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Ek Karore Ki Botal
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ज़िन्दगी एक फूल होती है जो मुरझा जाती है; ज़िन्दगी एक पत्थर होती है और घिस जाती है; ज़िन्दगी लोहा होती है और जंग खा जाती है; ज़िन्दगी आँसू होती है और गिर जाती है; ज़िन्दगी महक होती है और बिखर जाती है; ज़िन्दगी समन्दर होती है और...“यही है कृश्न चंदर की जादुई क़लम, जिसने जीवन की भयावह सचाइयों को अत्यन्त रोमैंटिक लहज़े में पेश किया है।
'एक करोड़ की बोतल' उनका एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है, जिसमें उन्होंने नारी के समस्त कोमल मनोभावों एवं उसकी आन्तरिक पीड़ा को मार्मिक अभिव्यक्ति दी है। एक कुशल कथाकार के नाते उनकी लेखनी ने बहुत सफलता के साथ सेक्स, रोमांस, धनाभाव और माया-लोक की सम-विषम परिस्थितियों में फँसे अपने मुख्य पात्रों को इस बात की पूरी स्वतंत्रता दी है कि वे अपने-आपको पाठक के सामने स्वयं उपस्थित करें।
वास्तव में कृश्न चंदर का यह उपन्यास मानव-मन की दुर्बलताओं का दर्पण तो है ही, इसमें सामाजिक विघटन एवं कुंठा से उत्पन्न वे घिनौने प्रसंग भी हैं, जो हमें चिन्तन के नए छोरों तक ले जाकर रचनात्मक पुनर्रचना के लिए प्रेरित भी करते हैं। Zindagi ek phul hoti hai jo murjha jati hai; zindagi ek patthar hoti hai aur ghis jati hai; zindagi loha hoti hai aur jang kha jati hai; zindagi aansu hoti hai aur gir jati hai; zindagi mahak hoti hai aur bikhar jati hai; zindagi samandar hoti hai aur. . . “yahi hai krishn chandar ki jadui qalam, jisne jivan ki bhayavah sachaiyon ko atyant romaintik lahze mein pesh kiya hai. Ek karod ki botal unka ek mahattvpurn upanyas hai, jismen unhonne nari ke samast komal manobhavon evan uski aantrik pida ko marmik abhivyakti di hai. Ek kushal kathakar ke nate unki lekhni ne bahut saphalta ke saath seks, romans, dhanabhav aur maya-lok ki sam-visham paristhitiyon mein phanse apne mukhya patron ko is baat ki puri svtantrta di hai ki ve apne-apko pathak ke samne svayan upasthit karen.
Vastav mein krishn chandar ka ye upanyas manav-man ki durbaltaon ka darpan to hai hi, ismen samajik vightan evan kuntha se utpann ve ghinaune prsang bhi hain, jo hamein chintan ke ne chhoron tak le jakar rachnatmak punarrachna ke liye prerit bhi karte hain.

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"तो फिर तुम्हारी माँ ने क्या कहा ? लड़के ने लड़की से पूछा
मैरिन ड्राइव बाँध की दीवार अर्ध-गोलाकार की सूरत में दूर तक फैली हुई
थी। वे दोनों उस पर टाँगें लटकाए बैठे थे, उनकी पीठ मैरिन ड्राइव की
बिल्डिगों की ओर थी तथा चेहरा समंदर की ओर बादल घिर आए थे, सागर
का पानी एक दीवानी खुशी से उछल रहा था, जैसे उसे भी मालूम हो कि बारिश
आनेवाली है यह सोचना गलत है कि केवल मनुष्य को मालूम देता है, कुछ
बातें सागर की भी सूझबूझ में हैं कुछ बातें बादल भी जानते हैं, कुछ बातें हवा
भी सूंघ लेती है केवल लहरों पर तैरती झाग कुछ नहीं जानती, क्योंकि उसने
सिर्फ खुशी देखी है कुछ जानने के लिए दुःख उठाना आवश्यक है इन दोनों
ने बिल्डिगों की ओर से मुँह फेर लिया था, क्योंकि वहाँ कोई आशा नहीं थी,
सामने सागर का रहस्यमय चेहरा था, वायु में एक खतरनाक साजिश थी
और उन दो चेहरों पर वेदना की परछाइयाँ लड़की की उम्र मुश्किल से
उन्नीस वर्ष की होगी, लड़का तीन-चार साल बड़ा होगा, मगर वेदनायुक्त
दिमागी उलझन उनके चेहरों पर इस भाँति तैर रही थी जैसे सागर की लहरों पर
तट का कूड़ा-करकट तैरता है, मगर सागर का भाग नहीं बन सकता इस भाँति
उनकी दिमागी उलझन के होते हुए भी उन दोनों के चेहरों पर नौजवानी का
आकर्षण और उसका भोलापन था बाँध की मुँडेर पर दूसरे लोग भी बैठे थे,
मगर उन लोगों ने इस जोड़े को अकेला छोड़ दिया था। यह मैरिन ड्राइव बाँध
की ही सभ्यता में शामिल है कि लोग ज़रा दूरी छोड़कर एक-दूसरे से
अलग-अलग बैठते हैं। खासतौर से जोड़ों के लिए ज्यादा फासला छोड़ दिया
जाता है, ताकि कोई दूसरा उनकी बातों में दखल दे सके।

सालीसिटर रुक गया
"मुलाकात करने में क्या हर्ज है ?" रंजीत ने इंदू को मशवरा दिया
"हो सकता है सालीसिटर ने बात बढ़ाते हुए कहा, "वह तुम्हें इनाम दें,
या फिर से अपनी इस पुरानी वसीयत पर अमल करने का फैसला सुनाएँ वह
बहुत अजीब आदमी हैं, वह कुछ भी कर सकते हैं। गाड़ी बाहर तैयार खड़ी
है " सालीसिटर ने कहा
इंदू और रंजीत दोनों उठ खड़े हुए।

 
3
 
बयासी वर्ष का सर बोमन एक हँसमुख बुड्ढा था  उसके सुंदर बरताव में इस
दरजा बराबरी और खादारी थी जो बहुत ज्यादा दौलत होने या बिलकुल होने
की सूरत में पाई जाती है। वह बीच के कद का मोटा आदमी था, गोल हँसता
हुआ चेहरा, मुस्कराती हुई आँखें, आगे बढ़ा हुआ पेट, इस समय उसने एक सुंदर
पतलून पहन रखी थी जिसके गैलिस कंधों तक चढ़े हुए थे, खुले कालरों में उसके
सीने के सफेद बाल दिखाई दे रहे थे, ऊँचे माथे के ऊपर चँदिया साफ थी, केवल
कनपटियों पर सफेद बालों के गुच्छे बाकी रह गए थे वह इंदू और रंजीत को
देखते ही आगे बढ़ा, उसने पहले रंजीत से हाथ मिलाया, फिर आगे बढ़कर बड़ी
खुशी से इंदू को अपनी बाँहों में ले लिया, और उसकी बलैया लेने लगा
हाँ-तो तुम हो मेरी वारिस ! "
इंदू इस सुंदर व्यवहार से शरमा गई। उसके गुलाब-जैसे गाल गहरे लाल
होते गए।
"बड़ा प्यारा नाम है तुम्हारा, इंदू इतना छोटा, इतना मीठा !" सर बोमन
हँसकर बोला, "और तुम रहती कहाँ हो ?"
सालीसिटर बोल उठा, "महालक्ष्मी के पास झोंपड़ पट्टी में "

 

 

 

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