Hiranyagarbha
Item Weight | 567 Grams |
ISBN | 978-9383110605 |
Author | Vidya Bindu Singh |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan |
Book Type | Hardbound |
Publishing year | 2019 |
Edition | 1st |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Hiranyagarbha
भारत का स्त्री विमर्श चूँकि पश्चिम के वूमेन लिव का प्रतिफलन है, अतः स्वाभाविक ही था कि भारतीय स्त्रीवादी चिंतन को उस पश्चिमी नजरिए से देखा गया, जहाँ औरत की आजादी का मतलब है—पुरुष की बराबरी। इस सोच को हवा देने में हमारे यहाँ के बुद्धिजीवी भी पीछे नहीं रहे। उनका कहना है, ''स्त्री-मुक्ति की हर यात्रा उसकी देह से शुरू होती है।''इस प्रकार के बोल्ड बयानों ने स्त्री-मुक्ति के अर्थ को विकृत किया है और अपने 'वस्तु' होने का विरोध करनेवाली स्त्री के लिए खुद ही वस्तु बनाए जाने के खतरों को बढ़ा दिया है। भारतीय संस्कृति से कटे ऐसे वक्तव्यों ने स्त्री स्वतंत्रता और स्वच्छंदता की विभाजक रेखा को मिटाकर दोनों में किस प्रकार घालमेल किया है, इसका प्रमाण हैं स्त्री-विमर्श के नाम पर परोसी गई ऐसी कहानियाँ, जिनमें स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता की दुहाई दी गई है।कथाकार डॉ. विद्या विंदु सिंह का यह उपन्यास संग्रह नारी-विमर्श के विभिन्न आयामों का स्पर्श करत��� है—यौन हिंसा, यौन शोषण, अविवाहित मातृत्व, अशिक्षा, दहेज, यौनिक भेदभाव, विधवा पुनर्विवाह, घरेलू हिंसा, विवाह विच्छेद, परित्यक्ता नारी और पहचान का संकट आदि। इन समस्याओं के निरूपण के साथ लेखिका ने खाँटी भारतीय तरीके से समस्या का समाधान भी प्रस्तुत किया है।—निशा गहलौत
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