Jo bachega kaise rachega
Author | Shrikant verma |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 88 |
ISBN | 978-81-941724-8-2 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.0 kg |
Dimensions | 129 x 198 mm |
Edition | 1st |
Jo bachega kaise rachega
About Book
श्री कान्त वर्मा अपने समय के महत्वपूर्ण रचनाकार थे, अपने समय की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति। अपने समय के बयानों को, उनकी खरोंचों को वे पूरी निर्ममता और बेबाकी से दर्ज करते थे। उनसे इसरार करते थे कि 'जो मुझसे नहीं हुआ/ वह मेरा संसार नहीं।' वे शिद्दत से महसूस करते थे कि 'मेरे चारों ओर हत्यारे हैं !' उन्हें यह स्वीकार करने में कभी संकोच नहीं हुआ...मेरी रचनाओं में वसन्त कभी नहीं आया'। उनमें ग्लानि है, सन्ताप है, दुख है, पीड़ा है, भय है, सिनिसिज्म है, मृत्यु है। वे देख सकते थे कि जब पौ फटती है तब लगता है संसार में पहली बार सबेरा हो रहा है। मगर थोड़ी देर में यह संसार एक पुरानी, बासी दुनिया में बदल जाता है।' उनकी रचनाओं से कुछ उद्धरणों का यह संचयन वरिष्ठ आलोचक राजेन्द्र मिश्र ने तैयार किया है। यह संचयन कई मायनों मे विशेष है। केवल श्रीकान्त वर्मा के लिखे के मर्म को समझने के लिहाज से ही नहीं एक पूरे काल खंड को समझने के लिहाज से भी। इतिहास के एक पूरी अवधि को ये उद्धरण बखूबी धारण करते हैं।
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