Look Inside
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali
Gramophone Qawwali

Gramophone Qawwali

Regular price ₹ 549
Sale price ₹ 549 Regular price ₹ 599
Unit price
Save 8%
8% off
Tax included.
Size guide

Pay On Delivery Available

Rekhta Certified

7 Day Easy Return Policy

Gramophone Qawwali

Gramophone Qawwali

Regular price ₹ 549
Sale price ₹ 549 Regular price ₹ 599
Unit price
8% off
Cash-On-Delivery

Cash On Delivery available

Plus (F-Assured)

7-Days-Replacement

7 Day Replacement

Product description
Shipping & Return
Offers & Coupons
Read Sample
Product description

About the Book: "ग्रामोफ़ोन क़व्वाली" किताब में क़व्वालों द्वारा ग्रामोफ़ोन में रिकॉर्ड कराई गई क़व्वालियों को एक जगह जमा किया गया है। क़व्वाली पसंद करने वाले लोगों के लिए ये एक नायाब तोहफ़ा है। इन क़व्वालियों में हम्द, ना'त, मंकबत, ग़ज़ल, भजन, ठुमरी, दादरा आदि विधाएँ शामिल हैं। इसमें आप ग्रामोफ़ोन क़व्वाली के प्रचलित क़व्वालों द्वारा पढ़े गए सैकड़ों कलाम को सही मत्न के साथ पढ़ सकते हैं।

About the Author: सुमन मिश्र 14 अगस्त 1982, बड़हिया, लखीसराय (बिहार) में जन्मे सुमन मिश्र सूफ़ीवाद के गंभीर अध्येता और कवि हैं। वह समय-समय पर भिन्न-भिन्न ज्ञान-अनुशासनों में सक्रिय रहे हैं, इसमें संगीत का भी एक पक्ष है। यह ध्यान देने योग्य है कि इन सभी स्रोतों ने सूफ़ीवाद के उनके अध्ययन को एक दुर्लभ मौलिकता दी है। उनका काम-काज कुछ प्रतिष्ठित प्रकाशन-स्थलों में प्रकाशित हो चुका है। वह रेख़्ता फ़ाउंडेशन के उपक्रम ‘सूफ़ीनामा’ से संबद्ध हैं। सूफ़ियों के संसार से संबंधित उनकी कुछ किताबें प्रकाशनाधीन हैं और कुछ पर वे काम कर रहे हैं।

Shipping & Return
  • Sabr– Your order is usually dispatched within 24 hours of placing the order.
  • Raftaar– We offer express delivery, typically arriving in 2-5 days. Please keep your phone reachable.
  • Sukoon– Easy returns and replacements within 7 days.
  • Dastoor– COD and shipping charges may apply to certain items.

Offers & Coupons

Use code FIRSTORDER to get 10% off your first order.


Use code REKHTA10 to get a discount of 10% on your next Order.


You can also Earn up to 20% Cashback with POP Coins and redeem it in your future orders.

Read Sample

 

क़व्वाली का 'आह' से 'वाह' तक का सफ़रनामा
कव्वाली अरबी के क्रौल शब्द से बना है जिस का शाब्दिक अर्थ बयान करना है 
इसमें किसी रुबाई या गजल के शेर को बार-बार दुहराने की प्रथा थी लेकिन तब
इसे क़व्वाली नहीं समाअ कहा जाता था। महफिल--समाअ का प्रचलन हिंदुस्तान के
सूफ़ी खानकाहों में बहुत पहले से रहा है। समाअ या कव्वाली जब हिंदुस्तान में आई तो
उसमे फ़ारसी का समावेश हो चुका था। हजरत अमीर ख़ुसरो ने समाज और कव्वाली को
नए आयाम दिये। जहाँ उन्होंने फ़ारसी और हिंदवी का इसमें सम्मिश्रण किया वहीं नए राग
और साजों का आविष्कार कर क़व्वाली को सूफ़ी खानकाहों के साथ-साथ आम जनता के बीच
भी मक़बूल कर दिया। क्रव्वाली में नए स्थानीय आयामों जैसे चादर, बसंत, सेहरा, गागर आदि
डालकर इसे विशुद्ध हिंदुस्तानी बनाने का श्रेय अमीर ख़ुसरो को ही जाता है। अमीर खुसरो के हिंदवी
कलाम बदकिस्मती से कालचक्र में कहीं खो गए लेकिन कव्वालों ने सीना--सीना इन्हें याद रखा और
इन्हें जनमानस तक पहुँचाया।
 
