Ek Zindagi...Ek Script Bhar!
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Item Weight | 155 |
ISBN | 978-8119996421 |
Author | Upasana |
Language | Hindi |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Pages | 184 |
Dimensions | 20*13*1 |
Publishing year | 2024 |
Edition | 1st |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Ek Zindagi...Ek Script Bhar!
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उपासना ने अपनी शुरुआती कहानी ‘एक ज़िन्दगी... एक स्क्रिप्ट भर!’ से विस्मित किया था। कहानी इस कदर सुगठित और मँजी हुई थी कि हम कुछ लोगों ने उन्हें एक कल्पित नाम मानकर उसे किसी सधे हाथ वाले वरिष्ठ लेखक की कहानी माना था। उपासना ने अपनी अगली कहानी ‘एगही सजनवा बिनु ए राम!’ में इन सारे भ्रमों को तोड़ दिया। इसी के साथ यह तय हो गया कि उत्तर प्रदेश के एक कस्बेनुमा शहर में एक विलक्षण लेखिका का जन्म हो चुका है। तरल भाषा, सन्तुलित गठन और विवेकपूर्ण सूक्ष्मता के साथ गुँथी-बुनी उनकी कहानियाँ पढ़ने वाले पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं। वे कम लिखती हैं, लेकिन जब लिखती हैं, एक अच्छी कहानी पढ़ने के सुख के प्रति आश्वस्त करती हैं। अनुभव की खराद पर तराशे जाने के बाद, जीवन और समाज के अँधेरे-उजालों को ये कहानियाँ बहुत बारीकी से पकड़ती हैं। वे मायावी महत्त्वाकांक्षाओं की दौड़ से दूर रहते हुए एकाग्रता, गम्भीरता और निष्ठा के साथ कहानियाँ लिखने पर विश्वास करती हैं। उनका यह विश्वास लम्बे समय तक उनसे श्रेष्ठ कहानियाँ लिखवाएगा, यह विश्वास हमारा भी है।
—प्रियंवद
लोक के आलोक में रचा हुआ उपासना का यह सम्मोहक गद्य। उदासी के ऐसे वर्णन और ऐसे शेड्स, जैसे लेखक उदासी की नई परिभाषा गढ़ रही हो। गद्य का मन्थर प्रवाह अपने प्रभाव में अनेक भावावेगों के उत्कर्ष पर पहुँचाता हुआ। गीता और शंकर के दरमियान घट रहा जीवन निम्न मध्यवर्ग के शोकगीत सरीखा है जिसकी उदास धुन पर ‘एक ज़िन्दगी... एक स्क्रिप्ट भर!’ रची गई है। वर्णन इतना मार्मिक और अथाह विस्तार लिए कि लगता है एक नई पृथ्वी है जिस पर गीता और शंकर अपनी विह्वलताओं को जी रहे हैं। ‘एगही सजनवा बिनु ए राम’ में गाँव तक पहुँची अधकचरी आधुनिकता और ठंढी क्रूरता को हथियार बनाए सामन्ती मूल्यों का टकराव है। और उस टकराव में सिलिंडर भइया तथा रतनी दीदी का निस्सार होता जीवन। लेखक की सर्वथा नई दृष्टि का परिचय ‘अनभ्यास का नियम’ में भी मिलता है। सूक्ष्मातिसूक्ष्म वर्णन पर लेखक का यक़ीन नितान्त नए संसार से परिचय कराता है। नहीं याद पड़ता कि किसी रचनाकार का ऐसा शानदार लेकिन एकदम पहला संग्रह आखिरी बार कब पढ़ा था। शायद ‘दरियाई घोड़ा’ या फिर शायद ‘अँधेरे में हँसी’।
—चन्दन पाण्डेय
—प्रियंवद
लोक के आलोक में रचा हुआ उपासना का यह सम्मोहक गद्य। उदासी के ऐसे वर्णन और ऐसे शेड्स, जैसे लेखक उदासी की नई परिभाषा गढ़ रही हो। गद्य का मन्थर प्रवाह अपने प्रभाव में अनेक भावावेगों के उत्कर्ष पर पहुँचाता हुआ। गीता और शंकर के दरमियान घट रहा जीवन निम्न मध्यवर्ग के शोकगीत सरीखा है जिसकी उदास धुन पर ‘एक ज़िन्दगी... एक स्क्रिप्ट भर!’ रची गई है। वर्णन इतना मार्मिक और अथाह विस्तार लिए कि लगता है एक नई पृथ्वी है जिस पर गीता और शंकर अपनी विह्वलताओं को जी रहे हैं। ‘एगही सजनवा बिनु ए राम’ में गाँव तक पहुँची अधकचरी आधुनिकता और ठंढी क्रूरता को हथियार बनाए सामन्ती मूल्यों का टकराव है। और उस टकराव में सिलिंडर भइया तथा रतनी दीदी का निस्सार होता जीवन। लेखक की सर्वथा नई दृष्टि का परिचय ‘अनभ्यास का नियम’ में भी मिलता है। सूक्ष्मातिसूक्ष्म वर्णन पर लेखक का यक़ीन नितान्त नए संसार से परिचय कराता है। नहीं याद पड़ता कि किसी रचनाकार का ऐसा शानदार लेकिन एकदम पहला संग्रह आखिरी बार कब पढ़ा था। शायद ‘दरियाई घोड़ा’ या फिर शायद ‘अँधेरे में हँसी’।
—चन्दन पाण्डेय
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