात कै वै नीरज नै उणरै टाबरपणै में ई साहित्य सिरजण रा संस्कार अर समझ सूंपग्या। नीरज दइया आपरी इणी समझ अर ऊरमा रै पांण अेकण कांनी लघुकथा, बाळकथा, कविता, समीक्षा-आलोचणा, व्यंग्य इत्याद साहित्य विधावां में मौलिक सिरजण करनै तौ दूजै ई कांनी पत्रिकावां अर पोथ्यां रौ संपादन अर उल्थौ-अनुसिरजण रौ सांवठौ कांम कर जस कमायौ है। सम माथै आयनै म्हैं उल्थाकार नीरज री बात करूं तौ कैवणौ पड़ैला कै लारलै बरसां में वै कीं खासा कांम करिया है जिण सूं वां री पैठ सवाई व्ही है। वां रै इण कांम री राजस्थानी ई नीं हिंदी पट्टी में ई घणी सरावण व्ही है। हिंदी मांय ‘101 राजस्थानी कहानियां’ अर ‘रेत में नहाया है मन’ जिसी पोथ्यां रै ओळावै, राजस्थानी सूं उल्थौ कर हिंदी मांय आधुनिक राजस्थानी कहांणी अर कविता नै लेय जावण रौ गीरबै जोग कांम करियौ है। वठै ई अपां नीरज रै करियोड़ौ केई पोथ्यां रौ उल्थौ ई देख सकां। बरस 2000 मांय वां रै अनुसिरजक री ओळख ‘कागद अर कैनवास’ (अमृता प्रीतम) सूं व्ही। निर्मल वर्मा, भोलाभाई पटेल, सुधीर सक्सेना, ओम गोस्वामी, डॉ. संजीव कुमार आद री पोथ्यां राजस्थानी मांय अर मोहन आलोक, मधु आचार्य ‘आशावादी’ री पोथ्यां हिंदी मांय लेय जावण रौ सिरजणाऊ कांम वां री साख नै बधावै। भारतीय भासावां की टाळवीं कवितावां रौ संग्रै ‘सबद नाद’ अर राजस्थानी रै मोट्यार कवियां री कवितावां रौ संग्रै मंडाण’ नीरज री सिरजणाऊ दीठ री साख भरै। अै कांम घणै बगत तांई याद राखण जोगा है। आप जांणौ ई हौ कै नीरज रै करियोड़ै उल्था मांय डॉ. नंदकिशोर अचार्य री टाळवीं कवितावां रौ संग्रै ‘ऊंडै अंधारै कठैई’ छप्यौ, जिण नै ‘कथा संस्थान, जोधपुर’ राज्य स्तरीय डॉ. नारायणसिंह भाटी सम्मान भेंट करनै वां रै अनुसिरजण री सरावणा ई करी। ...इण तरै नीरज री आज तांईं री पूरी रचनात्मकता रै ओळावै म्हैं इतरौ कैय सकूं कै ‘भूतौ न भविष्यति’ जैड़ी बात बणी है। जयप्रकाश मानस हिंदी रा चावा अर ठावा कवि हैं। आपरी कवितावां रै कथ्य रौ पाट ई घणौ चौड़ौ है- गांव-गुवाड़, स्हैर अर महानगर तांईं ई नीं इण मांय स्रस्टि जगत रा सगळा ई कुदरती वौपार समायोड़ा है तौ आपरै बगत रै बायरै सूं ई वै अणजांण कोनीं रैवै। आपरी कविता री भासा, भाव अर बुणगट रै ओळावै कूंत करतां म्हैं कैय सकूं कै मानस जी गागर में सागर भरणिया कवि है। आपरी कवितावां बिंबां अर प्रतीकां रै ओपतै अर फाबतै प्रयोग सूं सवाई व्ही है। घणै गीरबै रै सागै अठै म्हैं अठै आप पढाकां सारू दो बिंबात्मक कवितावां निजर कर रैयौ हूं : कोई कोनी बैठो ठालो/ कीड़ा ई सड़्या-गळ्या पानड़ा नै खावै/ कीं रेसम बणावै/ अळिया आसोज आयां सूं पैली/ उथल-पुथल कर देवणी चावै धरती बन-पांखी ई तिणकला-कचरै नै