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Hansti Hui Kahaniyan
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आजकल के इस टेंशन-युग में हर कोई परेशान है। लोग मानो हँसना-मुसकराना भूलते जा रहे हैं, अपनी जिंदगी के दबाव को कम करने के लिए लोग कुछ ऐसा पढ़ना या देखना चाहते हैं, जो उनके तनाव को कम करके उन्हें कुछ देर हँसा सके। हमारे यहाँ हास्य फिल्में तो बनती हैं और हास्य के नाम पर लाफ्टर शो भी होते हैं, पर इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि साहित्य में हास्य को दोयम दर्जे का मान कर उसमें न के बराबर लिखा जाता है।ऐसे में यह संग्रह उन लोगों के लिए संजीवनी से कम नहीं होगा, जो शुद्ध हास्य पढ़ना चाहते हैं, उसे खोज-खोजकर पढ़ते हैं, क्योंकि यह बात तो पक्की है कि इसमें शामिल कहानियाँ पढ़नेवाला दिल खोलकर हँसेगा ही नहीं बल्कि बार-बार उन्हें याद करके बाद में भी मुसकराएगा। सुभाष चंदरजी हमारे समय के बड़े व्यंग्यकार एवं आलोचक हैं। हिंदी व्यंग्य के इतिहास के लेखक के रूप में उनकी अलग ख्याति है। इससे अलग सुभाषजी बेहतरीन हास्य लेखक भी हैं। उनकी हास्य कहानियाँ बहुत ही शानदार होती हैं। उनके पास गजब का शिल्प और भाषा है, जो पाठक को सम्मोहित करने का काम करती है। एक बार पढ़ना शुरू करें तो खुद को रोकना मुश्किल हो जाता है। सुभाषजी किस्सागोई शैली के मास्टर हैं; पढ़ते समय उनकी कहानियों के पात्र मानो जीवंत हो उठते हैं, पढ़ते-पढ़ते सारी घटनाएँ आँखों के सामने गुजरने लगती हैं। मेरा मानना है कि जो भी पाठक इस पुस्तक को पढ़ेंगे, वे कभी इसे भुला नहीं पाएँगे। तो हो जाइए तैयार, मुसकराने के लिए, खिलखिलाने के लिए, ठहाके लगाने के लिए।—अर्चना चतुर्वेदी____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रममैं हास्य कहानियाँ क्यों लिखता हूँ? —Pgs. 71. रज्जन की दुलहनिया —Pgs. 132. हमने कार चलाना सीखा —Pgs. 253. रूप्पन बाबू की मूँछें और बिब्बो रानी —Pgs. 364. जुम्मन मियाँ की हवाई यात्रा —Pgs. 425. एक भले आदमी की कहानी —Pgs. 516. किसना दुबे ने कुश्ती लड़ी —Pgs. 607. एक सच्‍ची-मुच्‍ची की प्रेम कहानी —Pgs. 668. शताब्दी में कल्लू मामा —Pgs. 749. जुम्मन मियाँ की बेगम —Pgs. 8010. छुट्टन की डॉक्टरी —Pgs. 9111. रज्जू बाबू का इश्क उर्फ दास्ताने लैला-मजनू —Pgs. 9812. लड़ाई मूँछों की —Pgs. 10513. मास्टरजी का स्कूटर —Pgs. 11414. मर्दानगी के फूल —Pgs. 11915. बजरंगी लल्ला की बारात —Pgs. 12816. यह भी खूब रही —Pgs. 13617. मुन्ना बाबू और चुनाव —Pgs. 14418. जब हमने कुत्ता पाला —Pgs. 15019. इश्क की खीर और होली की कड़ाही —Pgs. 15720. शुभचिंतक जी से एक मुलाकात —Pgs. 16121. प्रोफेसर साहब बारात में गए —Pgs. 166

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