KHDIYA
Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-9392252-19-8 |
Author | VAZDA KHAN |
Language | Hindi |
Publisher | Suryaprakashan Mandir |
Book Type | Paperback |
Publishing year | 2022 |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

KHDIYA
एक कवि का एकान्त- वाज़दा ख़ान वाज़दा खान की ये नव्यतम कविताएं हमें उनके रचनात्मक सफर से तो वाकिफ़ करती ही हैं, उनके चेतना जगत के विस्तार का आसमान भी दिखाती हैं। ज़ाहिर है यह बढ़त और गढ़त उन्होंने रातोंरात हासिल नहीं की है बल्कि इसके पीछे उनकी शिक्षा, शौक और संवेदना की लम्बी पृष्ठभूमि है। वाज़दा चित्रकार भी हैं। उनके लिए हर कविता एक कैनवस है जिस पर वे शब्द नहीं रंग बिखेरती चलती हैं। उनकी कविताओं में भी रंगों का उल्लेख बार बार आता है। चित्रों में रंगों की भाषा है और रंगों में शब्दों के चित्र। उनकी एक कविता है उजाला उसकी शुरुआत ऐसे है: ऐसे नहीं आता उजाला साथ अपने अन्धेरा भी लाता है कई बार उजाले की चमक अन्धेरे को उजला कर देती है। इसी तरह असम्भव की क्रिया कविता की पंक्तियाँ हैं: सफेद काले चित्र सी सौन्दर्यमयी मीमांसा कितनी उदात्त, कितनी मधुर पर कालों का अन्धेरा भी बहुत गाढ़ा है.... वाजदा की कविताओं में लय और संतुलन की आवाजाही होती रहती है। वे एक मुश्किल दुनिया पकड़ने का प्रयत्न करती हैं। उनके यहां इसीलिए रंग, गंध और रुप अपनी तीव्रता में धारावाहिक चलते हैं। कई बार एक कविता में से ही अगली कविता फूट कर निकलती है जैसे पिछली तस्वीर में कोई रंग शामिल होने से रह गया हो। कवि वाज़दा के अंदर एक रचनात्मक बेचैनी की लपट हमेशा सुलगती रहती है। उनका एकांत प्रशांत नहीं अशांत है।
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