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Hanumanji Ke Jeevan Ki Kahaniyan
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हनुमानजी के जीवन की महागाथाओं को वैसे तो शब्दों में पिरोना लगभग असंभव ही है, क्योंकि उनकी वीरता की गाथाएँ पृथ्वी से लेकर आकाश और पाताल तक—तीनों लोकों में फैली हैं। उन्होंने 'सब संभव है' को अपने जीवन में चरितार्थ किया। भूख लगी तो सूर्य देवता को ही फल समझ उनकी ओर छलाँग लगा दी, तब देवराज इंद्र को अपना वज्र चलाकर उन्हें रोकना पड़ा। रावण की स्वर्ण लंका को उन्होंने जलाकर राख कर दिया और तीनों लोकों को दहलानेवाला रावण भी असहाय बना बैठा रहा। पाताल लोक में जाकर उन्होंने न केवल भगवान् श्रीराम और लक्ष्मण को बचाया, वरन् वहाँ के दुष्ट राजा अहिरावण का वध भी किया। हनुमानजी भगवान् श्रीराम के परम भक्त हैं। उनकी भक्ति की शक्ति से ही वे स्वयं को शक्तिसंपन्न मानते हैं। उन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया है कि अनन्य और समर्पित भक्ति से सबकुछ हासिल किया जा सकता है। राम-रावण युद्ध के दौरान वे एक केंद्रीय पात्र रहे और हर अवसर पर भगवान् राम के अटूट सहयोगी के रूप में सामने आए—चाहे वह लक्ष्मणजी ���ो लगी शक्ति का विपरीत काल हो, चाहे नागपाश वाली घटना। हनुमानजी को सीता माता द्वारा अजर-अमर होने का वरदान प्राप्त है—अजर-अमर गुणनिधि सुत होऊ—वे त्रेता से लेकर द्वापर में भगवान् राम के श्रीकृष्ण अवतार में भी उनके सहयोगी बने और महाभारत संग्राम के दौरान अनेक बार उभरे। आज कलियुग में भी वे अपने भक्तों की पुकार सुनकर उनकी मदद को दौडे़ चले आते हैं।अपूर्व भक्ति, निष्ठा, समर्पण, साहस, पराक्रम और त्याग की कथाओं का ज्ञानपुंज है हनुमानजी का प्रेरक जीवन।________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमप्रस्तावना —Pgs. 7अपनी बात —Pgs. 111. शिवजी का हनुमानावतार —Pgs. 172. माता अंजना —Pgs. 183. बचपन —Pgs. 194. महर्षि अगस्त्य का आख्यान —Pgs. 205. मातृ-शिक्षा —Pgs. 226. सूर्यदेव का सान्निध्य —Pgs. 247. ब्रह्मदेव का संदेश —Pgs. 288. हनुमान की चरणबद्ध योजना —Pgs. 329. महादेव का आगमन —Pgs. 4110. हर और हनुमान की लीला —Pgs. 4411. ब्रह्मर्र्षि विश्वामित्र के जन्म की कथा —Pgs. 6112. सुग्रीव-सचिव हनुमान —Pgs. 9213. दुंदुभि-वध कथा —Pgs. 9714. श्रीराम का वन-गमन —Pgs. 9815. श्रीराम और सुग्रीव के बीच मैत्री —Pgs. 9916. सुग्रीव का राज्याभिषेक —Pgs. 10217. जांबवानजी द्वारा हनुमानजी का उद्बोधन —Pgs. 10418. हनुमानजी का समुद्र-लंघन 'समुद्र-लंघन-विक्रम' —Pgs. 10519. सीतान्वेषण —Pgs. 10920. हनुमानजी द्वारा अशोक वाटिका का अवलोकन —Pgs. 11221. सीता-मिलन —Pgs. 11722. सीताजी को हनुमानजी का श्रीरामजी का दूत होने का विश्वास —Pgs. 12023. जयंत की धृष्टता की कथा —Pgs. 12324. चूड़ामणि सहिदान —Pgs. 12425. अशोक वाटिका एवं चैत्यप्रासाद का विध्वंस —Pgs. 12626. प्रहस्त-पुत्र जंबुमाली-वध —Pgs. 12727. सात मंत्री-पुत्रों का वध —Pgs. 12728. लंकेश के पाँच सेनापतियों का वध —Pgs. 12729. अक्षयकुमार का वध —Pgs. 12830. मेघनाद द्वारा चलाए गए ब्रह्मास्त्र से बँधकर हनुमानजी का रावण की सभा में उपस्थित होना —Pgs. 13031. रावण का व्यक्तित्व —Pgs. 13232. हनुमानजी का परिचय —Pgs. 13233. रावण को हनुमानजी का उपदेश —Pgs. 13334. विभीषण का उपदेश —Pgs. 13535. हनुमानजी की पूँछ में आग लगाना, सीताजी के संकल्प से अग्नि का शीतल हो जाना —Pgs. 13636. लंकापुरी का दहन —Pgs. 13737. हनुमानजी की वापसी एवं सीतान्वेषण का वृत्तांत —Pgs. 13938. हनुमानजी का श्रीराम को सीताजी का वृत्तांत सुनाना —Pgs. 14739. हनुमानजी द्वारा लंका के दुर्ग और सैन्य बल का वर्णन —Pgs. 15040. हनुमानजी द्वारा विभीषण की शरण की अनुशंसा —Pgs. 15141. धूम्राक्ष का वध —Pgs. 15342. अकंपन का वध —Pgs. 15543. रावण का मान-मर्दन —Pgs. 15544. कुंभकर्ण के साथ हनुमानजी का युद्ध —Pgs. 15745. हनुमानजी के हाथों देवांतक और त्रिशिरा का वध —Pgs. 15946. हनुमानजी का हिमालय से दिव्य औषधियों का पर्वत लाना —Pgs. 16047. हनुमानजी के हाथों निकुंभ का वध —Pgs. 16248. मेघनाद द्वारा मायामयी सीता का वध —Pgs. 16349. राक्षसों के साथ हनुमानजी का घोर युद्ध —Pgs. 16450. निकुंभिला यज्ञशाला पर धावा —Pgs. 16451. हनुमानजी द्वारा मेघनाद को द्वंद्व युद्ध के लिए ललकारना —Pgs. 16552. लक्ष्मणजी का मूर्च्छित होना, कालनेमि वध, संजीवनी बूटी लाना —Pgs. 16653. श्रीराम के कहने पर हनुमानजी का सीताजी को रावण-वध का समाचार सुनाना —Pgs. 17154. श्रीसीताजी और श्रीरामजी का मिलन —Pgs. 17455. प्रभु श्रीराम के संदेश वाहक के रूप में हनुमानजी का निषादराज और भरतजी के पास जाना —Pgs. 17556. भरतजी को हनुमानजी द्वारा वनवास-विषयक वृत्तांत सुनाना —Pgs. 17757. श्रीराम का प्रत्यागमन —Pgs. 17958. उपहार वितरण तथा विदाई —Pgs. 18159. श्री हनुमान एक बहुमुखी व्यक्तित्व के स्वामी —Pgs. 18460. भीम से हनुमानजी का मिलन —Pgs. 18861. पंचमुखी हनुमान —Pgs. 19362. अहिरावण-वध —Pgs. 19463. हनुमदीश्वर —Pgs. 19964. गायत्री के परम साधक —Pgs. 202
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