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जितेन्द्र भाटिया की इस किताब की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि इन पाँच शहरों की गुज़िश्ता ज़िंदगी और इतिहास, पहचान और गली-कूचे, तहज़ीब और तमद्दुन, शहर रहे न रहे, पर यह सब किताब के बहाने रिकार्ड पर तो दर्ज़ हो ही जाएगा। यह किताब इन शहरों की एक रचनात्मक और भौगोलिक पहचान तथा इतिहास सुरक्षित कर रही है। शहरों के मर्सिये भी लिखे गए हैं। यह किताब इन शहरों का मर्सिया तो क़तई नहीं है, पर इसकी उखड़ती साँसों की हँफन ज़रूर है जो कांक्रीट के बढ़ते जंगलों की डरावनी और बढ़ती पदचापों से काँप-काँप जाती है। ‘बाज़ार’ फ़िल्म में मिर्ज़ा शौक़ की मस्नवी ‘ज़हरे इश्क़’ की कुछ प्यारी पंक्तियाँ गायी गयी हैं। इन्हें पढ़िए और देखिए, कहीं यह आपके मरते हुए शहर की आवाज़ तो नहीं है।

देख लो आज हमको जी भर के आता नहीं है फिर कोई मर के।

अभी इन शहरों के मिटने की शुरुआत है। अंत कहाँ, किस रूप में होगा, पता नही। फ़िलहाल तो हम लोग, यानी जितेन्द्र भाटिया, यह हक़ीर फ़कीर या हमारी उम्र के अल्ले-पल्ले जीते हुए दूसरे बहुत से लोग, जिन्होंने अपने-अपने शहर में ज़िंदगी गुज़ारी, वहीं खेले, खाए, पले-बढ़े, वे कुछ कहें न कहें पर अंदर ही अंदर तड़पते हैं, फड़कते हैं। वे और क्या कर सकते हैं सिवाय सय्याद से इल्तिजा करने के

दे फड़कने की इजाज़त सय्याद शबे अव्वल है गिरफ़्तारी की।

प्रियंवद
About Author

जितेन्द्र भाटिया जन्म : 1946 राजस्थान। स्कूल के बाद केमिकल इंजीनियरिंग में पी-एच. डी तक की सारी पढ़ाई आई. आई. टी. बम्बई से, जहाँ से विशिष्ट भूतपूर्व छात्रा का सम्मान मिला। पचास वर्ष विभिन्न निजी और सार्वजनिक संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर रह चुकने के बाद अब पूर्णतः लेखन। देश-विदेश की अनेक यात्राएँ, तकनीकी अभिभाषण, आलेख और सम्मान। आठवें दशक के प्रतिनिधि कथाकार, उपन्यासकार, विचारक और अनुवादक। छह कहानी संग्रह : ‘रक्तजीवी’, ‘शहादतनामा’, ‘सिद्धार्थ का लौटना’, ‘अगले अँधेरे तक’, ‘यहाँ से शहर को देखो’ और ‘रुकावट के लिए खेद है’। तीन उपन्यास : ‘समय सीमान्त’, ‘प्रत्यक्षदर्शी’ और ‘रुणियाबास की अंतर्कथा’। दो नाटक : ‘जंगल में खुलने वाली खिड़की’ और ‘रास्ते बंद हैं’ (रूपान्तर)। चार वैचारिक पुस्तकें : ‘सदी के प्रश्न’, ‘इक्कीसवीं सदी की लड़ाइयाँ’, ‘कंक्रीट के जंगल में गुम होते शहर’ और ‘सर्जकों का प्रेक्षागृह’ (प्रकाश्य)। तीन यात्रावृत्त : ‘मयनमारः गलियों से शहर और शहर से देश को देखना’, ‘उत्तरपूर्वः जिधर से सूरज उगता है’ और ‘लातिन अमेरिका डायरी’ (प्रकाश्य)। विश्व साहित्य से अनुवाद और वैचारिक लेखमाला की मान

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