Janam Avadhi
Item Weight | 200 Grams |
ISBN | 978-9386871282 |
Author | Ushakiran Khan |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
Book Type | Hardbound |
Edition | 1st |

Janam Avadhi
कोकाई के संस्कार के बाद बेटों ने जैसा कि अकसर होता है, उधार लेकर भंडारे का आयोजन किया। भंडारा चूँकि साधुओं का था, सो शुद्ध घी का हलुआ-पूड़ी, बुँदिया-दही का प्रसाद रहा। संस्कार के वक्त ही साधु के प्रतिनिधि ने बड़े बेटे फेंकना से कहा, “तुम कोकाई को अग्नि कैसे दोगे? साँकठ जो हो, पहले कंठी धारण करो; साधु को पैठ होगा वरना...।”रोता हुआ अबूझ-सा फेंकना कंठी धारण कर बैठ गया। बारहवीं का भोज समाप्त हुआ। गले में गमछा डालकर फेंकना-बुधना साधओं के सामने खड़े हुए।“साहेब, हम ऋण से उऋण हुए कि नहीं?” कान उऋण सुनने के लिए बेताब थे। साधु घी की खुशबू में सराबोर थे; कीर्तनिया झाल-मृदंग बजाकर गा रहे थे—'मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तिहारे जाऊँ।'“नहीं रे फेंकना, तेरी ऋणमुक्ति कहाँ हुई? गोसाईं साहेब ने दो साल पहले पचहत्तर मुंड साधु का भोज-दंड दिया था। नहीं पूरा कर पाया बेचारा। यह तो तुम्हें ही पूरा करना पड़ेगा। उऋण होना है तो यह सब करना पड़ेगा।”“पचहत्तर मुंड साधु? क्या कहते हैं, हम ऐसे ही लुट गए अब कौन देगा ऋण भी हमको?” रोने लगा फेंकना।“क्या? तो बाप का पाप कैसे कटित होगा?”—इसी पुस्तक सेजनम अवधि संग्रह की कहानियाँ भारतीय समाज, शासन-प्रशासन में व्याप्त विसंगतियों, जन-आक्रोश और असंतोष से उपजी हैं। सुधी पाठकों को ये कहानियाँ अपनी लगेंगी और अपने आस-पास ही साकार होती नजर आएँगी। समाज का आईना दिखाती कहानियों का एक पठनीय कहानी-संग्रह।___________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________कथा-सूची1. पत्रकारिता की रस्म — Pgs. 92. पुनि जहाज पर — Pgs. 213. नटयोगी — Pgs. 294. प्राणसखी — Pgs. 385. मोती बे-आब — Pgs. 486. जवाहर लाल — Pgs. 587. एक है जानकी — Pgs. 638. प्यार-मुहब्बत — Pgs. 679. शह और मात — Pgs. 7310. लौट आओ, तरु — Pgs. 7911. हमके ओढ़ा द चदरिया हो, चलने की बेरिया — Pgs. 8412. दुपहरी के फूल — Pgs. 9213. पगडंडी — Pgs. 9614. शुरुआत से पहले — Pgs. 10015. अम्मा, मेरे भैया को भेजो री, कि सावन आया — Pgs. 12016. जनम अवधि हम रूप निहारल — Pgs. 12717. हीरा डोम की वापसी — Pgs. 133
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