Jammu-Kashmir Se Sakshatkar
Item Weight | 250 Grams |
ISBN | 978-9351869894 |
Author | Indresh Kumar |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan |
Book Type | Hardbound |
Publishing year | 2017 |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Jammu-Kashmir Se Sakshatkar
जम्मू-कश्मीर समस्या को लेकर पिछले छः दशकों में अनेक भाषाओं में ढेरों साहित्य लिखा गया है। इन ग्रंथों में कश्मीर समस्या का विश्लेषण अलग-अलग दृष्टिकोणों से किया गया। विदेशी विद्वानों के लिए यह समस्या विशुद्ध रूप से वैधानिक व तकनीकी है, जब कि भारत के लिए कश्मीर समस्या नहीं है, बल्कि विदेशी साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा छोड़ा गया वह घाव है, जो अभी तक भरने का नाम नहीं ले रहा। जिन लोगों के हाथ में मरहम-पट्टी का काम था, उनकी लगाई गई मरहम ने घाव को खराब करने का काम किया, न कि ठीक करने का।दुर्भाग्य से अभी तक कश्मीर को लेकर जो लिखा गया है, वह अकादमिक अध्ययन ज्यादा है, स्थानीय लोगों की संवेदनाओं का परिचायक कम। विदेशी विद्वानों द्वारा लिखे ग्रंथों की स्थिति वही है, जो संस्कृत न जानने वाले किसी विद्वान द्वारा वेदों पर विश्लेषणात्मक ग्रंथ लिखना और बाद में उसे सर्वाधिक प्रामाणिक घोषित करना। यह प्रयास इन दोनों कोटियों से भिन्न है। इसमें प्रख्यात समाजधर्मी श्री इंद्रेश कुमार द्वारा कश्मीर समस्या क��� लेकर अनेक सार्वजनिक कार्यक्रमों और विचार गोष्ठियों में जो विचार व्यक्त किए, उनका संकलन है। लगभग दो दशक तक जम्मू, लद्दाख और कश्मीर में रहने के कारण लेखक की सभी वर्गों के लोगों—डोगरों, लद्दाखियों, शिया समाज, कश्मीरी पंडितों, कश्मीरी मुसलमानों, गुज्जरों, बकरवालों से सजीव संवाद रचना हुई। इस कालखंड में पूरा क्षेत्र, विशेषकर कश्मीर घाटी का क्षेत्र पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। अभिव्यक्ति का अवसर मिला। कश्मीर की त्रासदी को उन्होंने दूर से नहीं देखा, बल्कि नज़दीक से अनुभव किया है। इस पूरे प्रकरण में उनकी भूमिका द्रष्टा की नहीं, बल्कि भोक्ता की रही है। इस पूरी समस्या में एक पक्ष जम्मू, लद्दाख और कश्मीर के लोगों का भी है, जिसे अभी तक विद्वानों द्वारा नजरअंदाज किया जाता रहा है। इस पक्ष का पक्ष रखने की बलवती इच्छा इस ग्रंथ की पृष्ठभूमि मानी जा सकती है। आतंकवाद से लड़ते हुए जिन राष्ट्रवादियों ने शहादत दे दी, उसका चलते-चलते मीडिया में कहीं उल्लेख हो गया तो अलग बात है, अन्यथा उन्हें भुला दिया गया। सरकार की दृष्टि में इस क्षेत्र के लोगों की यह लड़ाई है ही अप्रासंगिक!जम्मू-कश्मीर की विषम-विपरीत परिस्थितियों का तथ्यपरक एवं वस्तुनिष्ठ अध्ययन और विश्लेषण का निकष है यह पुस्तक जो वहाँ की सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर विहंगम दृष्टि देगी।_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमभूमिका — Pg. 5खंड-11. जम्मू-कश्मीर में इसलामी आतंकवाद — Pg. 112. जम्मू-कश्मीर का आंतरिक परिदृश्य — Pg. 353. राज्य के स्थायी निवासी प्रावधान और महिला-पुरुष भेदभाव — Pg. 494. लद्दाख को मुसलिम बहुल बनाने का एक षड्यंत्र — Pg. 555. जम्मू-कश्मीर में 1953 से पूर्व स्थिति फारुख अदुल्ला के इरादे — Pg. 71खंड-26. कारगिल में भारत पर पाक आक्रमण — Pg. 837. आगरा शिखर र्वा : एक विश्लेषण — Pg. 97खंड-38. जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक एकता तीर्थ यात्राएँ — Pg. 1119. शारदा संस्कृति ही कश्मीरियत है — Pg. 126खंड-410. जम्मू-कश्मीर समस्या समाधान की दिशा — Pg. 13711. कांग्रेस जबाव दे, या यह सत्य नहीं है? — Pg. 16712. जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय तथा संघ स्वयंसेवकों की भूमिका का एक सत्य पृष्ठ — Pg. 172
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