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About Book

स्मिता सिन्हा की इन कविताओं से गुजरना अपने उदास समय को गहराई से देखने, महसूसने और अंततः उससे जूझने की प्रक्रिया है। इस संग्रह को किसी कवयित्री का संग्रह समझ उसमें स्त्री-विमर्श वगैरह खोजने की कोशिश बेमानी होगी। स्मिता की कविताओं की प्रकृति समावेशी है। अपने समय, समाज, प्रकृति, प्रेम, रिश्तों और आत्मप्रवंचनाओं की विभिन्न कोणों से पड़ताल मानो कवयित्री की मूल प्रतिज्ञा है। वह अपने समक्ष ऐसे कठिन समय को पाती है जिसमें यांत्रिक दबावों के कारण प्रकृति के आदिम स्पर्श यहाँ तक कि उस स्पर्श की स्मृति तक को भुलाने की साजिशें हैं। साथ ही यहाँ एक छोटे से झरोखे से अनंत जीवन के विस्तार को नापने की आकांक्षा है। सब कुछ नष्ट होते जाने की कगार पर यहाँ उस न्यूनतम हँसी को बचा लेने की जिजीविषा है जो किसी बंजर जमीन पर नमी के लिए आवश्यक होती है। 'दरवेश' श्रृंखला की अंडरटोन कविताओं में मन, समय और बह्मांड के गूढ कोनों-किनारों को खंगालने की जद्दोजहद है-किसी सूफियाना निर्दोष प्रश्न के साथ जहाँ दर्शन भी है मगर वैयक्तिकता भी। प्रेम जैसे अलौकिक अनुभव को वह देह से विदेह होने की सीमा तक आत्मसात् करना चाहती हैं। कवयित्री स्मिता सिन्हा की कविता इस मायने में प्रतिरोध की कविता है कि वहाँ, लोकतंत्र में कुछ न कर पाने की आत्मग्लानि में एक व्यापक राजनीतिक चेतना व्याप्त है कि वह इस बहरे युग में चीखने का आह्वान करती हैं। हम इन कविताओं में विस्थापन के दर्द को पढ़ते हैं तो दरअसल उसकी सीमाओं तक जाने की यातना भी भोगते हैं, विस्थापन के आयाम जो सपनों, स्मृतियों, साँसों, सिलवटों, भाषा, विचार, रिश्तों बल्कि रूह तक व्याप्त हैं। ये कविताएँ तमाम विद्रूपताओं के बीच फूटने जा रही रुलाई को रोक लेने का जनपक्षधर सरोकार है ताकि मजबूती का विश्वास बचा रहे।

About Author

स्मिता सिन्हा

जन्म : पटना, बिहार

शिक्षा : एम.ए. (अर्थशास्त्र), मगध विश्वविद्यालय, बिहार

पत्रकारिता, भारतीय जनसंचार संस्थान, नयी दिल्ली

संप्रति : स्वतंत्र पत्रकार एवं रचनात्मक लेखन में सक्रिय

‘बोलो न दरवेश’ इनका पहला कविता संग्रह है।

प्रकाशन :विभिन्न पत्रिकाओं एवं दैनिकों में रचनाएँ प्रकाशित।

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