Kalbelia : Geet Aur Nritya
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-8186103170 |
Author | Mohan Lal Jod |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthagar |
Pages | NA |
Book Type | Paperback |
Publishing year | 2011 |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Kalbelia : Geet Aur Nritya
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कालबेलिया गीत और नृत्य : राजस्थान की अनेक घुमन्तु जातियों में से एक जाति है 8211; कालबेलिया या सपेरा । रीति रिवाज और आचार विचार की विभिन्नता होते हुए भी व्यवसायिक तौर पर यह जाति पूरे भारत में फैली हुई है। सांप का नाम सुनते ही आम आदमी भय से सिहर जाता है। वहीं सांप कालबेलियों की आजीविका का मुख्य साधन है। सांप पकड़ना, पूंगी की धुन पर सांप को लहराना, नाचना, गाना और विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटिया बेचना इनकी दिनचर्या का प्रमुख अंग हैं। कालबेलियों द्वारा सर्प को वश में करना विकास और विनाश दोनों को दर्शाता है। उनके सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टियों से विचित्र चिन्ह हैं। सांप पकड़ना उनकी चतुराई पर निर्भर नहीं करता है, यह उनके संगीत और नृत्य पर निर्भर करता है। एक अच्छा गायक और पूंगी बजाने वाला ही सफल कालबेलिया बन सकता है। पूंगी इनका मुख्य और मोहक वाद्ययंत्र है। कालबेलियों को संगीत की प्राकृतिक देन हैं। इनकी औरतों की पोशाक बड़ी कलात्मक और रंग बिरंगे चटकीले बूंटे, कांच, मणियां और कोडियों से गुंथी होती है। चोली पर भी बड़ी आकर्षक बेल बूटों की कढ़ाई रहती हैं। घाघरा बड़े घूमर का होता है जो इनके नृत्य के समय सुन्दर रूप से लहराता है। कई दृष्टियों से कालबेलिया (सपेरा) अजीब आदिवासियों में हैं। अध्ययन और खोज के लिए इनका जीवन एक स्वतंत्र विषय है।RelatedTRUE
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