प्रसिद्ध किताब 'सियर उल औलिया' में कई पेशेवर क्रव्वालों का जिक्र आया है। इससे पता चलता है
कि क्रव्वाल सूफ़ी खानकाहों के अलावा बाहर की महफ़िलों में भी गाया करते थे। इन क्रव्वालों में अमीर खुर्द ने दो क्रव्वालों का उल्लेख ज्यादा किया है। ये क्रव्वाल थे हसन पेहदी और सामित क्रव्वाल ये दोनों हजरत निजामुद्दीन औलिया की ख़िदमत में हाजिर रहते थे। बक़ौल अमीर ख़ुर्द, हसन पेहदी महफ़िल के श्रोताओं को अपनी गायकी से मंत्रमुग्ध कर देते थे और लोगों में हाल की कैफियत तारी हो जाती थी। सामित क्रव्वाल में भी यी खूबियाँ थी। हसन पेहदी जहाँ बाहर की मजलिसों में भी हिस्सा लेते थे, वहीं
सामित क़व्वाल पूरी तरह हजरत निजामुद्दीन औलिया की खानकाह के लिए समर्पित थे और जब भी हजरत क्रव्वाली सुनने की इच्छा जाहिर करते थे,

 

क्रमसूची

अख्तरी जान

1. अन्दलीब-ए-जार को हसरतों ने मिटा दिया - 45
2. क्यों जा रहा है मेरी मिट्टी को ख्यार करके - 45
3. दिल चुराए हुए दुजदीदा नजर आता है - 46
4. हम आज मिल के निकालेंगे हौसले दिल के - 46
5. ख़ुदा-ख़ुदा न सही राम-राम कर लेंगे - 47

असग़री जान

1. किन बलाओं में है जाने बुलबुल-ए-नाशाद भी - 48

जोहरा बाई आगरेवाली

1. बतहा को बासी मन मोहन जब 'अर्श पे आयो आनन में - 49
2. अरी ऐ री सखी बतहा का बसैया सुपने में मन हर ले गये - 49
3. बैठे हैं आज हाथ उठा कर दुआ से हम - 50
4. जो बने आईना वो तेरा तमाशा देखे - 51
5. आँख वाला तिरे जोबन का तमाशा देखे - 52

बाबू कव्वाल

1. क्रिस्सा-ए-शैख -ओ- बिरहमन, हमने दिला मिटा दिया - 54
2. मैं किसी गैर से क्यों शिकवा-ए-बे-दाद करूं - 54

मास्टर फ़क़ीरुद्दीन

1. क्यों न हूँ तुझ पे मैं क़ुर्बान रसूल-ए- 'अरबी - 55
2. सद शुक्र कि राज हक़ीक़त का समझा दिया - 56
3. अजमेर में रौशन वो चराग-ए-मदनी है। - 56
4. लिल्लाह मेरी कीजे इमदाद या मोहम्मद - 57
5. मेरे 'ऐब छुपा ले कमली में या रसूल - 58

अख़्तरी जान
 
ग़ज़ल काफ़ी
अन्दलीब--जार को हसरतों ने मिटा दिया
कम-बख़्त सब्र मिली नाम ने गुल चुरा दिया
जौ--क़दम की याद से क्रिस्मत--नाज कर दिए
आशिक़--नामुराद पे खंजर--गम चला दिया
जाओ सिधारो मेरी जाँ तुम पे ख़ुदा की होवे मार
बिछड़े हुए मिलेंगे फिर क्रिस्मत ने गर मिला दिया
 
ग़ज़ल क़व्वाली
क्यों जा रहा है मेरी मिट्टी को ख़्वार करके
पामाल ठोकरों से मेरा मजार करके
मुझ से ही पूछता है तू रखा दिल में क्यों है
तीर--नजर को मेरे सीने के पार करके
पहले नजर मिला कर  बेवफा सितमगर
क्यों फेर ली निगाहें आँखों को चार कर के

 

Customer Reviews

Be the first to write a review
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)

Related Products

Recently Viewed Products