बदळ रैया आळै मांय/ भंवरा फूंलां सूं अंवेरै रस/ अर सांप धान-बिगाड़ ऊंदरां री ताक मांय/ काळै बादळां रै पंजां सूं किरणां नै बचावण/ कसमसीजतो चांद पिरथवी रै रूपास मांय आं रो ई कीं सायरो हुवैला/ आं मांय सूं किणी नै ठाह कोनी/ फेर ई बै है कै लाग्योड़ा इणी रामधुन मांय अर अठीनै/ रूपाळी पिरथ्वी रै सुपनां माथै फगत बकबक। (कोई कोनी बैठो ठालो, पेज-36) ०००० थोड़ी’क घास/ थोड़ी’क झाड़्यां/ कमर माथै बैठ/ गीत गांवती चिडक़लियां/ थोड़ी’क बावडिय़ां/ थोड़ा’क छियां आळा रूंख/ इण सूं बेसी कीं कोनी हुवै/ छाळ्यां रै सुपनां मांय। (सुपनो, पेज-42) मानस जी साहित्य सिरजण रै अलावा दूजै कांनी ‘राजभाषा हिंदी’ रै प्रचार-प्रसार खातर जसजोग कांम सांभ राख्यौ है। वै देस-विदेस में सतरै-अठारै ‘अन्तरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनां’ रौ तेवड़ कर चुक्या है। म्हनै वां रै साथै तासकंद-उज्बेकिस्तान अर मास्को-रूस री जातरा करण रौ सुख मिळयौ है। नीरज जद म्हनै मानस जी री हिंदी कवितावां रै उल्था री आ पांडुलिपि खिनाई तद लारली सगळी बातां म्हारै चितार चढगी। विचार आयौ कै कितरा भारी खंवा मिनख है, मानस जी। अैड़ा लाखीणा मिनख सोध्यां ई कठै मिळै है! कवि ई उतरा ई मोटा। जयप्रकाश मानस री टाळवीं कवितावां रौ औ संग्रै ‘कोई कोनी बैठो ठालो’ सांचांणी अेक अणमोल हेमांणी मांनीजैला। राजस्थानी पढाकां रै मन-मगज में पकायत ई चांनणौ करैला। अनुवादक नीरज दइया रै इण सांतरै उल्थै नै भणियां यूं लागै जांणै खुद मानस जी आं कवितावां नै मूळ राजस्थानी मांय ई सिरजी है, आ इण उल्थै री सरावणजोग बात है। अठै म्हैं राजस्थानी भासा री अेकरूपता पेटै ई बात करणी चावूं कै अबै बगत आयग्यौ है जद आपां सगळां नै हिळ-मिळ बैठनै अेक निरणै माथै पूगणौ है जिण सूं आवण आळी पीढी भासा री अेकरूपता पेटै आपरी समझ अर सोजी नै सखरी अर खरी कर सकै। दाखलै रूप बात कैवूं तौ ओकारांत री ठौड़ औकारांत रौ नेम मांनणौ राजस्थानी री मोटी जरूरत है, जिकौ सईकां सूं राजस्थानी भासा री एक अलायदी पिछांण बणायोड़ौ है। अेकरूपता सारू बीजी औरूं ई केई बातां हैं जिकी बगत-बगत माथै साहित्यकारां तै करी है। खैर अै बातां फेरूं ई विगतवार कदैई करसूं। सार रूप मांय कैवूं तौ ‘कोई कोनी बैठो ठालो’ अनुसिरजण संग्रै री अेकूकी कविता नै म्हैं घणी गैराई में जायनै बांची-देखी-परखी है। जिण रूप मांय आपां रै सांम्ही है उणनै भणिया कैयौ जा सकै कै ओ भारतीय कविता रै सीगै अेक महतावू अनुसिरजण संग्रै है। इण संग्रै रै उल्थाकार कवि डॉ. नीरज दइया नै सरावण जोग उल्थै सारू घणां-घणां रंग। - - मीठेस निरमोही (वरिष्ठ कवि-संपादक)
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