फ़ेह्रिस्त
तीन गोले
हसन बिल्डिंग्स के फ़्लैट नंबर एक में तीन गोले मेरे सामने मेज़ पर पड़े थे, मैं ग़ौर से उनकी तरफ़ देख रहा था और मीराजी की बातें सुन रहा था। उस शख़्स को पहली बार मैंने यहीं देखा। ग़ालिबन1 सन चालीस था। बंबई छोड़ कर मुझे दिल्ली आए कोई ज़ियादा अ’र्सा2 नहीं गुज़रा था। मुझे याद नहीं कि वो फ़्लैट नंबर एक वालों का दोस्त था या ऐसे ही चला आया था लेकिन मुझे इतना याद है कि उसने ये कहा था कि उसको रेडियो स्टेशन से पता चला था कि मैं निकल्सन रोड पर सआ’दत हसन बिल्डिंग्स में रहता हूँ।
इस मुलाक़ात से क़ब्ल3 मेरे और उसके दर्मियान मा’मूली सी ख़त-ओ-किताबत4 हो चुकी थी। मैं बंबई में था जब उसने अदबी दुनिया5 के लिए मुझसे एक अफ़्साना6 तलब7 किया था। मैंने उसकी ख़्वाहिश8 के मुताबिक़9 अफ़्साना भेज दिया लेकिन साथ ही ये भी लिख दिया कि इसका मुआ’वज़ा10 मुझे ज़रूर मिलना चाहिए। इसके जवाब में उसने एक ख़त लिखा कि मैं अफ़्साना वापस भेज रहा हूँ इसलिए कि "अदबी दुनिया" के मालिक मुफ़्तख़ोर11 क़िस्म के आदमी हैं। अफ़्साने का नाम "मौसम की शरारत" था। इस पर उसने ए’तिराज़12 किया था कि इस शरारत का मौज़ू’13 से कोई तअ’ल्लुक़ नहीं इसलिए इसे तब्दील कर दिया जाए। मैंने उसके जवाब में उसको लिखा कि मौसम की शरारत ही अफ़्साने का मौज़ू है। मुझे हैरत14 है कि ये तुम्हें क्यों नज़र न आई। मीराजी का दूसरा ख़त आया जिसमें उसने अपनी ग़लती तस्लीम15 कर ली और अपनी हैरत का इज़्हार16 किया कि मौसम की शरारत वो मौसम की शरारत में क्यों देख न सका।
1 लगभग, संभवत: 2 समय, दूरी 3 पूर्व 4 पत्र, कवाहत 5 पत्रिका का नाम 6 कहानी 7 माँगा 8 इच्छा 9 अनुसार 10 पारिश्रमिक 11 मुफ़्त खाने वाला 12 आपत्ति 13 विषय 14 आश्चर्य 15 मान ली 16 व्यक्त करना, प्रदर्शित करना
मीराजी की लिखाई बहुत साफ़ और वाज़ेह1 थी। मोटे ख़त के निब से निकले हुए बड़े सही नशिस्त2 के हुरूफ़,3 तिकोन की सी आसानी से बने हुए, हर जोड़ नुमायाँ,4 मैं उससे बहुत मुतअ’स्सिर5 हुआ था लेकिन अ'जीब बात है कि मुझे उसमें मौलाना हामिद अली ख़ाँ मुदीर6 हुमायूँ7 की ख़त्ताती8 की झलक नज़र आई। ये हल्की सी मगर काफ़ी मरई9 मुमासिलत-ओ-मुशाबिहत10 अपने अंदर क्या गहराई रखती है इसके मुतअ’ल्लिक़ मैं अब भी ग़ौर करता हूँ तो मुझे ऐसा कोई शोशा11 या नुक्ता12 सुझाई नहीं देता जिस पर मैं किसी मफ़रुज़े13 की बुनियादें खड़ी कर सकूँ।
