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1908 में लिखी हिन्द स्वराज पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारा मार्गदर्शन करती रही है। यह आज भी उतनी ही प्रासंगिक और लोकप्रिय है जितनी इसे लिखे जाने के समय थी। गाँधीजी ने इसी पुस्तक के माध्यम से पहली बार स्वराज की अवधारणा का औपचारिक प्रतिपादन और उसकी व्याख्या की थी। उनका मानना था कि स्वराज एक पवित्र साध्य है इसलिए उसे प्राप्त करने के साधन भी पवित्र होने चाहिए। 'स्वतंत्रता क्या है' और 'इसे कैसे प्राप्त किया जाए', जैसे विभिन्न प्रश्नों पर गाँधीजी के उत्तर चरित्र और चिंतन-प्रक्रिया के सम्बन्ध में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।कभी महत्त्व न खोने वाले विभिन्न मूल्यों की व्याख्या करती यह किताब गाँधीजी के विचारों का एक दुर्लभ दस्तावेज़ है। 1908 me.n likhii hind svaraaj pii.Dhii-dar-pii.Dhii hamaaraa maargadarshan kartii rahii hai। yah aaj bhii utnii hii praasangik aur lokapriy hai jitnii ise likhe jaane ke samay thii। gaa.ndhiijii ne isii pustak ke maadhyam se pahlii baar svaraaj kii avdhaara.na.a ka aupachaarik pratipaadan aur uskii vyaakhya kii thii। unkaa maan.naa tha ki svaraaj ek pavitra saadhy hai isli.e use praapt karne ke saadhan bhii pavitra hone chaahiye। 'svtantrtaa kyaa hai' aur 'ise kaise praapt kiya jaa.e', jaise vibhinn prashno.n par gaa.ndhiijii ke uttar charitr aur chintan-prakriyaa ke sambandh me.n antardrishTi pradaan karte hain।kabhii mahattv n khone vaale vibhinn muulyo.n kii vyaakhya kartii yah kitaab gaa.ndhiijii ke vichaaro.n ka ek durlabh dastaavez hai।

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क्रम

1. प्रस्तावना - 5

2. 'हिन्द स्वराज' के बारे में - 7

3. कांग्रेस और उसके कर्ता-धर्ता - 13

4. बंगाल का विभाजन - 17

5. अशांति और असंतोष - 19

6. स्वराज क्या है? - 19

7. इंग्लैंड की हालत - 22

8. सभ्यता का दर्शन - 24

9. हिन्दुस्तान अंग्रेज़ों के हाथों में कैसे गया? - 28

10. हिन्दुस्तान की दशा - 30

11. हिन्दुस्तान की दशा: रेलगाड़ियाँ - 32

12. हिन्दुस्तान की दशा: हिन्दू-मुसलमान - 35

13. हिन्दुस्तान की दशा: वकील - 39

14. हिन्दुस्तान की दशा: डॉक्टर - 42

15. सच्ची सभ्यता कौन-सी? - 44

16. हिन्दुस्तान कैसे आज़ाद हो? - 47

17. इटली और हिन्दुस्तान - 49

18. गोला-बारूद - 52

19. सत्याग्रह - आत्मबल - 57

20. शिक्षा - 65

21. मशीनें - 70

22. अंत में - 73

 

कांग्रेस और उसके कर्ता-धर्ता

 

पाठकआजकल हिन्दुस्तान में स्वराज की हवा चल रही है। सब हिन्दुस्तानी आज़ाद होने के लिए तरस रहे हैं।

दक्षिण अफ्रीका में भी वही जोश दिखाई दे रहा है। हिन्दुस्तानियों में अपने हक पाने की बड़ी हिम्मत आई हुई मालूम

होती है। इस बारे में क्या आप अपने खयाल बतायेंगे ?

 

संपादक : आपने सवाल ठीक पूछा है। लेकिन इसका जवाब देना आसान बात नहीं है। अखबार का एक काम तो है

लोगों की भावनायें जानना और उन्हें ज़ाहिर करना; दूसरा काम है लोगों में अमुक ज़रूरी भावनायें पैदा करना;और

तीसरा काम है लोगों में दोष हों तो चाहे जितनी मुसीबतें आने पर भी बेधड़क होकर उन्हें दिखाना। आपके सवाल का

जवाब देने में ये तीनों काम साथ-साथ जाते हैं। लोगों की भावनायें कुछ हद तक बतानी होंगी, हों तो वैसी भावनायें

उनमें पैदा करने की कोशिश करनी होगी और उनके दोषों की निंदा भी करनी होगी। फिर भी आपने सवाल किया है,

इसलिए उसका जवाब देना मेरा फ़र्ज मालूम होता है

 

पाठक : क्या स्वराज की भावना हिन्द में पैदा हुई आप देखते हैं?

