Hindi Aur Sanskrit Geetikavya Ka Tulanatmak Adhyayan
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| Item Weight | 400 Grams |
| ISBN | N/-A |
| Author | Bhagwati Lal Vyas |
| Language | Hindi |
| Publisher | Rajasthani Granthagar |
| Pages | NA |
| Book Type | Paperback |
| Publishing year | 2015 |
| Return Policy | 5 days Return and Exchange |
Hindi Aur Sanskrit Geetikavya Ka Tulanatmak Adhyayan
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हिन्दी और संस्कृत गीतिकाव्य का तुलनात्मक अध्ययनहिन्दी का गीतिकाव्य संस्कृत के गीतिकाव्य से अनुप्राणित हो कर अपनी स्वतंत्र प्रकृति के रूप में विकसित हुआ है जिसकी एक दीर्घकालीन रचनाप्रक्रिया एवं परम्परा रही है। वस्तुतः मध्यकालीन साहित्य की भक्तिपरक रचनाओं एवम् श्रृंगारप्रधान प्रवृत्तियों के कलेवर में उसके भव्य दर्शन होते हैं जो आधुनिक काल के भारतेंदु-युग, द्विवेदी-युग एवं छायावादी युग के गीतों में क्रमशः रूपायित हो कर अपनी मौलिकता का अभिव्यंजन करता आया है। additionally इन दोनों का तुलनात्मक अध्ययन करना एवं उन दोनों के मध्य अंतर्सम्बन्ध ढूँढ निकालना कई दृष्टियों से एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण विषय है जिसकी आवश्यकता का अनुभव करते हुए प्रस्तुत ग्रंथ के विद्वान् लेखक ने इसके प्रस्तुतीकरण द्वारा अपनी शोधप्रज्ञा का परिचय दिया है। Hindi Aur Sanskrit GeetikavyaHindi Aur Sanskrit Geetikavya Ka Tulanatmak Adhyayanaccordingly प्रस्तुत ग्रंथ नौ अध्यायों में विभक्त है जिसका विषयानुक्रम सुव्यवस्थित वैज्ञानिक प्रणाली से अनुबंधित हुआ है। इसका प्रथम अध्याय गीतिकाव्य की सैद्धांतिक विवेचना प्रस्तुत करता है जिसके कलेवर में गीतिकाव्य के सुमान्य तत्त्वों का उद्घाटन तथा उनके समायोजन का सत्प्रयास प्रतिबिम्बित है। द्वितीय अध्याय में संस्कृत के गीतिकाव्य की विककासपरम्परा और उसके प्रमुख रचनाकारों के कृतित्व का संतुलित परिचय दिया गया है जिसकी पृष्ठभूमि में हिन्दी के गीतिकाव्य का उद्भव और विकास हुआ है। इसका तीसरा अध्याय हिन्दी गीतिकाव्य के क्रमबद्ध इतिहास की विस्तृत भूमिका प्रस्तुत करता है जिसमें उसके अनेक लब्धप्रतिष्ठ कवियों की प्रमुख कृतियों का समीक्षण एवं उनकी उपलब्धियों का मूल्यांकन विवेचित है।वस्तुतः चतुर्थ अध्याय से ही संस्कृत और हिन्दी के गीतिकाव्यों की तुलनात्मक समीक्षा का शुभारम्भ हुआ है जिनके अनुभूतिपक्ष के प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित करते हुए उन दोनों के शिल्पतंत्र एवं तुलनात्मक अवबोध की तथ्यपरक समीक्षा प्रस्तुत की गई है। ग्रंथ में विवेचित गीतिकाव्य की काव्यशास्त्रीय कसौटी तथा उसमें अभिचित्रित सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय भावनाओं की अभिव्यक्ति का सोदाहरण विश्लेषण एवम् उनकी उपलब्धियों का संक्षिप्त आकलन इस ग्रंथ की अपनी मौलिक विशेषता है जिसका एक प्रमुख पक्ष यह भी रहा है कि उसके माध्यम से हिन्दी के गीतिकाव्य पर संस्कृत के गीतिकाव्य का प्रभाव निरूपित हो सके।all in all कुल मिलाकर यह ग्रंथ लेखक के नूतन प्रयास का संसूचक है जिसकी विषयसामग्री में ज्ञात तथ्यों का पुनराख्यान एवं अज्ञात तत्त्वों के अनुसंधान की अंतर्दृष्टि विद्यमान है। गीतिकाव्य के अध्येताओं तथा शोधार्थियों के लिए इसकी उपयोगिता असंदिग्ध है जिसकी वास्तविकता का निर्णय इसके अध्ययन और अनुशीलन द्वारा ही किया जा सकता है।click >> अन्य सम्बंधित किताबेंfor updates >> Facebookclick >> YouTube कहानियाँRelatedTRUE
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