Kamnaheen Patta
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Author | Poonam Arora |
Publisher | Vani Prakashan |

Kamnaheen Patta
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पूनम अरोड़ा की कविताएँ आत्मबोध और आत्मसन्धान की कविताएँ हैं और सीधे ही काव्य प्रेमी पाठक के अन्तर्मन में उतर जाने वाली हैं। कारण यही है कि यह ‘सन्धान' और 'बोध' पाठक को इतना अपना मालूम पड़ता है कि वह भी मानो इनके समान्तर होने की एक प्रक्रिया में उतर जाता है और कविता में प्रस्तावित प्रश्नों, कथनों और सूक्ष्म अभिव्यक्तियों को स्वयं भी जाँचने लगता है और यह प्रक्रिया अपने आप में एक दिलचस्प और सरस प्रक्रिया भी बन जाती है। गौरतलब है कि पूनम का आत्मबोध (और उसका सन्धान) केवल अन्तर्मन और बुद्धि वैभव पर निर्भर नहीं है। सन्धान की इस प्रक्रिया में देह भी शामिल है। चाहे तो कह लें कि अलौकिक, आत्मिक, सामाजिक-नैतिक इन सभी को यह सन्धान ध्यान में रखता है। यह अपने आप में एक कठिन चीज़ है, कवि-चित्त के लिए, कि वह इन सभी स्तरों पर एक साथ (या क्रमशः भी) शामिल हो, सक्रिय हो, पर पूनम दूर तक इस काम को सँभाल पाती हैं, यही इन कविताओं की एक बड़ी ख़ूबी है। शब्दों के प्रति उनकी पारदर्शी संवेदना और समझ अचूक है और यह बात उनकी कविताओं के प्रति किसी को भी आकर्षित कर सकती है। सबसे पहले मैंने उनकी कविताएँ ‘समास' पत्रिका में पढ़ी थीं और उन्हें पढ़कर पूनम के शेष कामकाज के प्रति उत्सुक हो उठा था। तब से जहाँ भी उनकी रचनाएँ दिखती रहीं गहरी दिलचस्पी के साथ पढ़ता रहा। जैसे कोई चित्रकार अपने किसी चित्र में, एक चित्र स्पेस का बोध कराता है, पूनम भी एक ऐसे स्पेस का बोध कराती हैं, जो विस्तृत है, खुलता भी जाता है (उन्हीं के शब्दों से) पर बन्द नहीं हो पाता : अपनी एक विस्तृत प्रतीति लिए ही रहता है। यह स्पेस तिथिहीन भी लगता है जिसमें स्वयं पूनम प्रायः तिथियों के साथ नहीं बल्कि अपने काल-बोध के साथ प्रवेश करती हैं। ये पंक्तियाँ देखिए–'सूरज रोज़ एक तंज़ करता है/कि मैंने कितनी कहानियाँ और अपने पुरखों की पीली आँखें भुला दीं/मैं सोचती हूँ/क्या सच में ऐसा हुआ है। दरअसल, पूनम की कविताओं का वह पक्ष भी मुझे बहुत शोभता है जिसमें बचपन और यौवन की देखी-सुनी बातें, कुछ स्मृति में कुछ विस्मृति में, अन्तःआकाश में खुलती जाती हैं : सूरज, चाँद, तारों के साथ सृष्टि की बीसियों चीज़ों को लिए और उन्हें एक नये जीवनानुभव में तब्दील कर देती हैं। हम स्वयं कुछ ताज़ा हो उठते हैं -सृष्टि को, संसार को, देखने-समझने के लिए बहुत महीन, बहुत रोचक, बहुत करुण तल–अतल स्पर्शी है पूनम का स्वर इस काव्य-स्वर का, इस संग्रह के साथ, साहित्य जगत् में भरपूर स्वागत होगा, इसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है। -प्रयाग शुक्ल
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