Devdas
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-8126320370 |
Author | Sharatchandra Chattopadhyay Translated by Kunal Singh |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 128 |
Book Type | Hardbound |
Edition | 3rd |
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देवदास - बहुत कम 'आधुनिक' किताबों की नियति वैसी रही है जैसी कि 'देवदास' की—एक अप्रत्याशित मिथकीयता से घिर जाने को नियति इसके प्रकाशन के पूर्व शायद ही कोई यह कल्पना कर सकता था कि यह कृति एक पुस्तक से अधिक एक मिथक हो जायेगी और इसमें शायद ही किसी को कोई सन्देह हो कि पुस्तक की यह मिथकीय अवस्था उसके मुख्य पात्र देवदास के एक मिथक, एक कल्ट में बदल जाने से है।कहीं 'देवदास' ने शरत को धोखा तो नहीं दिया, जैसा कि 'अन्ना केरेनिना' ने तोलस्तोय को धोखा दिया था? तोलस्तोय 'अन्ना...' लिखकर (बकौल मिलान कुन्देरा) स्त्रियों को यह शिक्षा देना चाहते थे कि वे अन्ना की तरह अनैतिक व पापपूर्ण रास्ते पर न चलें। पर जैसा हम जानते हैं, उपन्यास यह 'शिक्षा' देने में विफल रहा—वह ऐसी कृति बनकर उभरा जो कृतिकार की अन्तश्चेतना या प्रयोजन से दूर या विपरीत चली जाती है तो क्या शरत की अपेक्षा यह थी कि हम 'देवदास जैसे व्यक्ति' न बनें? अगर ऐसा था तो तोलस्तोय की तरह शरत भी अपनी कृति के हाथों 'छले' गये। 'देवदास' ने हमें यही सिखाया कि हम देवदास जैसे बनें और यह ऐसी शिक्षा है जो कोई नहीं देना चाहता—न अभिभावक, न परिवार, न समाज, न राज्य, न धर्म, न क़ानून। यह शिक्षा (या कुफ़्र का शैतानी उकसावा?) सिर्फ़ एक कलाकृति दे सकती है, क्योंकि 'देवदास' ने यह सिखाया कि अस्तित्व की एक बिल्कुल भिन्न कल्पना सम्भव है। देवदास घर, परिवार, समाज, देश किसी के भी 'काम' का नहीं, फिर हम उसके प्रति करुणा क्यों महसूस करते हैं? वह प्रेमकथाओं के नायक की तरह न तो एक आकर्षक 'उन्मादी क्षण' में प्रेम के लिए स्वयं को नष्ट करता है, न वह प्रेम के लिए कोई 'संघर्ष' करता है—वह अत्यन्त साधारण है और अपने अन्त के लिए ग़फ़लत का एक धीमा मार्ग चुनता है।'देवदास' की कथा सदैव ही जीवन से कुछ इस हद तक प्रतिसंकेतित रही है कि देव की मृत्यु भी उसकी ग़फ़लत से/में अपना धीमा अन्त करते हुए जीने/बेख़ुद, असंसारिक होते जाने का एक अंग लगती है। उसकी मरणोत्तर त्रासदी का प्रत्यक्ष कारण है उसकी 'जाति' का पता न चल पाना—संकेत यह है कि उसे एक 'अस्पृश्य' देह समझ लिया जाता है और उसे जलाने के लिए चाण्डालों को सौंप दिया जाता है। एक मृत देह विशेष के साथ यह व्यवहार कथा के पठन का एक मार्ग खोलता है देवदास एक ज़मींदार का पुत्र है जो धीरे-धीरे समाज के हाशिये की ओर विस्थापित होता है (डि-कल्चराइजेशन?) जिसका चरम है उसकी मृत देह का 'अस्पृश्य' मान लिया जाना। देव उस सामाजिक वृत्त से पूरी तरह विस्थापित (उन्मूलित) हो जाता है जिसमें वह जनमता है देवदास का मार्जिनलाइजेशन उसकी मृत्यु में पूरा (कम्प्लीट) होता है; वह सामाजिक व्यवस्था के ही नहीं, पृथ्वी पर जो कुछ है उसके हाशिये में जा गिरता है है—भगाड़, एक मनुष्येतर हाशिया, जहाँ वह जानवरों की लाशों और कूड़े की संगति में है!और अन्त में 'देवदास' यदि प्रेमकथा है तो वह देवदास और चन्द्रमुखी की प्रेमकथा है, जिसमें पार्वती एक मूलभूत (ओरिजिनल) विषयान्तर 'पारो' है। चूँकि वह मूलभूत है, देवदास पार्वती के देश/गाँव लौट के ही मरेगा, लेकिन उसका मार्जिनलाइजेशन इतना पूर्ण है कि उसका मरना पार्वती के घर की देहरी बाहर ही होगा—एक और अमर, अनुल्लंघनीय हाशिये पर।—गिरिराज किराडू
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