हसन बिल्डिंग्स के फ़्लैट नंबर एक में तीन गोले मेरे सामने मेज़ पर पड़े थे और मीराजी तुम-तड़ंगे और गोल-मटोल शेर कहने वाला शाइ’र मुझसे बड़े सही क़द-ओ-क़ामत14 और बड़ी सही नोक पलक की बातें कर रहा था जो मेरे अफ़्सानों के मुतअ’ल्लिक़ थीं। वो ता'रीफ़ कर रहा था न तन्क़ीस15। एक मुख़्तसर16 सा तब्सिरा17 था। एक सरसरी18 सी तन्क़ीद19 थी मगर उससे पता चलता था कि मीराजी के दिमाग़ में मकड़ी के जाले नहीं। उसकी बातों में उलझाव नहीं था और ये चीज़ मेरे लिए बाइस-ए-हैरत20 थी, इसलिए कि उसकी अक्सर नज़्में इब्हाम21 और उलझाव की वजह से हमेशा मेरी फ़हम22 से बालातर23 रही थीं लेकिन शक्ल-ओ-सूरत और वज़ा' क़ता'24 के ए'तिबार से वो बिल्कुल ऐसा ही था जैसा कि उसका बेक़ाफ़िया25 मुब्हम26 कलाम27। उसको देख कर उसकी शाइ'री मेरे लिए और भी पेचीदा28 हो गई।
1 स्पष्ट 2 हालत 3 अक्षर, बहुवचन 4 देखने वाला 5 प्रभवित 6 संपादक 7 पत्रिका का नाम 8 सुलेखकला, विद्या 9 दिखने वाली 10 समानता 11 टुकड़ा 12 बिन्दु 13 परिक्लाना 14 लम्बार्इ-चौड़ार्इ 15 कमी निकालना 16 छोटा 17 समीक्षा 18 कम महत्व रखाने वाली 19 आलोचना 20 आश्चर्य का कारण 21 अस्पष्ट 22 समझ 23 ऊपर 24 पहनावा 25 क़ाफ़िया रहित 26 धुंधलकापूर्ण 27 काथा 28 जटिल
नून मीम राशिद बे क़ाफ़िया शाइ'री का इमाम माना जाता है। उसको देखने का इत्तिफ़ाक़ भी दिल्ली में हुआ था। उसका कलाम मेरी समझ में आ जाता था और उसको एक नज़र देखने से उसकी शक्ल-ओ-सूरत भी मेरी समझ में आ गई। चुनांचे1 एक बार मैंने रेडियो स्टेशन के बरामदे में पड़ी हुई बग़ैर मड्गार्डों की साईकिल देख कर उससे अज़2 राह-ए-मज़ाक़3 कहा था, "लो, ये तुम हो और तुम्हारी शाइ'री।" लेकिन मीराजी को देख कर मेरे ज़ेहन4 में सिवाए उसकी मुब्हम5 नज़्मों के और कोई शक्ल नहीं बनती थी।
मेरे सामने मेज़ पर तीन गोले पड़े थे। तीन आहनी6 गोले। सिगरेट की पन्नियों में लिपटे हुए। दो बड़े एक छोटा। मैंने मीराजी की तरफ़ देखा। उसकी आँखें चमक रही थीं और उनके ऊपर उसका बड़ा भूरे बालों से अटा हुआ सर... ये भी तीन गोले थे। दो छोटे छोटे, एक बड़ा। मैंने ये मुमासिलत7 महसूस की तो उसका रद्द-ए-अ'मल8 मेरे होंठों पर मुस्कुराहट में नुमूदार9 हुआ। मीराजी दूसरों का रद्द-ए-अमल ताेड़ने में बड़ा होशियार था। उसने फ़ौरन10 अपनी शुरू'' की हुई बात अधूरी छोड़कर मुझसे पूछा, "क्यों भय्या, किस बात पर मुस्कुराए?"
