Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav
Item Weight | 530 Grams |
ISBN | 978-8173153174 |
Author | JawaharLal Kaul |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan |
Book Type | Hardbound |
Publishing year | 2010 |
Edition | 1st |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav
वैश्वीकरण और प्रौद्योगिकी की आँधी में जब राष्ट्रीय सीमाएँ टूट रही हों, मूल्य अप्रासंगिक बनते जा रहे हों और हमारे रिश्ते हम नहीं, कहीं दूर कोई और बना रहा हो, तो पत्रकारिता के किसी स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में आशंकित होना स्वाभाविक है । अखबार और साबुन बेचने में कोई मौलिक अंतर रह पाएगा, या फिर समाचार और विज्ञापन के बीच सीमा- रेखा भी होगी कि नहीं?अविश्वास, अनास्था और मूल्य- निरपेक्षता के इस संकटकाल में हिंदी भाषा और हिंदी पत्रकारिता से क्या अपेक्षा है और क्या उन उम्मीदों को पूरा करने का सामर्थ्य हिंदी और हिंदी पत्रकारिता में है, जो देश की जनता ने की थीं? इन और ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर खोजने के प्रयास में यह पुस्तक लिखी गई । लेकिन यह तलाश कहीं बाजार और विश्व-ग्राम की गलियों, कहीं प्रौद्योगिकी और अर्थ के रिश्तों, कहीं पत्रकारिता की दिशाहीनता और कहीं अंग्रेजी के फैलते साम्राज्य के बीच होते हुए वहाँ पहुँच गई जहाँ हमारे देश-काल और उसमें हमारी भूमिका के बारे ��ें भी कुछ चौंकानेवाले प्रश्न खड़े हो गए हैं ।_______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रम प्रस्ताव — Pgs. 9राष्ट्रीय पत्र — Pgs. 145क्यों और कैसे? — Pgs. 9अपनी पहचान — Pgs. 1481. प्रौद्योगिकी, व्यापार और वैश्वीकरण — Pgs. 25मौलिक अंतर — Pgs. 151पहला वैश्वीकरण — Pgs. 26भाषानुशासन — Pgs. 153अगर आज ईसा होते? — Pgs. 29हिंदी दैनिकों का विस्तार — Pgs. 154कॉर्पोरेट दर्शन का आधार — Pgs. 31फैलाव मगर गहराई नहीं — Pgs. 156लोगों को छोड़कर — Pgs. 33पत्र का व्यक्तित्व — Pgs. 158नई सभ्यता का जन्म — Pgs. 35पत्रिकाओं का हृस — Pgs. 166विश्वग्राम क्यों? — Pgs. 37टी.वी. और पत्रिका — Pgs. 169आवश्यकता नहीं है, तो पैदा करो — Pgs. 40पाठकीय प्रतिबद्धता — Pgs. 171पूँजीवाद का भविष्य — Pgs. 42अधूरा अखबार — Pgs. 177पिछड़ों की चिंता — Pgs. 44कमी कहाँ है? — Pgs. 1781818 एस-स्ट्रीट — Pgs. 45मालिक और पत्रकार — Pgs. 181मैक्सिको का प्रयोग — Pgs. 47पत्रकारिता की दुकानें — Pgs. 184लहरों पर तैरती दुनिया — Pgs. 48क्या नहीं है? — Pgs. 186वर्चस्ववाद का दर्शन — Pgs. 51पाठकों का विकल्प — Pgs. 189तीसरी सभ्यता के साधन — Pgs. 545. चौराहे से आगे — Pgs. 192चलो, लेकिन जरा हटकर — Pgs. 55कठिन डगर है — Pgs. 193तीसरी लहर का नाटकीय प्रयोग — Pgs. 57गाँवों की ओर — Pgs. 196जिनका हल नहीं — Pgs. 59ट्रस्टीशिप का सिद्धांत — Pgs. 198सूचना-बाजार और माध्यम — Pgs. 61इक्कीसवीं शती के प्रश्न — Pgs. 2002. मेरा, उनका, किनका अखबार? — Pgs. 65रोजी-रोटी का सवाल — Pgs. 201केवल व्यापार ही नहीं — Pgs. 68वैश्वीकरण का स्वभाव — Pgs. 204यह कैसा उद्योग? — Pgs. 70नैतिकता का चुनाव — Pgs. 207मालिक के अधिकार — Pgs. 75क्या हो? — Pgs. 210सामाजिक और ऐतिहासिक दायित्व — Pgs. 80कैसी न हो? — Pgs. 216मालिक और कॉर्पोरेशन — Pgs. 84परिशिष्टअपनी-अपनी आजादी — Pgs. 881. खुल जा सिमसिम, बंद हो जा सिमसिम — Pgs. 225सत्य या प्रिय — Pgs. 912. भारतीय प्रैस परिषद् — Pgs. 227आचार-संहिता — Pgs. 95जवाबी शिकायत — Pgs. 229विकेंद्रीकरण का मिथक — Pgs. 97जाँच समिति — Pgs. 2303. भाषा, बाजार और सांस्कृतिक दीनता — Pgs. 100पी.यू.सी.एल. का उत्तर — Pgs. 230बाजार की बोली — Pgs. 101बी.बी. न्यूज की शिकायत पर दुआ का उत्तर — Pgs. 230भाषा का साम्राज्य — Pgs. 103शिकायतों पर जाँच समिति का मत — Pgs. 232उर्दू की राजनीति — Pgs. 105दूसरी आपत्तियों पर जाँच समिति — Pgs. 233स्वतंत्र भारत में हिंदी — Pgs. 108मामले की सुनवाई — Pgs. 235सरल हिंदी के जटिल संकेत — Pgs. 110पी.यू.सी.एल. का बयान — Pgs. 235संवाद के स्तर — Pgs. 112एडीटर्स गिल्ड का बयान — Pgs. 235अशोक वाजपेयी की दृष्टि — Pgs. 113स��ि��ि की रपट — Pgs. 236निर्मल वर्मा का चिंतन — Pgs. 118मालिक और संपादक — Pgs. 239यानी हिंदिश — Pgs. 120समाचार — Pgs. 239प्रभाष जोशी की चिंता — Pgs. 121बी.बी. न्यूज — Pgs. 242सांस्कृतिक ठहराव और राजनीति — Pgs. 125परिषद् का फैसला — Pgs. 243अभी हिंदी नहीं — Pgs. 1273. कौन ढोए दादाजी की पोटली? — Pgs. 244तमिल और द्रविड़ — Pgs. 128पहचान का संकट — Pgs. 245सोनार बांग्ला — Pgs. 131डाउन मार्केट हिंदी — Pgs. 247गुण-दोष सार — Pgs. 133काउ ऐंड डॉग — Pgs. 248बाजार में भाषा — Pgs. 135अंधी गली का अंत — Pgs. 251काश, हिंदी राजभाषा न होती — Pgs. 1364. आर्य-अनार्य और हिंदी — Pgs. 253अंग्रेजी का रोना क्यों? — Pgs. 137विश्व की महान भाषा — Pgs. 2584. कुछ अपनी भी खबर रख — Pgs. 143सहायक पुस्तकें — Pgs. 261प्रतिस्पर्धा कहाँ है? — Pgs. 144
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