CHUPE TEETAMARA REE | STORIES | चुपे तीतामरा री (हिन्दी कहानियाँ)
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    | Item Weight | 170 gm | 
| ISBN | 978-93-48290-30-4 | 
| Author | Garima Joshi Pant | 
| Language | Hindi | 
| Publisher | Vera Prakashan | 
| Pages | 124 | 
| Dimensions | 5.5X8.5X.35" | 
| Publishing year | 2025 | 
| Edition | First | 
  
  
CHUPE TEETAMARA REE | STORIES | चुपे तीतामरा री (हिन्दी कहानियाँ)
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      गरिमा जोशी पंत की प्रस्तुत कहानियों में अपने साथ ले चलने की चुम्बकीय शक्ति है, जो इधर दुर्लभ होती जा रही है। वैसे तो हर साहित्यिक विधा में पठनीयता होनी चाहिए, भले ही वह वैचारिक लेख हो, कहानी की तो यह अनिवार्य शर्त है। गरिमा अपने लेखन की शुरुआत कविता से मानती हैं और उसमें लय की महत्ता को स्वीकार करती हैं। वहीं से वे कहानी में लयात्मकता को कहन के साथ अभिन्न मानने लगती हैं। उन्हें कविता और कहानी की भिन्नता का बोध है और कहानी में लय को विन्यस्त करने का कौशल उन्होंने अर्जित कर लिया है।
ये कहानियाँ मध्यवर्गीय मानस और उनके जीवन में व्याप्त द्वैत को उद्घाटित करती चलती हैं, जिनका प्रकटीकरण सामान्यत: स्त्रियों के संदर्भ में ही होता है। मध्यवर्ग का प्रायश्चित भी सच्चा न होकर आनुष्ठानिक होता है। अंग्रेज़ी को लेकर मध्यवर्गीय पूर्वाग्रह का गरिमा शानदार मखौल उड़ाती हैं। सास के आत्म को संबल की राह वे घर में उनकी सहभागिता के जरिए सुझाती हैं। गोठ वाली आमा पुत्र-मोह और वैतरणी पार कराने की धारणा का विद्रूप चित्र है। उसमें माँ की वीभत्स रूप में परिणत देह के पीछे उसके अधिकारी पुत्र की संवेदनहीनता और क्रूरता है। इस संकलन की आख़िरी कहानी कहीं अधिक जटिल और मर्मांतक है, जहाँ एक स्त्री जीवन के चौतरफ आतंक से अवसाद और असामान्य व्यवहार की खंदक में जा गिरती है।
— राजाराम भादू
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