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Kabira Baitha Debate Mein
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मीडिया, बाजार, राजनीति, खेल, समाज और सोशल मीडिया, जिधर दृष्टि दौड़ाइए, विसंगतियाँ हैं, इसलिए व्यंग्य की भरपूर गुंजाइश है। इन विसंगतियों को देखने की लेखक की अपनी अलग दृष्टि है, जिनसे रोचक व्यंग्य पैदा हुए हैं। इस व्यंग्य-संग्रह की विशिष्टता है इसके विषय और भाषा-शैली। लेखक टिकटॉक के जरिए समाजवाद लाने की परिकल्पना करता है तो समाचार चैनल की प्राइम टाइम बहस में कबीरदासजी को बैठाकर वर्तमान टी.वी. बहस के स्तर का निर्मम पोस्टमार्टम करता है। दरअसल, इस व्यंग्य-संग्रह का हर आलेख विषय के स्तर पर पाठक को चौंकाता है।व्यंग्य संकलन का हर व्यंग्य पाठक को आरंभ में गुदगुदाता है, कभी-कभार हँसाता है और फिर विसंगति पर कड़ा प्रहार करते हुए पाठक को सोचने के लिए विवश करता है। यह लेखक की अपनी एक विशिष्ट शैली है।लेखक स्वयं टी.वी. पत्रकार, पटकथा लेखक और फिल्मकार हैं तो भाषा की सहजता-सरलता और संक्षिप्तता व्यंग्य संग्रह की यू.एस.पी. है। लेखक के 'वन-लाइनर' पाठकों को अतिरिक्त आनंद देते हैं। हाँ, बत���र व्यंग्यकार लेखक ने स्वयं को भी नहीं बख्शा है। कई जगह खुद को कठघरे में रखते हुए समाज को आईना दिखाने की कोशिश की है।व्यंग्यकार की यही ईमानदारी शायद पाठकों को भाए भी। ___________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमव्यंग्यकार के मन की बात—Pgs. 71. कबीरा बैठा डिबेट में—Pgs. 152. भागते रहो—Pgs. 233. ज्ञान बाँटते चलो—Pgs. 264. जंगलश्री के इंतजार में—Pgs. 295. पाँच मिनट में लेखक बनिए—Pgs. 336. पी.टी.एम. कथाएँ—Pgs. 377. जुए पर जुआरी का पॉइंट ऑफ व्यू—Pgs. 408. टिक-टॉक बबुआ समाजवाद लाई—Pgs. 429. कसरती काया की माया—Pgs. 4410. पत्रकारिता में अनुप्रास अलंकार—Pgs. 4711. जेबतराशी से वोटतराशी तक—Pgs. 5112. जनता के मन की बात—Pgs. 5413. काम वही, वचन नए—Pgs. 5714. ढाई आखर का समाजशास्त्र—Pgs. 6015. भूख-हड़ताल से पहले क्रैश कोर्स—Pgs. 6316. ओए बगदादी, तू मर नहीं सकता!—Pgs. 6517. मुंगेरीलाल के खयाल—Pgs. 6718. आयोजनात्मक ज्ञान को नमन—Pgs. 7019. दिल्ली में बंदर राज!—Pgs. 7220. काम में लगे रहिए—Pgs. 7421. मंदी बनाम चालान—Pgs. 7622. हर तरफ हनीट्रैपिंग—Pgs. 7823. मिलावट का स्वर्ण काल—Pgs. 8024. सिस्टम के 'चूहों' का आतंक—Pgs. 8225. आधी रात आजादी से मुठभेड़—Pgs. 8426. ताजमहल पर निठल्ला चिंतन—Pgs. 8627. आम आदमी पर बायोपिक कब?—Pgs. 8928. मुंबई बारिश की चिंता किसे? —Pgs. 9129. कट्टा और प्रेमिका —Pgs. 9330. 'अंडरवर्ल्ड बाबाओं' की गुप्त बैठक—Pgs. 9631. बिकाऊ घोड़े का लैटर—Pgs. 9832. राष्ट्रीय नृत्य बने नागिन डांस—Pgs. 10033. कहाँ है अंतरात्मा की आवाज?—Pgs. 10334. कहाँ हो कॉमरेड?—Pgs. 10635. आतंकियों की गुप्त बैठक—Pgs. 11036. यात्री कृपया ध्यान दें—Pgs. 11337. आया-आया तूफान—Pgs. 11538. लाइक्स बगैर जिंदगी —Pgs. 11839. चल छैंया छैंया छैंया छैंया—Pgs. 12040. कानून मानना पाप है—Pgs. 12241. कैसे रहेगा फिट इंडिया—Pgs. 12442. 'फेक न्यूज' के फायदे—Pgs. 12643. ब्रेकअप एक उत्सव है—Pgs. 12844. थूकना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है—Pgs. 13045. 'हिंदी दिवस' पर न्यूज चैनल की एक मीटिंग—Pgs. 13246. एक 'दलबदलू' नेताजी का इंटरव्यू —Pgs. 13547. एक गड्ढे की होली —Pgs. 13848. आइए तनाव लें—Pgs. 14149. प्रिय विचारधारा, तुम कहाँ हो?—Pgs. 14450. विवाह की सालगिरह और वादों का चाबुक—Pgs. 14751. लोकतंत्र की हत्या बनाम नए कारोबार की संभावनाएँ—Pgs. 14952. घोड़ा मंडी में सर्वप्रजातीय बैठक—Pgs. 15153. तमाशा—Pgs. 15454. निंदा और कड़ी निंदा—Pgs. 15655. गुरु-गुरु, हो जाओ शुरू!—Pgs. 15956. 'खुला खत' लेखकों के नाम खुला खत —Pgs. 16157. बँगला छूटे न तोरी कसम—Pgs. 16358. एक हारे हुए नेता की होली—Pgs. 16659. बिल्लू बाबा के बोल—Pgs. 16960. टी.वी. एक्सपर्ट बनने का क्रैश कोर्स!—Pgs. 17161. प्रदूषण पर प्रदूषित चिंतन—Pgs. 17562. चिरस्थायी सुर्खियाँ—Pgs. 17763. नए ईश्वर की दरकार—Pgs. 17964. 'खेल' हो गया—Pgs. 18165. एक अपराधी गधे की आत्मकथा—Pgs. 183
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