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Deendayal Upadhyaya Ki Prerak Kahaniyan
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समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के उन्नयन को ही राष्ट्र-निर्माण का मुख्य ध्येय माननेवाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय सादगी एवं प्रभावी व्यक्तित्व की प्रतिमूर्ति थे, लेकिन अपने दिव्य गुणों से वे दिव्य और अद्भुत बन गए। प्रत्येक व्यक्ति उनका सान्निध्य पाकर स्वयं को धन्य समझता था। वे किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं लौटाते थे। अपने प्रखर और तीव्र मस्तिष्क का प्रयोग कर हर व्यक्ति की समस्या का हल ढूँढ़ने का प्रयास करते थे। हर व्यक्ति उनका ऋणी था। ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, साहस और नेतृत्व के गुण उनमें कूट-कूटकर भरे थे। वे अपने इन गुणों के माध्यम से ही हर व्यक्ति के हृदय में अपना एक विशेष स्थान बना पाए।राष्ट्र की एकता-अखंडता उनके लिए सर्वोपरि रही और इसी के लिए वे अनवरत कर्मशील रहे। अपने छोटे, परंतु यशस्वी जीवन में उन्होंने सामूहिकता, संगठन-कौशल और राष्ट्रभाव के जो अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किए, वे न केवल वर्तमान वरन् भविष्य की पीढि़यों का भी मार्ग प्रशस्त करेंगे।माँ भारती के अमर सपूत पं. दीनदयाल उपाध्याय के प्रेरणाप्रद जीवन की ये छोटी-छोटी कहानियाँ जीवन में कुछ बड़ा करने का मार्ग प्रशस्त करेंगी, ऐसा हमारा अटल विश्वास है।________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमकॉलेज की परिषद् में उपस्थित�� —Pgs. 105प्राक्कथन —Pgs. 7संस्कृति के राजदूत —Pgs. 107दीना का जन्म —Pgs. 11महिला का सम्मान —Pgs. 109दीना का ननिहाल —Pgs. 13चुनाव में पराजय —Pgs. 111माता-पिता की अकाल मृत्यु —Pgs. 14प्रमाण-पत्रों का त्याग —Pgs. 113निर्भीक दीना —Pgs. 16विदेश में जनसंघ का अस्तित्व —Pgs. 115बचपन की शरारत —Pgs. 18कला की कमाई —Pgs. 117बड़ों के प्रति सेवाभाव —Pgs. 20द्वितीय श्रेणी की यात्रा —Pgs. 119प्रतिभा के धनी —Pgs. 22दीनदयालजी की सहिष्णुता —Pgs. 121दीना की पगड़ी —Pgs. 24राष्ट्र सर्वोपरि है —Pgs. 123भाई की अकाल मृत्यु —Pgs. 25प्रत्याशी पंडितजी —Pgs. 124प्रखर मस्तिष्क के दीना —Pgs. 27जनसंघ जीत गया —Pgs. 126दीनदयाल का पुरस्कार —Pgs. 29संघ का दामाद —Pgs. 128मित्र की पुस्तक —Pgs. 31कर्मरत हो कार्यकर्ता —Pgs. 130ईमानदारी की नींव —Pgs. 32नगरपालिका की जीप —Pgs. 132इंटरमीडिएट की पढ़ाई —Pgs. 34राजनीति दर्शन —Pgs. 134जीरो एसोसिएशन का निर्माण —Pgs. 36कार्यकर्ताओं की चिंता —Pgs. 136इंटरमीडिएट में भी अव्वल —Pgs. 38स्वयंसेवक की सेवा —Pgs. 138ममेरी बहन की बीमारी —Pgs. 40संघ जहाँ, शांति वहाँ —Pgs. 140प्रतियोगिता का साक्षात्कार —Pgs. 42सबको है मत का अधिकार —Pgs. 142संघ कार्य को समर्पित —Pgs. 44संघ और जनसंघ —Pgs. 144ममेरी बहन का विवाह —Pgs. 46देशहित सर्वोपरि —Pgs. 146कोई काम छोटा नहीं —Pgs. 48केंद्रबिंदु हरिसिंह —Pgs. 148सादगी भरा रूप —Pgs. 50पंजाबी बोली से भाषा —Pgs. 150घुम्मा सैलून —Pgs. 52छपाई मशीन —Pgs. 152स्वच्छ विचार —Pgs. 54मैं अब भी प्रचारक हूँ —Pgs. 154खिचड़ी का स्वाद —Pgs. 56पाञ्चजन्य के संपादक —Pgs. 156कृषक का पक्ष —Pgs. 58प्रदेश कार्यालय का उद्घाटन —Pgs. 158मजाकिया स्वभाव —Pgs. 60स्वदेशी अणुबम —Pgs. 160ममतामय व्यवहार —Pgs. 62अद्भुत भाई —Pgs. 162ड्राइवर की मदद —Pgs. 64विभाजन का विरोध —Pgs. 164ठंड का मौसम —Pgs. 66नींव का पत्थर —Pgs. 166भ्रष्टाचार का माप —Pgs. 68जनसंघ के अध्यक्ष —Pgs. 168उल्टा टिकट —Pgs. 70धर्म-परिवर्तन का संकट —Pgs. 170निरंतर अभ्यास करो —Pgs. 72भारतीय भाषाओं की सुंदरता —Pgs. 172देशी भाषा —Pgs. 74अंग्रेजी व्याकरण क्यों? —Pgs. 174नियम का सम्मान —Pgs. 76प्याज का छौंक —Pgs. 176सादगी भरा स्वभाव —Pgs. 78राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता —Pgs. 178हाजिरजवाब दीनदयाल —Pgs. 80शिक्षा का महत्त्व —Pgs. 180भाग्यवाद नहीं, कर्मवाद —Pgs. 82देश को समर्पित —Pgs. 182सत्याग्रहियों की पीड़ा —Pgs. 84मेरा बड़ा परिवार है —Pgs. 184सावरकर से मुलाकात —Pgs. 86कविता से ज्यादा सर्वश्रेष्ठ कर्म जरूरी —Pgs. 185स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल —Pgs. 88वर्षा का शुभ संकेत —Pgs. 187वेशभूषा से अंदाज —Pgs. 89यह कैसी ��स्था? —Pgs. 189जूते साफ करने का कपड़ा —Pgs. 91रसोइया मंगल —Pgs. 191चैक की राशि —Pgs. 93पुस्तक से दोस्ती —Pgs. 192कुरते का बटन —Pgs. 95पंडाल की कनात —Pgs. 193सोरेनसन की चुटकी —Pgs. 97नई शाखा का आरंभ —Pgs. 194बलराज मधोक की उपस्थिति —Pgs. 99अनुवाद का कार्य —Pgs. 196लेखन का गुण —Pgs. 101दर्दनाक अंत —Pgs. 197पुस्तकों की रचना —Pgs. 103एक जीवन दर्शन —Pgs. 199

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