Look Inside
Kaafila-E-Nau-Bahaar
Kaafila-E-Nau-Bahaar

Kaafila-E-Nau-Bahaar

Regular price ₹ 185
Sale price ₹ 185 Regular price ₹ 199
Unit price
Save 7%
7% off
Tax included.
Size guide

Pay On Delivery Available

Rekhta Certified

7 Day Easy Return Policy

Kaafila-E-Nau-Bahaar

Kaafila-E-Nau-Bahaar

Cash-On-Delivery

Cash On Delivery available

Plus (F-Assured)

7-Days-Replacement

7 Day Replacement

Product description
Shipping & Return
Offers & Coupons
Read Sample
Product description

'क़ाफ़िला-ए-नौ-बहार' उर्दू की नई नस्ल के पुर-उम्मीद शोअरा के चुनिंदा कलाम का संग्रह है| किताब में कुल 17 नौ-जवान शोअरा का कलाम शामिल है जिनका संकलन जनाब विकास शर्मा 'राज़' ने किया है| इन शोअरा की अबतक कोई किताब प्रकाशित नहीं हुई है और ये इनका पहला काव्य-संग्रह है|.

Shipping & Return
  • Sabr– Your order is usually dispatched within 24 hours of placing the order.
  • Raftaar– We offer express delivery, typically arriving in 2-5 days. Please keep your phone reachable.
  • Sukoon– Easy returns and replacements within 7 days.
  • Dastoor– COD and shipping charges may apply to certain items.

Offers & Coupons

Use code FIRSTORDER to get 10% off your first order.


Use code REKHTA10 to get a discount of 10% on your next Order.


You can also Earn up to 20% Cashback with POP Coins and redeem it in your future orders.

Read Sample


फ़ेह्‍‌रिस्त


1. कुलदीप कुमार (1987)


2. अभिनदन पांडे (1988)


3. इम्तियाज़ ख़ान (1989)


4. आफ़्ताब शकील (1990)


5. राहुल झा (1991)


6. नई’म सरमद (1992)


7. आशु मिश्रा (1992)


8. विपुल कुमार (1993)


9. अंकित गौतम (1993)


10. अ’ब्बास क़मर (1994)


11. आ’क़िब साबिर (1994)


12. निवेश साहू (1994)


13. शहबाज़ रिज़्वी (1995)


14. विजय शर्मा अ’र्श (1995)


15. अज़हर नवाज़ (1995)


16. पल्लव मिश्रा(1998)

 

कुलदीप कुमार

कुलदीप कुमार का जन्म 10 अगस्त, 1987 को मानपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ। आपने बी.ई. (इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन्स) और एम. ए. (हिन्दी) किया है। आप 'मध्य प्रदेश भूमि रिकॉर्ड और राजस्व विभाग' में कार्यरत हैं ।


 

राह-ए-इ’श्क़ में इतने तो बेदार1 थे हम

​​हिज्‍र2 आएगा पहले ही तय्यार थे हम

1.जाग्रत 2.जुदाई

 

शह्​र बसे थे मीलों तक उसकी जानिब1

एक मुसल्सल2 जंगल था जिस पार थे हम

1.तरफ़ 2.निरंतर

 

हम पे रंग-ओ-रोग़न क्या तस्वीरें क्या

घर के पिछले हिस्से की दीवार थे हम

 

शाम से कोई भीड़ उतरती जाती थी

इक कमरे के अंदर भी बाज़ार थे हम

 

एक कहानी ख़ुद ही हमसे आ लिपटी

क्या मा'लूम कि कब इसके किर्दार थे हम

 

आज हमारे मातम में ये चर्चा था

इक मुद्दत से तन्हा थे बीमार थे हम

 

क्या अब इ’श्क़ में वैसी वहशत मुम्किन है

जैसे पागल इ’श्क़ में पहली बार थे हम

1.दीवानगी


 

ऐसा नहीं कि वस्ल1 का लम्हा न आएगा

लेकिन इस इंतिज़ार के जैसा न आएगा

1.मिलन

 

ये लब ही क्या ये आँखें भी अब पूछने लगीं

इस रास्ते में क्या कोई दरिया न आएगा

 

बैठे रहो उदास यूँ ज़ुल्फ़ों को खोल कर

इस रुत में तो हवाओं का झोंका न आएगा

 

पहले से हम बता दें कि आएगा सारा जिस्म

दिल तुम पे आएगा तो अकेला न आएगा

 

