Jnanganga
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Author | Narayan Prasad Jain |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 252 |
ISBN | 812-6310987 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.4 kg |
Edition | 2nd |
Jnanganga
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ज्ञानगंगा - साहित्य को साधना का मार्ग मानकर चलने वाले श्री नारायणप्रसाद जैन द्वारा संकलित सूक्ति-संग्रह है 'ज्ञानगंगा' ... । इस गंगा में पूरब-पच्छिम दोनों ओर से पग-पग पर आकर नयी-नयी विचार-धारें मिली हैं; और हर धार कहती है : 'मुझे देखिए; मेरा पानी चखिए; बन सके तो मुझमें नहाइए।' धार तो यह कहती है, पर मैं कहता हूँ—'नहाइए और हल्के हो जाइए।' हो सकता है किसी धार में नहाकर आप अपने-आपको इतना हल्का महसूस करने लगें कि आपको लगे आपके पाँव ज़मीन से उठे जा रहे हैं... यह तो विचारों का ख़ज़ाना है—कभी न घटनेवाला ख़ज़ाना, सबके काम का ख़जाना। क्या विद्यार्थी, क्या पुजारी, क्या राजनेता, क्या सिपाही, क्या बनिया, क्या कारीगर—सभी के काम का ख़ज़ाना है। कोई भी पढ़े हरज नहीं। समझ में आ जाये तो नफ़ा-ही-नफ़ा।इस पुस्तक के माध्यम से आप सन्तों से मिलिए; महात्माओं से मिलिए; राजनेताओं से मिलिए; बहादुर सूरमाओं से मिलिए; नंगे फ़क़ीरों से मिलिए; कवियों से मिलिए; और फिर चाहे नर-नारायनों से मिलिए, और पूजा के योग्य देवियों और नारियों से मिलिए।यह ठीक है कि यह आपकी पूरी भूख न मिटा सकेगी; पर ज्ञान की भूख मिटाना ठीक भी नहीं। और फिर ज्ञान की भूख मिटा भी कौन सकता है? —भगवानदीन
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