"तो फिर तुम्हारी माँ ने क्या कहा ?” लड़के ने लड़की से पूछा ।
मैरिन ड्राइव बाँध की दीवार अर्ध-गोलाकार की सूरत में दूर तक फैली हुई
थी। वे दोनों उस पर टाँगें लटकाए बैठे थे, उनकी पीठ मैरिन ड्राइव की
बिल्डिगों की ओर थी तथा चेहरा समंदर की ओर । बादल घिर आए थे, सागर
का पानी एक दीवानी खुशी से उछल रहा था, जैसे उसे भी मालूम हो कि बारिश
आनेवाली है । यह सोचना गलत है कि केवल मनुष्य को मालूम देता है, कुछ
बातें सागर की भी सूझबूझ में हैं । कुछ बातें बादल भी जानते हैं, कुछ बातें हवा
भी सूंघ लेती है । केवल लहरों पर तैरती झाग कुछ नहीं जानती, क्योंकि उसने
सिर्फ खुशी देखी है । कुछ जानने के लिए दुःख उठाना आवश्यक है । इन दोनों
ने बिल्डिगों की ओर से मुँह फेर लिया था, क्योंकि वहाँ कोई आशा नहीं थी,
सामने सागर का रहस्यमय चेहरा था, वायु में एक खतरनाक साजिश थी ।
और उन दो चेहरों पर वेदना की परछाइयाँ । लड़की की उम्र मुश्किल से
उन्नीस वर्ष की होगी, लड़का तीन-चार साल बड़ा होगा, मगर वेदनायुक्त
दिमागी उलझन उनके चेहरों पर इस भाँति तैर रही थी जैसे सागर की लहरों पर
तट का कूड़ा-करकट तैरता है, मगर सागर का भाग नहीं बन सकता । इस भाँति
उनकी दिमागी उलझन के होते हुए भी उन दोनों के चेहरों पर नौजवानी का
आकर्षण और उसका भोलापन था । बाँध की मुँडेर पर दूसरे लोग भी बैठे थे,
मगर उन लोगों ने इस जोड़े को अकेला छोड़ दिया था। यह मैरिन ड्राइव बाँध
की ही सभ्यता में शामिल है कि लोग ज़रा दूरी छोड़कर एक-दूसरे से
अलग-अलग बैठते हैं। खासतौर से जोड़ों के लिए ज्यादा फासला छोड़ दिया
जाता है, ताकि कोई दूसरा उनकी बातों में दखल न दे सके।
सालीसिटर रुक गया ।
"मुलाकात करने में क्या हर्ज है ?" रंजीत ने इंदू को मशवरा दिया ।
"हो सकता है ।” सालीसिटर ने बात बढ़ाते हुए कहा, "वह तुम्हें इनाम दें,
या फिर से अपनी इस पुरानी वसीयत पर अमल करने का फैसला सुनाएँ । वह
बहुत अजीब आदमी हैं, वह कुछ भी कर सकते हैं। गाड़ी बाहर तैयार खड़ी
है ।" सालीसिटर ने कहा ।
इंदू और रंजीत दोनों उठ खड़े हुए।
3
बयासी वर्ष का सर बोमन एक हँसमुख बुड्ढा था । उसके सुंदर बरताव में इस
दरजा बराबरी और खादारी थी जो बहुत ज्यादा दौलत होने या बिलकुल न होने
की सूरत में पाई जाती है। वह बीच के कद का मोटा आदमी था, गोल हँसता
हुआ चेहरा, मुस्कराती हुई आँखें, आगे बढ़ा हुआ पेट, इस समय उसने एक सुंदर
पतलून पहन रखी थी जिसके गैलिस कंधों तक चढ़े हुए थे, खुले कालरों में उसके
सीने के सफेद बाल दिखाई दे रहे थे, ऊँचे माथे के ऊपर चँदिया साफ थी, केवल
कनपटियों पर सफेद बालों के गुच्छे बाकी रह गए थे । वह इंदू और रंजीत को
देखते ही आगे बढ़ा, उसने पहले रंजीत से हाथ मिलाया, फिर आगे बढ़कर बड़ी
खुशी से इंदू को अपनी बाँहों में ले लिया, और उसकी बलैया लेने लगा ।
हाँ-तो तुम हो मेरी वारिस ! "
इंदू इस सुंदर व्यवहार से शरमा गई। उसके गुलाब-जैसे गाल गहरे लाल
होते गए।
"बड़ा प्यारा नाम है तुम्हारा, इंदू । इतना छोटा, इतना मीठा !" सर बोमन
हँसकर बोला, "और तुम रहती कहाँ हो ?"
सालीसिटर बोल उठा, "महालक्ष्मी के पास झोंपड़ पट्टी में । "