Jeevan Sopan
| Item Weight | 200 Grams |
| ISBN | 978-8188140404 |
| Author | Vibha Deosare |
| Language | Hindi |
| Publisher | Prabhat Prakashan |
| Book Type | Hardbound |
| Publishing year | 2010 |
| Edition | 1st |
| Return Policy | 5 days Return and Exchange |
Jeevan Sopan
एक महिला ने कहा, “आप भी बहनजी, बेकार परेशान हो रही हैं। अरे, इस लड़की को इलाज के लिए अगर मेंटल हॉस्पिटल में भेज देंगे तो इनके घर का सारा काम कौन सँभालेगा? इस लड़की की माँ को आप नहीं देख रही हैं, कैसा नाटक बनाकर रो रही है! दिन भर बीमार बनी पलंग पर पड़ी रहती है। यही लड़की उसकी तीमारदारी में भी लगी रहती है और पलटन भर भाई-बहनों को भी सँभालती है। जरा सी चूक हुई कि वह शिकायतों की फेहरिस्त अपने खसम को थमा देती है और यह बेचारी इसी तरह पिटती है।”“अरे, अजीब औरत हो तुम! जिस प्रेमी को पाने के लिए तुम अपना सबकुछ छोड़ने को तैयार हो, उसी की पत्नी के आगे पिटकर क्या तुम अपमानित नहीं हुईं?” “कैसा मान और कैसा अपमान? जब शुरू-शुरू में मैं उसके प्रेम-बंधन में फँसी थी और मेरे पति ने मेरे माता-पिता के आगे मुझे मारा था तो मेरे माता-पिता ने भी मेरा तिरस्कार किया। मुझे मेरे मायके की देहरी लाँघने नहीं दी। मैंने अपनी माँ की ओर बड़ी उम्मीद से देखा था। उसकी आँखों में मेरे लिए आँसू थे, पर वह विवश थी। तभी मैं समझ गई थी कि प्रसव-पीड़ा झेलना और संतान का दर्द, और वह भी बेटी का दर्द, महसूस करना दो अलग चीजें हैं।”—इसी संग्रह सेसामाजिक व पारिवारिक विसंगतियों एवं विषमताओं को उकेरतीं तथा मानवीय सरोकारों को बयाँ करती मार्मिक कहानियाँ। नारी के कारुणिक संसार तथा उसके अनेक रूपों को वर्णित करती हृदयस्पर्शी कहानियाँ, जिन्हें पढ़कर वर्षों भुलाया न जा सकेगा।
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