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Harfon Ke Paar Chuppiyon Pe PhD
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इस किताब&nbs;&nbs;में क़ैद कविताएँ महज़&nbs;&nbs;कविताएँ नहीं कवयित्री की भावनाएँ हैं। प्यार हसरतें इच्छाएँ आशाएँ कुंठाएँ और भी ढेर सारी भावनाएँ&nbs;&nbs;जो हर शख़्स के&nbs;&nbs;भीतर पनपती&nbs;&nbs;हैं पलती&nbs;&nbs;हैं बढ़ती&nbs;&nbs;हैं जो अक्सर लोग शब्दों में बयां नहीं कर पाते जो महज़ शब्दों में बयां की&nbs;&nbs;भी नहीं जा सकती&nbs;&nbs;बल्कि खामोशियों में सुनी&nbs;&nbs;और समझी&nbs;&nbs;जा सकती&nbs;&nbs;हैं।&nbs;&nbs;इस किताब में जहाँ&nbs;&nbs;प्रेम की कविताएँ&nbs;&nbs;हैं वहीं&nbs;&nbs;जीवन के अनछुए पहलुओं को छूती कविताएँ&nbs;&nbs;भी हैं। कुछ&nbs;&nbs;कविताएँ&nbs;&nbs;एक औरत के अंतर्मन का शब्दों से किया गया चित्रण हैं।&nbs;&nbs;एक औरत जो अपने जीवन में अलगअलग भूमिकाएँ&nbs;&nbs;निभाती है बेटी बहन बीवी माँ। पर इस सब के परे वह स्वयं भी तो एक इंसान है उसका स्वयं&nbs;&nbs;का भी एक अस्तित्व है जो जेंडर के परे है। उसे एक बीवी बहन बेटी माँ या&nbs;&nbs;एक जेंडर के परे महज़ एक&nbs;&nbs;इंसान के रूप में चित्रित करने की कोशिश भर हैं ये&nbs;&nbs;कविताएँ । अंत में ये&nbs;&nbs;कविताएँ महज़&nbs;&nbs;कविताएँ&nbs;&nbs;नहीं कवयित्री के मन के भाव हैं&nbs;&nbs;जिन्हें वह कागज़&nbs;&nbs;पर उकेरने&nbs;&nbs;का दुस्साहस करती है या यूँ&nbs;&nbs;कहिए कि ऐसा करने को मजबूर है ।तो इन कविताओं में क़ैद महज़ हर्फों को मत पढियेगा उनमें बंद चुप्पियों को भी सुनने की कोशिश कीजियेगा। ज़िन्दगी शायद हसीन और सरल लगने लगे।//धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र के समीप गाँव उमरी में जन्मी और पली बढ़ी रश्मि जिंदल को बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक़ था और उन्होंने अपनी पहली कविता ‘फ़ोन’ महज़ बारह बरस की उम्र में लिखी थी। यह कविता अभी वे अपने प्यारे पापा को सुना भी नहीं &nbs;पाईं&nbs;&nbs;थीं कि वे इस दुनिया से दूसरी दुनिया में कूच कर गए। और दोबारा कभी रश्मि हास्य कविता नहीं लिख पाईं। पिता के जाने के बाद यह दुश्वार सा जीवन वे क्यों जी &nbs;रहीं हैं&nbs;&nbs;इसी कश्मकश में&nbs;&nbs;जीवन बीता। इस सब के बीच अगर किसी चीज़ ने उन्हें बचाये रखा वह था पढ़ना और लिखना। और कब यह शौक़ जीवन का इतना ज़रूरी हिस्सा बन गया जैसे कि श्वास लेना पता ही नहीं चला। अंग्रेज़ी साहित्य से एमए एमफिल करने के बाद ४ साल प्राध्यापिका के तौर पर कार्यरत रहीं । परन्तु विवाह उपरान्त नौकरी छोड़नी पड़ी&nbs;&nbs;लेकिन लिखना पढ़ना नहीं छोड़ पाईं&nbs;। अब जीते जी कोई श्वास लेना छोड़ सकता है भला। इसी शौक़ के चलते एक अंग्रेज़ी व्याकरण की किताब लिखकर छपवाई। पर कलम उसके बाद रुक नहीं पाई और एक अंग्रेज़ी उपन्यास लिखा और किंडल अमेज़ॉन पर प्रकाशित भी करवाया ये सोचकर कि इसके बाद फिर कभी नहीं लिखूँगी। लेखन छोड़ने की बहुत सी जुगत लडाने के बाद समझ आया कि ‘कविताएँ और कहानियाँ’ इन्हे ये नहीं ढूँढती अपितु ‘कविताएँ और कहानियाँ’ स्वयं इन्हे ढूँढती हुई इनके पास आती हैं। तो बस लिखने पढ़ने का ये सिलसिला जारी&nbs;&nbs;है और इसी कड़ी में शामिल है इनका कविता संग्रह ‘हर्फ़ों के पार चुप्पियों पे पीएचडी।’/
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