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Cinema Aur Yatharth
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यह पुस्तक "सिनेमा में यथार्थ की पड़ताल मात्र नहीं है अपितु जन्म के साथ ही विश्व को भरमा लेने वाले इस मायावी माध्यम का सफरनामा है जो मुख्यतः मनोरंजन के लिए बना है लेकिन अपने सरोकारों में कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष रूप से सच के साथ सच के लिए स्वर मुखर करता है। प्रत्येक कला-विधा की अपनी भाषा, अपना मुहावरा होता है। फिल्म विधा का भी है जो जीवन-जगत और जन पक्षों को कभी सरल, कभी व्यंजना और कभी कूट भाषा में व्यक्त करते हैं। यथार्थ के लिए ये बहुधा व्यंजना और कूट भाषा का आश्रय लेती है जो फ़िल्म को नित्य नूतन कलेवर, सम्प्रेषणीयता और गतिशील चमत्कृति प्रदान करती है। हिन्दी फ़िल्मों में अंशतः यथार्थ का समावेश आरम्भ से ही था, और देखा जाये तो स्वातन्त्र्यपूर्व की अछूत कन्या जैसी फ़िल्मों में बेहद संजीदगी से दिखाई पड़ता है। फिर एक दौर आया जब फिल्में लार्जर देन लाइफ फैंटेसी की वाहक बन गयीं लेकिन यथार्थ का एक क्षीण साही सही, सूत्र उसमें बना रहा। 70 के दशक से यह सूत्र पुनः मुखर हुआ और उसकी एक समानान्तर धारा बनती गयी और यह नया सिनेमा के रूप में प्रतिस्थापित हुई। नया सिनेमा ने हिन्दी सिनेमा की धारा बदल दी। समानान्तर सिनेमा और वैकल्पिक सिनेमा आदि टर्म में बधार्थ ही मूल था जो आम जन की बंचनाओं, विसंगतियों, समस्याओं और जीवन-संघर्षो को यथास्थिति प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध था। सिनेमा का यह क्रान्तिकारी तेवर था जिसने सिनेमा के पारम्परिक चेहरे को बदल दिया और क़रीब कई दशकों तक भारतीय मानस का स्वर बना रहा। अब इसकी एक समानान्तर दुनिया है जिसमें बहुत फ़िल्मकार शिद्दत से लगे हैं। डॉ. मृदुला पण्डित की गहन शोधपरक पुस्तक सिनेमा और यथार्थ हिन्दी सिनेमा में यथार्थ की यात्रा भर नहीं है अपितु इसके व्याज से विश्व सिनेमा के प्रादुर्भाव से लेकर यथार्थ के प्रस्थान बिन्दु पर आने और वर्तमान के बेधड़क सच बोलने वाले सिनेमा की विविध संचार मंचों पर अधिपत्य तक की यात्रा है। कुल ग्यारह अध्यायों में विभाजित यह कृति सिनेमा की समस्त कथाओं और अन्तः कथाओं को उद्घाटित करती है। विश्व सिनेमा के दिग्गज सिनेकारों के साथ-साथ हिन्दी सिनेकारों की सेल्युलाइड पर रचे अनन्तिम यथार्थ की महान फ़िल्मों की बानगी दिखाती यह पुस्तक सिनेमा की रोचक यात्रा का अद्भुत दस्तावेज़ है जिसमें पाठक को शोधपूर्ण तथ्यात्मकता के साथ जीवनी की उत्सुकता, यात्रा-वृत्तान्त का रोमांच और उपन्यास की प्रवाहमय पठनीयता मिलेगी।
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