आए नहीं कि करने लगे लौटने की बात

तुम ही बताओ ऐसे में ग़ुस्सा न आएगा

 

बस्ती के सारे बच्चों को कैसे बताऊँ मैं

अब वो खिलौने बेचने वाला न आएगा

 

सो जाओ ऐ दरख़्तो! कि ढलने लगी है रात

छोड़ो उमीद अब वो परिन्दा न आएगा


 

मिले बिना ही बिछड़ने के डर से लौट आए

अ’जीब ख़ौफ़ में हम उसके दर से लौट आए

 

न ऐसे रोइए नाकामी-ए-मोहब्बत1 पर

ख़ुशी मनाइए ज़िंदा भँवर से लौट आए

1.प्रेम की असफलता

 

लब उसके सामने थे और हमने चूमे नहीं

समझ लो पाँव उठे और दर से लौट आए

 

अभी तो वक़्त है सूरज के डूबने में तो फिर

ये क्या हुआ कि परिंदे सफ़र से लौट आए

 

किसी भी तर्ह ये दुनिया न छोड़ पाए हम

कि जब भी निकले तिरी रहगुज़र से लौट आए

 

ये किसकी धुन थी जो दीवार-ओ-दर न पहचाने

ये किस ख़याल में अपने ही घर से लौट आए


 

तस्कीन1 वो न रह्​म न हर्फ़-ए-दुआ’ से थी

जो मुझ गुनाहगार-ए-वफ़ा को सज़ा से थी

1.सुकून 2.प्रार्थना के शब्द

 

उससे बिछड़ रहा हूँ तो क्यों रो रहा हूँ मैं

इस बात की ख़बर तो मुझे इब्तिदा1 से थी

1.आरंभ

 

अबके बचा सकी न मेरी ख़ामुशी मुझे

इस बार मेरी जंग किसी हमनवा से थी

 

हमने भी बार-ए-ग़म1 को मुक़द्दर समझ लिया

कुछ रोज़ तक हमें भी शिकायत ख़ुदा से थी

1.दुख का बोझ

 

हिज्‍र-ओ-विसाल1 दोनों ही शर्तों में तय थी मौत

हम थे चराग़ हमको मोहब्बत हवा से थी

1.जुदाई और मिलन


 

आप ही फ़न1 का परस्तार2 समझते हैं मुझे

वर्ना ये लोग तो फ़नकार3 समझते हैं मुझे

1.कला 2.पूजने वाला 3.कलाकार

 

उलझनें ले के चले आते हैं बस्ती के मकीं1

कितने नादाँ हैं समझदार समझते हैं मुझे

1.निवासी

 

मेरे चुप रहने पे पत्थर मुझे कहने वाले

मेरे रोने पे अदाकार समझते हैं मुझे

 

धूप निकलेगी तो इन सबके भरम टूटेंगे

ये जो सब साया-ए-दीवार समझते हैं मुझे

 

हाँ मैं बीमार हूँ पर ग़म मुझे इस बात का है

घर के सब लोग भी बीमार समझते हैं मुझे


 

वक़्त के चाक पे तख़्लीक़1 नई चाहती है

ज़िन्दगी और ज़रा कूज़ागरी2 चाहती है

1.निर्माण 2.मिट्टी के बर्तन बनाने का काम

 

एक दहलीज़ है जो पाँव पकड़ लेती है

एक लड़की है कि जो अपनी ख़ुशी चाहती है

 

प्यास का खेल दिखाने में कोई हर्ज़ नहीं

मस'अला ये है कि इस बार नदी चाहती है

 

इ’श्क़ परवान पे है आओ बिछड़ जाएँ हम

ये तकाज़ा भी है दुनिया भी यही चाहती है


 

तुम्हारे होठों से बुझने को जलना पड़ता है

तुम्हारी आरज़ू हो तो मचलना पड़ता है

 

हमीं बुझाते हैं लौ पहले सब चराग़ों की

फिर उन चराग़ों के हिस्से का जलना पड़ता है

 

फिर इन्तिज़ार भी तो करना होता है तेरा

मुझे तो वक़्त से पहले निकलना पड़ता है

 

मैं हार जाता हूँ उन दो उदास आँखों से

मुझे सफ़र का इरादा बदलना पड़ता है


 




Customer Reviews

Be the first to write a review
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)

Related Products

Recently Viewed Products