 

संपादक : वह तो जब से नेशनल कांग्रेस कायम हुई तभी से देखने में आई है। 'नेशनल' शब्द का अर्थ ही वह विचार

ज़ाहिर करता है

 

पाठक : यह तो आपने ठीक नहीं कहा। नौजवान हिन्दुस्तानी आज कांग्रेस की परवाह ही नहीं करते। वे तो उसे अंग्रेज़ों

का राज्य निभाने का साधन मानते हैं

 

संपादक : नौजवानों का ऐसा ख़याल ठीक नहीं है हिन्द के दादा दादाभाई नौरोजी ने ज़मीन तैयार नहीं की होती,तो

नौजवान आज जो बातें कर रहे हैं वह भी नहीं कर पाते। मि. ह्यूम ने जो लेख लिखे, जो फटकारें हमें सुनाई, जिस

जोश से हमें जगाया, उसे कैसे भुलाया जाये? सर विलियम वेडरबर्न ने कांग्रेस का मकसद हासिल करने के लिए अपना तन,

मन और धन सब दे दिया था। उन्होंने अंग्रेज़ी राज्य के बारे में जो लेख लिखे हैं, वे आज भी पढ़ने लायक हैं

 

अशांति और असंतोष

पाठक तो आपने बंग-भंग को जागृति का कारण माना। उससे फैली हुई अशांति को ठीक समझा जाय या नहीं ?

संपादक : इनसान नींद में से उठता है तो अंगड़ाई लेता है, इधर-उधर घूमता है और अशान्त रहता है। उसे पूरा भान
आने में कुछ वक्त लगता है उसी तरह अगरचे बंग-भंग से जागृति आई है, फिर भी बेहोशी नहीं गई है। अभी
हम अंगड़ाई लेने की हालत में है। अभी अशान्ति की हालत है जैसे नींद और जाग के बीच की हालत ज़रूरी मानी जानी चाहिए
और इसलिए वह ठीक कही जायेगी, वैसे बंगाल में और उस कारण से हिन्दुस्तान में जो अशान्ति फैली है वह भी ठीक है। अशान्ति
है यह हम जानते हैं, इसलिए शान्ति का समय आने की शक्यता है नींद से उठने के बाद हमेशा अंगड़ाई लेने की हालत में हम
नहीं रहते, लेकिन देर-सबेर अपनी शक्ति के मुताबिक पूरे जागते ही हैं। इसी तरह इस अशान्ति में से हम ज़रूर छूटेंगे अशान्ति किसी
को नहीं भाती

पाठक : अशान्ति का दूसरा रूप क्या है?

संपादक : अशान्ति असल में असंतोष है। उसे आज हम 'अनरेस्ट' कहते हैं। कांग्रेस के ज़माने में वह 'डिस्कन्टेन्ट' कहलाता था

मि. ह्यूम हमेशा कहते थे कि हिन्दुस्तान में असंतोष फैलाने की ज़रूरत है यह असंतोष बहुत उपयोगी चीज़ है। जब तक आदमी
अपनी चालू हालत में खुश रहता है, तब तक उसमें से निकलने के लिए उसे समझाना मुश्किल है। इसलिए हर एक सुधार के पहले
असंतोष होना ही चाहिए चालू चीज़ से ऊब जाने पर ही उसे फेंक देने को मन करता है। ऐसा असंतोष हममें महान हिन्दुस्तानियों की
और अंग्रेज़ों की पुस्तकें पढ़कर पैदा हुआ है। उस असंतोष से अशांति पैदा हुई; और उस अशांति में कई लोग मरे, कई बरबाद हुए,
कई जेल गये, कई को देशनिकाला हुआ। आगे भी ऐसा होगा; और होना चाहिए। ये सब लक्षण अच्छे जाने जा सकते हैं। लेकिन
इनका नतीजा बुरा भी सकता है।

 

स्वराज क्या है?

पाठक : कांग्रेस ने हिन्दुस्तान को एक - राष्ट्र बनाने के लिए क्या किया, बंग-भंग से जागृति कैसे हुई, अशांति और असंतोष कैसे फैले
यह सब जाना

 

 

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