Dalit Sahitya Ka Samajshastra
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Author | Dr. Harinarayan Thakur |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 554 |
ISBN | 978-8126317349 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.4 kg |
Edition | 4th |
Dalit Sahitya Ka Samajshastra
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दलित साहित्य का समाजशास्त्र - चर्चित लेखक\ समीक्षक हरिनारायण ठाकुर की साहित्य पर एक और महत्त्वपूर्ण कृति है—'दलित साहित्य का समाजशास्त्र। बकौल कमलेश्वर, "यह पुस्तक केवल दलित साहित्य ही नहीं, बल्कि दलित चेतना को पृष्ठभूमि को बेचैनियों और उसके प्रभावों, आन्दोलनों और रचनात्मकताओं का सविस्तार विश्लेषण है। विशाल आकार की इस पुस्तक को पढ़कर कोई भी 'दलित' की सम्पूर्ण अवधारणा को समुचित तरीके से समझ सकता है। पुस्तक का नाम भले ही 'दलित साहित्य का समाजशास्त्र' हो, लेकिन इसमें दलित समाज का साहित्यशास्त्र भी है। वास्तव में यह शोधग्रन्थ भी है और इसलिए इसमें जो खण्ड बनाये गये हैं, मसलन विमर्श खण्ड, इतिहास खण्ड, रचना और मूल्यांकन खण्ड, वे दलित चेतना की बहुआयामी विकास कथा को दर्शाते हैं। दलित विषयक ऐसी अन्य कोई विशद पुस्तक अभी तक मेरी नज़र से नहीं गुज़री है। हिन्दी में इतना विरल और ऐसा गम्भीर कार्य पहली बार हुआ है।वास्तव में ये दलित साहित्य ही है, जिसके अध्ययन के पश्चात् किसी भी समाज का वास्तविक अध्ययन हो सकता है। वस्तुतः सामाजिक अत्याचार, अन्याय और शोषण केन्द्रित अमानवीय भेदभाव वाले वर्णवादी, दार्शनिक और पौराणिक तत्त्वज्ञान के इस दुर्ग को महात्मा गाँधी, प्रेमचन्द और निराला आदि की चेतावनियाँ हिला नहीं पायी थीं, अन्ततः इसे अम्बेडकरवादी दर्शन, प्रतिपक्षी विचार और रचना ही ध्वस्त कर सकती थी। यही हुआ भी। मराठी, कन्नड़, मलयालम, कोंकणी, कच्छी, पंजाबी, हिन्दी आदि भाषाओं में यह रचना अमानवीय उत्पीड़न और दमन से उपजी है, इसलिए यह शत-प्रतिशत मानवीय और सामाजिक है। दलित लेखन अपने प्रत्येक रूप में विचारशील और रचनात्मकता में पूर्णतः व्यावहारिक लेखन है। यह नैतिकतावादी साहित्य का प्रतिपक्ष नहीं, बल्कि पूरक है... लेखक ने तमाम ग्रन्थों और सन्दर्भों को छानते हुए इन्हीं मन्तव्यों को प्रतिपादित किया है।" (पुस्तक की भूमिका से) पाठकों की समकालीन रुचि और ज़रूरतों के अनुरूप व्यापक समाजशास्त्रीय विमर्श पर केन्द्रित इस पुस्तक को प्रकाशित करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।
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