Kamal Kumar Ki Lokpriya Kahaniyan
| Item Weight | 250 Grams |
| ISBN | 978-9351862840 |
| Author | Kamal Kumar |
| Language | Hindi |
| Publisher | Prabhat Prakashan |
| Book Type | Hardbound |
| Publishing year | 2015 |
| Edition | 1st |
| Return Policy | 5 days Return and Exchange |
Kamal Kumar Ki Lokpriya Kahaniyan
कमल कुमार की कहानियों का फलक विस्तृत है, पर वैचारिकी गहन है। ये कहानियाँ गहरे सराकारों की कहानियाँ हैं। इनकी कहानियों को पढ़ना स्त्री-जीवन से साक्षात् करना है। परिवार में पुरुष सत्ता की अदृश्य हिंसा, अन्याय और उत्पीड़न सहती विवश स्त्रियों हैं। 'हम औरतें छतरियों की तरह होती हैं। तपती धूप और बारिश में भीगती, अपने घर और बच्चों पर तनी हुई उन्हें बचाती हैं।' वहीं पुरुष सामंतशाही के छद्म से निकलकर अपने जीवन का अर्थ तलाशती स्त्रियाँ भी हैं। समाज में व्याप्त रूढि़यों, संकीर्णताओं, असंगतियों जैसी विकट स्थितियों के बीच संचरण करती अपनी आशाओं और आकांक्षाओं का सूक्ष्म वितान बुनती हैं। कमल कुमार का स्त्री विमर्श देह-विमर्श नहीं है। स्त्री की अस्मिता और उसके मानवाधिकारों का स्त्री विमर्श है। इसमें स्त्री के सम्मान और समान भाव की तार्किकता और रचनात्मक दृष्टि है।कमल कुमार की कहानियाँ जीवन के बहुविध अनुभवों की कहानियाँ हैं; जिनमें आसक्ति, आस्था, आशा और जीवन का स्पंदन है। कभी न परास्त होता 'अपराजेय' भाव है। वहीं सामाजिक, धार्मिक रूढि़यों, विसंगतियों और विषमताओं पर प्रहार भी है। 'काफिर' आखिर है कौन? सवालों की धार पाठकों को बेचैन करती है। यही इन कहानियों की सार्थकता भी है।_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमभारतीय मनीषा : कहानी की मनीषा — Pgs. 51. अपना शहर — Pgs. 112. लोकतंत्र — Pgs. 233. महक — Pgs. 384. लहाश — Pgs. 445. कमलिनी — Pgs. 506. काफिर — Pgs. 567. नालायक — Pgs. 638. जंगल — Pgs. 759. धारावी — Pgs. 8710. अपराजेय — Pgs. 9411. मदर मेरी — Pgs. 10312. करोड़पति — Pgs. 10913. कुकुज नेस्ट — Pgs. 11914. घर-बेघर — Pgs. 13115. अनुत्तरित — Pgs. 14016. पुल — Pgs. 15117. पिंडदान — Pgs. 161
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