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About Book

हर कथा के अन्दर एक अन्तर्कथा होती है और कथा का समय दर समय अन्तर्पाठ होता है। हर पाठ अपने समय के अनुसार अपने अर्थ को बदलने की क्षमता रखता है और इसके पीछे जो दो सबसे बड़े कारण हैं वे हैं एक तो समय में आए हुए परिवर्तन और अन्तर्पाठ करने वाले/वाली की अस्मिता और उसका दृष्टिकोण। पूरा सबाल्टर्न डिस्कोर्स इसी आधार पर तैयार हुआ है और इसी आधार पर दुनिया के तमाम साहित्य के अर्थों में समय दर समय परिवर्तन आते रहे हैं। चर्चित लेखिका ज्योति चावला की यह पुस्तक कथा-अन्तर्कथा-अन्तर्पाठ अपने समय के कुछ महत्त्वपूर्ण कथाओं का अन्तर्पाठ इस सन्दर्भ में है कि एक तो यह इक्कीसवीं सदी में खड़े होकर इन पाठों को देखने की कोशिश है और दूसरी यह कि यह एक लेखिका के द्वारा कथाओं को समझने का प्रयास है। इसे जानना नितान्त आवश्यक है कि एक स्त्री उन्हीं पात्रों को किस तरह देखती है जिनका निर्माण पुरुष लेखक के द्वारा किया गया है। 1991 के उपरान्त भारतीय सामाजिक संरचना में जो महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए यह पुस्तक इन परिवर्तनों के उपरान्त बदले हुए समाज के बरअक्स साहित्य को रखकर देखने का प्रयास भी है। कोई साहित्य कैसे एक सम्भावनाशील साहित्य होता है और कैसे वह भविष्य को देख सकता है इसे इस पुस्तक को पढ़कर समझा जया सकता है। उदाहरण के रूप में लेखिका ने महत्त्वपूर्ण लेखक ज्ञानरंजन की कहानी ‘पिता’ को बाजारवाद की पूर्वपीठिका के रूप में देखा है और वहीं रेणु की कहानी ‘पंचलाइट’ को यांत्रिकीकरण की शुरुआत के रूप में।

यह एक ऐसे आलोचकीय विवेक की पुस्तक है जहाँ एक लेखिका के अपने लेखकीय व्यक्तित्व की समझ भी है और अपने परिवर्तित समय की समझ भी। कुल मिलाकर यह पुस्तक हिन्दी साहित्य के कुछ महत्त्वपूर्ण कथाओं के मार्फत अपने समय, समाज और साहित्य के बीच के अंतरसम्बन्ध को समझने का प्रयास है। यहाँ बदला हुआ समाज, लेखकीय समझ और स्त्री अस्मिता अंतर्गुम्फित है।

About Author

ज्योति चावला

अभी तक दो कविता-संग्रह—'माँ का जवान चेहरा’ और 'जैसे कोई उदास लौट जाए दरवाजे से’ क्रमश: आधार प्रकाशन और वाणी प्रकाशन से प्रकाशित। एक कहानी-संग्रह 'अँधेरे की कोई शक्ल नहीं होती’ आधार प्रकाशन से प्रकाशित। कविताएँ और कहानियाँ विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित। कहानियाँ महत्त्वपूर्ण कहानी-संकलनों में संकलित। कविता के लिए शीला सिद्धान्तकर स्मृति सम्मान, 2014 और जे.सी. जोशी शब्द साधक कविता सम्मान, 2018। सृजनात्मक साहित्य के अलावा अनुवाद के उत्तर-आधुनिक विमर्श में खास रुचि। इन दिनों कविताओं, कहानियों के अतिरिक्ïत इस विषय पर सक्रियता से लेखन।

इन्दिरा गांधी राष्ïट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली में अध्यापन।

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