मैंने मेज़ पर पड़े हुए उन तीन गोलों की तरफ़ इशारा किया। अब मीराजी की बारी थी। उसके पतले पतले होंट महीन महीन भूरी मूंछों के नीचे गोल गोल अन्दाज़ में मुस्कुराए।
उसके गले में मोटे-मोटे गोल मनकों की माला थी जिसका सिर्फ़ बालाई11 हिस्सा क़मीज़12 के खुले हुए काॅलर से नज़र आता था... मैंने सोचा। इस इन्सान ने अपनी क्या हैयत13 कुज़ाई14 बना रखी है... लम्बे-लम्बे ग़लीज़15 बाल जो गर्दन से नीचे लटकते थे। फ़्रैंच कट सी दाढ़ी। मैल से भरे हुए नाख़ुन। सर्दियों के दिन थे। ऐसा मा'लूम होता था कि महीनों से उसके बदन ने पानी की शक्ल नहीं देखी।
1 इसलिए, अतः 2 से 3 मज़ाक़ के रूप में 4 मस्तिष्क 5 अस्पष्ट 6 लोहे के 7 समानता 8 प्रतिक्रिया 9 दिखा 10 तुरन्त 11 ऊपरी 12 कुर्ता 13 रूप 14 वैसी ही, वैसा रूप 15 गंदे
ये उस ज़माने की बात है जब शाइ'र, अदीब और एडिटर आम तौर पर लॉन्ड्री में नंगे बैठ कर डबल रेट पर अपने कपड़े धुलवाया करते थे और बड़ी मैली कुचैली ज़िन्दगी बसर करते थे, मैंने सोचा, शायद मीराजी भी उसी क़िस्म का शाइर और एडिटर है लेकिन उसकी ग़लाज़त। उसके लम्बे बाल, उसकी फ़्रैंच कट दाढ़ी। गले की माला और वो तीन आहनी1 गोले... मआशी2 हालात के मज़हर3 मा'लूम नहीं होते थे। उनमें एक दरवेशाना4-पन था। एक क़िस्म की राहबियत5... जब मैंने राहबियत के मुतअ’ल्लिक़ सोचा तो मेरा दिमाग़ रूस के दीवाने राहिब रास्पोतिन की तरफ़ चला गया। मैंने कहीं पढ़ा था कि वो बहुत ग़लाज़त पसंद6 था। बल्कि यूँ कहना चाहिए कि ग़लाज़त का उसको कोई एहसास ही नहीं था। उसके नाख़ुनों में भी हर वक़्त मैल भरा रहता था। खाना खाने के बाद उसकी उँगलियाँ लिथड़ी होती थीं। जब उसे उनकी सफ़ाई मत्लूब7 होती तो वो अपनी हथेली शहज़ादियों8 और रईस-ज़ादियों9 की तरफ़ बढ़ा देता जो उनकी तमाम आलूदगी10 अपनी ज़बान से चाट लेती थीं।
क्या मीराजी इसी क़िस्म का दरवेश11 और राहिब था? ये सवाल उस वक़्त और बाद में कई बार मेरे दिमाग़ में पैदा हुआ, मैं अमृतसर में साईं घोड़े शाह को देख चुका था जो अलिफ़ नंगा12 रहता था और कभी नहाता नहीं था। इसी तरह के और भी कई साईं और दरवेश मेरी नज़र से गुज़र चुके थे जो ग़लाज़त आग के पुतले थे मगर उनसे मुझे घिन आती थी। मीराजी की ग़लाज़त से मुझे नफ़रत कभी नहीं हुई। उलझन अलबत्ता बहुत होती थी।
घोड़े शाह की क़बील13 के साईं आम तौर पर ब-क़द्र-ए-तौफ़ीक़ मुग़ल्लिज़ात14 बकते हैं मगर मीराजी के मुँह से मैंने कभी कोई ग़लीज़ कलिमा15 न सुना। इस क़िस्म के साईं ब ज़ाहिर मुजर्रिद16 (मुजर्रद) मगर दरपर्दा17 हर क़िस्म के जिन्सी फे़अ’ल18 के मुर्तक़िब19 होते हैं।
