ब्राह्मणवादियों के धमाके, मुसलमानों को फाँसी Brahmanvaadion ke dhamake, Musalmanon ko phaansi (Hindi)
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Language | Hindi |
Publisher | Pharos Media |
Pages | 314 |
ISBN | 978-8172211295 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.365 kg |
Edition | 1st |
ब्लास्ट कर के मुसलमानों पर दोष डालने का ब्राह्मणवादी खेल—-अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक ‘करकरे के हत्यारे कौन?’ और ‘26/11 की जांच—न्यायपालिका भी क्यों नाकाम रही?’ के लेखक, पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी एसएम मुशरिफ़ की यह एक और किताब है। इस किताब का विषय है देश भर में होनेवाले बम धमाकों के पीछे ब्राह्मणवादी छल-प्रपंच और बेगुनाह मुसलमानों पर दोष मढ़ना। अदालतों में दायर कई आरोपपत्रों और उनके द्वारा दिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों की शब्द-दर-शब्द जांच के बाद, और प्रासंगिक अवधियों की प्रेस कतरनों के एक विशाल संग्रह को देखने के बाद, लेखक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 2002 के बाद से अधिकांश बम विस्फोटों में आरएसएस, अभिनव भारत, बजरंग दल, जय वंदे मातरम, सनातन संस्था आदि जैसे ब्राह्मणवादी संगठनों का हाथ था। लेकिन आईबी, एनआईए और राज्यों में आतंकवाद निरोधक दस्तों ने, ब्राह्मणवादी तत्वों के सक्रिय समर्थन और मीडिया द्वारा ब्राह्मणवादियों की ओर इशारा करनेवाले महत्वपूर्ण सुराग़ों को जान-बूझकर दबाने के लिए बेगुनाह मुसलमानों पर आरोप लगाया। यहां तक कि कुछ अदालतें भीं प्रभावित हुईं। कुछ अदालतें मीडिया के प्रचार से प्रभावित थीं तो कुछ अभियोजन पक्ष द्वारा गुमराह। लेखक ने सुझाव दिया है कि यदि ऐसे सभी मामलों का पुनरावलोकन कुछ वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों द्वारा किया जाए और उनमें से संदिग्ध लोगों की एक स्वतंत्र और निष्पक्ष एजेंसी द्वारा पुन: जांच की जाए, तो यह पता चलेगा कि इन सभी घटनाओं में ब्राह्मणवादी संलिप्त हैं, उन घटनाओं में भी, जिनमें मुसलमानों को दोषी ठहराया जा चुका है और सज़ा सुनाई जा चुकी है।
ब्राह्मणवादियों के धमाके, मुसलमानों को फाँसी Brahmanvaadion ke dhamake, Musalmanon ko phaansi (Hindi)
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जब इस किताब के लेखक, एस. एम. मुशरिफ़ ने अपनी पहली किताब, ‘हू किल्ड करकरे?’ (‘करकरे के हत्यारे कौन?’) में 26/11 के मुम्बई आतंकी हमले की आई.बी. व पुलिस कहानी की धज्जियाँ उड़ायीं और ज़्यादा विश्वसनीय दूसरा मत प्रस्तुत किया, तब देश में, विशेेष रूप से आई.बी. और दक्षिणपंथी गुटों में, अच्छी ख़ासी घबराहट पैदा हो गई।
इस किताब में वे यह बताने के लिये फिर लौटे हैं कि अपनी झूठी कहानी को सच साबित करने के लिए आई.बी. ने किस तरह मामले की जाँच में हर स्तर पर न सिर्फ़ हस्तक्षेप किया, बल्कि अपने भारी असर का भी इस्तेमाल किया और मीडिया के एक वर्ग व पुलिस की मदद से अदालतों के गलियारों को कामयाबी के साथ पार कर लिया तथा उसके आखि़री पड़ाव, अर्थात्, फाँसी के तख़्ते तक पहुँचा दिया। इस किताब में मामले की दोबारा जाँच कराये जाने की सारी कोशिशों को विफल करने की आई.बी. की चतुर चालों का भी वर्णन किया गया है। लेखक ने संविधानेतर प्राधिकारी के रूप में आई.बी. द्वारा हमारी लगभग सभी संवैधानिक संस्थाओं को प्रभावित करने की हद तक हासिल अनियन्त्रित अधिकारों पर गम्भीर चिन्ता जताई है। फिर भी उन्होंने किताब को न्यायपालिका पर भरोसा जताने की आशावादी टिप्पणी पर ख़त्म किया है। There was quite a flutter in the country, especially in the camps of the IB and right-wing groups, when the author of this book, S.M. Mushrif, in his first book, Who Killed Karkare?, smashed the IB and Police theory of the 26/11 Mumbai terror attack case and offered a more convincing alternative theory. In this new book, he comes back to narrate as to how the IB, in order to prove its false theory, not only interfered in the investigations of the case at every stage, but also employed its tremendous clout and, with the help of a section of the media and the Police, successfully pulled it through the corridors of the courts and ultimately kicked it to its final destination, i.e., the gallows. The book also describes the shrewd moves on the part of the IB to scuttle all attempts to get the case reinvestigated. The author has expressed his serious concern over the unbridled powers being enjoyed by the IB, an extra-constitutional authority, to the extent of influencing almost all our constitutional institutions. However, he has ended the book on an optimistic note — pinning his hopes on the judiciary.
इस किताब में वे यह बताने के लिये फिर लौटे हैं कि अपनी झूठी कहानी को सच साबित करने के लिए आई.बी. ने किस तरह मामले की जाँच में हर स्तर पर न सिर्फ़ हस्तक्षेप किया, बल्कि अपने भारी असर का भी इस्तेमाल किया और मीडिया के एक वर्ग व पुलिस की मदद से अदालतों के गलियारों को कामयाबी के साथ पार कर लिया तथा उसके आखि़री पड़ाव, अर्थात्, फाँसी के तख़्ते तक पहुँचा दिया। इस किताब में मामले की दोबारा जाँच कराये जाने की सारी कोशिशों को विफल करने की आई.बी. की चतुर चालों का भी वर्णन किया गया है। लेखक ने संविधानेतर प्राधिकारी के रूप में आई.बी. द्वारा हमारी लगभग सभी संवैधानिक संस्थाओं को प्रभावित करने की हद तक हासिल अनियन्त्रित अधिकारों पर गम्भीर चिन्ता जताई है। फिर भी उन्होंने किताब को न्यायपालिका पर भरोसा जताने की आशावादी टिप्पणी पर ख़त्म किया है। There was quite a flutter in the country, especially in the camps of the IB and right-wing groups, when the author of this book, S.M. Mushrif, in his first book, Who Killed Karkare?, smashed the IB and Police theory of the 26/11 Mumbai terror attack case and offered a more convincing alternative theory. In this new book, he comes back to narrate as to how the IB, in order to prove its false theory, not only interfered in the investigations of the case at every stage, but also employed its tremendous clout and, with the help of a section of the media and the Police, successfully pulled it through the corridors of the courts and ultimately kicked it to its final destination, i.e., the gallows. The book also describes the shrewd moves on the part of the IB to scuttle all attempts to get the case reinvestigated. The author has expressed his serious concern over the unbridled powers being enjoyed by the IB, an extra-constitutional authority, to the extent of influencing almost all our constitutional institutions. However, he has ended the book on an optimistic note — pinning his hopes on the judiciary.
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