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गजनी से जैसलमेर : आदिकाल ऋषि अत्रि के वंशज सोम की संतति सोमवंशी (चन्द्रवंशी) कहलाई। इस वश के छठे राजा ययाति के पुत्र राजा यदु के वंशज ‘यदुवंशी’ कहलाए और यदुवंश की 39वीं पीढ़ी में श्रीकृष्ण हुए, और श्री कृष्ण से 88वीं पीढ़ी के राजा भाटी अंतिम यदुवंशी शासक हुए। राजा भाटी के पुत्र भूपति प्रथम भाटी और जैसलमेर के वर्तमान महारावल ब्रजराजसिंहजी 67वें भाटीशासक है; यानी सोमवंश के यह दो सौवें शासक है। इस पुस्तक में लेखक ने घटनाओं को उनके कारण, कृति व प्रतिक्रिया के रूप में लेकर विश्लेषण किया है। कोई घटना क्यों घटी, नहीं घटती तो क्या होता और उसके घटने या न घटने के क्या परिणाम होते ? आर्य अग्नि एवं वरुण को अपने इष्ट देव क्यों मानते थे, वह वृहत् भारत खंड में ही पूरब से पश्चिम और पुनः पश्चिम से पूरब में पल���यन कर क्यों आए ? राजा यदु के वंशज ‘यदु’ क्यों कहलाए ? किन परिस्थितियों में श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़कर द्वारिका की और जाना पड़ा ?महाभारत श्रीकृष्ण द्वारा वृहत् भारत के गठन की परिकल्पना थी, न कि युद्ध की। उन्होंने कौरवों के विरुद्ध पाण्डवों का साथ देकर महाभारत गठन के लिए बल प्रयोग किया, यद्यपि कौरव और पाण्डव दोनों ही राजा पुरु के वंशज थे। युद्ध में जर्जर होकर कुंठित हुए यदुवंशी आपस के गृह-युद्ध में शक्तिहीन हो गए, जिससे विरोधियों में उन्हें द्वारिका भी छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया। वह जल-थल मार्गों से मध्यपूर्व और पश्चिम में मध्य एशिया की और पलायन का गए। शताब्दियों पश्चात् पुनः पूरब की ओर पलायन करके वह जबुलिस्तान, गाँधार, पजाब व सिन्ध प्रदेशों में रुककर अपने राज्य स्थापित करके बस गए। स्वयं एवं शत्रुओं की शक्ति में घटत-बढ़त के साथ वह गजनी, पेशावर, लाहौर, मथुरा, भटनेर से बारी-बारी से शासन करते रहे, परन्तु गज़नी का सम्मोहन सदैव इनके प्रयासों का लक्ष्य रहा। मरुप्रदेश की संस्कृति की अमूल्य धरोहर ढोला-मारू, मूमल-महेन्द्र सोढ़ा व कोडमदे की अमर प्रणय कथाएँ यहीं की देन हैं, तो चितौड़ के शाके में क्षत्राणियों की अगुवाई करने वाली रानी पद्मिनी भटियाणी इसी धरती की देन थी।RelatedTRUE
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