Charan Digdarshan + Dharti Dhora Ri (Free)
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | NA |
Author | Shankar Singh Aashiya |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthagar |
Pages | NA |
Book Type | Paperback |
Publishing year | 2013 |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Charan Digdarshan + Dharti Dhora Ri (Free)
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चारण दिग्दर्शन : वैदिक युग की अति प्राचीन जाति चारण, जो थी कृपाण व कलम की संवाहक, क्षात्र धर्म व इतिहास की संस्थापक, संस्कृति और हिन्दू धर्म की पूजारी। उसने इतना सब कुछ लिखा, पाला। परन्तु स्वयं के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखकर कहा कि हम तो दुनिया की जानकाररी रखते हैं फिर स्वयं अपने बारे में लिखने की क्या आवश्यकता।हमने इसी चारण के मौन इतिहास के समग्र रूप में इसी उत्पत्ति, विकास, धर्म, संस्कृति, दर्शन, कलम के कलेवर व करवाल की पैनी धार को भी उजागर किया है। चारण के समग्र इतिहास की लम्बे समय से जो कमी महसूस हो रही थी, उसकी पूर्ति के प्रयास में “चारण दिग्दर्शन” ग्रन्थ प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता अनुभव कर रहे हैं।आप इसमें पायेंगे चारण के आत्म स्वाभिमान रक्षा का प्रतीक ‘जम्मर’, जिसकी मिसाल संसार में अन्यत्र नहीं मिलती, जिसे पढ़कर श्रोता आश्चर्यचकित हो जाता है। वेदों की ऋचाएँ से हम इसकी यात्रा के सहभागी बनकर चले हैं तथा धर्म रक्षा के वीर काव्य में इनमें ऋचाएँ ‘डींगल’ साहित्य के नाम से है। डींगल की उस वीर वाणी की मंत्र ऋचाओं को चारणों ने इस प्रकार प्रकट किया है, जो कायरों को वीर तथा सोये हुए को जगाती है। जब इस साहित्य से विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर का साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने आश्चर्यचकित होकर कहा कि “सम्पूर्ण विश्व में इसके समान कोई वीर काव्य नहीं है।”।RelatedTRUE
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