1 लोहे के 2 आर्थिक 3 अभिव्यक्ति 4 दरवेशों जैसा 5 वह र्इसार्इ पुरुष जो संसारिक दुखों से नितृत्त हो चुका हो उसी से संबंधित 6 गन्दगी-प्रिय 7 मनोनित 8 राजकुमानियाँ 9 धनी युवितयाँ 10 गन्दगी 11 साधू 12 पूरानंगा13 समूह 14 जान बूझकर गन्दी बातें करना 15 वाक्य 16 नंगे 17 पर्दे के पीछे 18 क्रिया 19 पाप करने वाला
मीराजी भी मुजर्रिद था मगर उसने अपनी जिन्सी तस्कीन के लिए सिर्फ़ अपने दिल-ओ-दिमाग़ को अपना शरीक-ए-कार बना लिया था। इस लिहाज़ से गो उसमें और घोड़े शाह की क़बील के साइयों में एक गो ना-मुमासिलत थी मगर वो उनसे बहुत मुख़्तलिफ़ था। वो तीन गोले था... जिनको लुढ़काने के लिए उसको किसी ख़ारिजी मदद की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। हाथ की ज़रा सी हरकत और तख़य्युल1 की हल्की सी जुम्बिश2 से वो उन तीन जाम3 को ऊँची और ऊँची बुलन्दी और नीची से नीची गहराई की सैर करा सकता था और ये गुर उसकी इन्हीं तीन गोलों ने बताया था जो ग़ालिबन4 उसको कहीं पड़े हुए मिले थे। इन ख़ारिजी5 इशारों ही ने उस पर एक अज़ली6-ओ-अबदी7 हक़ीक़त को मुनकशिफ़8 किया था। हुस्न इ'श्क़ और मौत... इस तस्लीस9 के तमाम अक़लीदसी10 ज़ाविए11 सिर्फ़ उन तीन गोलों की बदौलत12 उसकी समझ में आए थे लेकिन हुस्न और इ'श्क़ के अन्जाम को चूँकि13 उसने शिकस्त ख़ूर्दा14 ऐनक से देखा था। सही नहीं थी। यही वजह है कि उसके सारे वजूद15 में एक नाक़ाबिल16-ए-बयान17 इब्हाम18 का ज़हर फैल गया था। जो एक नुक़्ते19 से शुरू'' हो कर एक दायरे20 में तब्दील हो गया था। इस तौर21 पर कि उसका हर नुक़्ता उसका नुक़्ता-ए-आग़ाज़22 है और वही नुक़्ता-ए-अन्जाम। यही वजह है कि उसका इब्हाम नोकीला नहीं था। उसका रुख़23 मौत की तरफ़ था न ज़िन्दगी की तरफ़। रज़ाइयत24 की सिम्त25, न क़ुनूतियत26 की जानिब27। उसने आग़ाज़28 और अन्जाम को अपनी मुट्ठी में इस ज़ोर से भींच रखा था कि उन दोनों का लहू निचुड़ निचुड़ कर उसमें से टपकता रहता था लेकिन सादियत29 पसंदों की तरह वो उससे मसरूर30 नज़र नहीं आता था। यहाँ फिर उसके जज़्बात गोल हो जाते थे। तीन उन आहनी31 गोलों की तरह, जिनको मैंने पहली मर्तबा हसन बिल्डिंग्ज़ के फ़्लैट नंबर एक में देखा था।
उसके शे'र का एक मिसरा' है:
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
1 कल्पनालोक 2 हिलना 3 शराब का पात्र 4 यक़ीन से 5 बाहरी 6 अनादि एवं अनंत 7 अनन्त 8 खोलना 9 तीन भाग 10 महक 11 कोण 12 के कारण 13 क्योंकि 14 हारा हुआ 15 अस्तित्व 16 जो व्यक्त करने योग्य न हो 17 अभिव्यक्ति 18 अस्पष्टता 19 बिन्दु 20 परिधी 21 इस रूप में 22 आरम्भ का बिन्दु 23 दिशा 24 आशा 25 दिशा 26 ना-उम्मीदी 27 की ओर 28 आरम्भ 29 स्वंय की पीड़ा देने वालों 30 आनंदित 31 लोहे के