Kaun Kutil Khal Kami
Author | Prem Janmejay |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9386870070 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.2 kg |
Edition | 1st |
Kaun Kutil Khal Kami
बहुत आवश्यक है सामाजिक एवं आर्थिक विसंगतियों को पहचानने तथा उन पर दिशायुक्त प्रहार करने की। पिछले दस वर्षों में पूँजी के बढ़ते प्रभाव, बाजारवाद, उपभोक्तावाद एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों की 'संस्कृति' के भारतीय परिवेश में चमकदार प्रवेश ने हमारी मौलिकता का हनन किया है। दिल्ली की जिन गलियों को कभी शायर छोड़कर नहीं जाना चाहता था अब वही गलियाँ मॉल-संस्कृति की शोभा बढ़ाने के लिए दिल्ली को छोड़कर जा रही हैं। अचानक दूसरों का कबाड़ हमारी सुंदरता और हमारी सुंदरता दूसरों का कबाड़ बन रही है। सौंदर्यीकरण के नाम पर, चाहे वो भगवान् का हो या शहर का, मूल समस्याओं को दरकिनार किया जा रहा है। धन के बल पर आप किसी भी राष्ट्र को श्मशान में बदलने और अपने श्मशान को मॉल की तरह चमकाकर बेचने की ताकत रखते हैं।नंगई की मार्केटिंग का धंधा जोरों पर चल रहा है और साहित्य में भी ऐसे धंधेबाजों का समुचित विकास हो रहा है। कुटिल-खल-कामी बनने का बाजार गरम है। एक महत्त्वपूर्ण प्रतियोगिता चल रही है—तेरी कमीज मेरी कमीज से इतनी काली कैसे? इस क्षेत्र में जो जितना काला है उसका जीवन उतना ही उजला है। कुटिल-खलकामी होना जीवन में सफलता की महत्त्वपूर्ण कुंजी है। इस कुंजी को प्राप्त करते ही समृद्धि के समस्त ताले खुल जाते हैं।व्यंग्य को एक गंभीर कर्म तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विधा माननेवाले प्रेम जनमेजय ने हिंदी व्यंग्य को सही दिशा देने में सार्थक भूमिका निभाई है। परंपरागत विषयों से हटकर प्रेम जनमेजय ने समाज में व्याप्त आर्थिक विसंगतियों तथा सांस्कृतिक प्रदूषण को चित्रित किया है। प्रस्तुत संकलन हिंदी व्यंग्य साहित्य में बढ़ती अराजक स्थिति से लड़ने का एक कारगर हथियार सिद्ध होगा।______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________विषय-सूची1. इक श्मशान बने न्यारा — Pgs. 132. कौन कुटिल खल कामी — Pgs. 203. हमारे नापिताचार्य — Pgs. 254. देख, खेल का खेल — Pgs. 305. चारा और बेचारा — Pgs. 326. बिन मोबाइल सब — Pgs. 367. प्रवासी से प्रेम — Pgs. 438. पुरस्कारं देहि! — Pgs. 489. अध्यक्षस्य प्रथम दिवसे — Pgs. 5510. माथे की बिंदी — Pgs. 6011. मौसमे-आँधी — Pgs. 6512. ये पीडि़त जनम-जनम के — Pgs. 6913. एक्सचेंज ऑफर — Pgs. 7314. अरे, सुन ओ साँप! — Pgs. 7715. रहिए अब ऐसी जगह — Pgs. 8116. एक अनार के कई बीमार — Pgs. 8517. सुन बे प्याज! — Pgs. 8818. ...तो पागल है — Pgs. 9219. एक और स्वच्छ प्रधानमंत्री — Pgs. 9520. अथ रावण अवतार कथा — Pgs. 9821. मैया, मोही विदेस बहुत भायो — Pgs. 10122. जुगाड़ संस्कृति — Pgs. 10523. हिंदी का कंप्यूटर — Pgs. 11024. सुन बे रक्तचाप! — Pgs. 11525. गीत का फिल्मी होना और फिल्म का — Pgs. 11926. कन्या-रत्न का दर्द — Pgs. 12427. राम, पढ़ मत, मत पढ़ — Pgs. 12828. हिंदी-हिंदी एवरीवेयर — Pgs. 13329. ब्लू आई बसें—इन्हें बंद मत करना मेरी सरकार — Pgs. 13830. फूल और पत्थर का देश — Pgs. 14131. होलियाने अवार्ड — Pgs. 14432. कैसी-कैसी होली खेलत — Pgs. 152
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