EAK AANKH KOUNDHATI HAI | एक आँख कौंधती है
Author | Vinod Padraj |
Language | Hindi |
Publisher | Vera Prakashan |
Pages | 152 |
ISBN | 978-81-975844-4-2 |
Item Weight | 0.18 kg |
Dimensions | 5.25X8X0.35 |
Edition | First |
EAK AANKH KOUNDHATI HAI | एक आँख कौंधती है
विनोद पदरज हिंदी कविता के समकाल में स्त्रीवादी विमर्श पर अनूठी दृष्टि के लिए जाने जाते हैं। वेरा प्रकाशन से आया उन का काव्य संग्रह ‘एक आँख कौंधती है’ स्त्री विषयक कविताओं का संचयन है। साइल देहलवी का मिसरा उधार ले कर कहें, तो- उड़ा सकता नहीं कोई मिरे अंदाज़-ए-शेवन को। ठीक इसी तरह हिंदी कविता के स्त्रीवादी रूप में वे अपने समकक्षों से भिन्न दिखाई देते हैं।
इस संचयन में एक स्त्री के जन्म से ले कर मृत्यु तक उस के द्वारा जिए गए लगभग सभी किरदार पर कविताएँ हैं। यह कविता संचयन उन स्त्रियों पर भी बात करता है, जिन पर बोलना कथित सभ्य वर्ग को असभ्यता लगती है। इस में माँ के लिए भी कविताएँ हैं, तो स्त्री के कथित तौर पर बदनाम क़रार दे दिए गए रूप पर भी।
इस संचयन में शामिल कविताएँ पाठक के तौर पर आप को माँ के आँचल में भी ले जा सकती हैं और दूर कहीं अबूझे प्रश्नों के जंगल में भी। ‘एक आँख कौंधती है’, आप के अपने भीतर एक ऐसी आँख उत्पन्न कर सकती है, जिस की निगाह से आप बच नहीं सकते। अगर आप केवल स्त्री सौंदर्य पर आधारित चलताऊ कविताएँ चाहते हैं, तो यह काव्य संचयन आप के लिए नहीं है। हाँ! अगर आप जानना चाहते हैं कि जीवन में किसी भी रूप में शामिल कोई भी स्त्री कविता में अपने पूरे दु:ख के साथ दर्ज हो कर मन पर प्रश्नों का आघात किस तरह करती है, तो यह कविता संचयन आप के लिए ही है।
अंत में, स्त्री को देखने की नवीन दृष्टि के परिचय के लिए इस कविता संचयन को आप को अवश्य पढ़ना चाहिए।
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